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कुनकुन बस्ती की आवाज कौन सूनेगा?

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शिवकुमार 20 अप्रैल : हैलाकांदी जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर  लाला राजस्व चक्र लालमुख ग्राम पंचायत के अंतर्गत   कुनकुनबस्ती के बगल से काटाखाल नदी बह रही है। राजेश्वरपुर प्रखंड का यह एक राजस्व गांव है। देश के तरक्की के साथ साथ असम  को शीर्ष पांच राज्यों में शामिल होने का सपना दिखाया जा रहा है, वहीं इस गांव के नागरिक सभी सरकारी सुविधाओ से वंचित है। यह गाँव हैलाकांदी शहर से काफी दूर लेकिन लाला शहर से थोड़ी दूरी पर स्थित है। दीपक तले जैसे अँधेरा है वैसे ही कुनकुनबस्ती भी विकास की रोशनी से वंचित है। केंद्र और राज्य सरकार विभिन्न सड़क परियोजनाओं के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी हैलाकांडी क्षेत्र के कई गांवों में आज भी यातायात के लिए सड़क अच्छी नही है। कुनकुनबस्ती में  कदम रखते ही  यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट हो जाता है। कुनकुनबस्ती में करीब हजारों की संख्या में परिवार है, इस हिसाब से इस गांव की आबादी साढ़े तीन से चार हजारों होंगी। कृषि प्रधान इस गांव के लोग नियमित रूप से सरकार को खजाना भी देते आ रहें है व चुनाव आने पर लाइन पकड़ कर अपना वोट भी देते है, कईयों को नेता और मंत्री बनया है लेकिन लाला शहर जाने का एकमात्र रास्ता आज भी पक्का नही हुआ है। कच्ची सड़क से ही लोगो को आवागमन करना पड़ रहा है। जिसके चलते कोई भी बाहन उस रास्ते से जाने में कतराते है। स्कूल से लेकर बाज़ार, अस्पताल या कोई सरकारी कार्यालय – सब कुछ के लिए गांव के लोगों को लाला शहर में जाना पड़ता है। सर्दियों के दिन में कुछ हद तक सड़कें चलने लायक होती है लेकिन बारिश के दिनों में लोग आतंक में रहते है। विद्यार्थियों को स्कूल आने जाने के लिए कीचड़ और गड्ढों से भरी इस सड़क को पार करना पड़ता है। जिसके चलते छात्र स्कूल जाना छोड़ देते हैं और घर पर बैठ जाते हैं। अगर कोई बीमार हो जाए तो एंबुलेंस तक नही पहुंच पाती है। परिणामस्वरूप, रोगी को गोद में उठाकर उस मार्ग को पार करके लाला अस्पताल में पहुंचाया जाता है। गर्भवती महिलाओ के यह सड़क बहुत ही  दुःखदायी होता है। कुनकुनबस्ती के अधिकांश लोग किसान या दिहाड़ी मजदूर के रूप में जीवन यापन करते हैं स्वाभाविक रूप से, उनकी वित्तीय स्थिति बहुत ही डांवाडोल है।  गांव की यह टूटी सड़क उनके जीवन के लिए अभिशाप बन गयी ऐसी स्थिति में  लड़के-लड़कियाँ  पढ़ने के लिए जाते है। अप्रैल की पहली बरसात या मानसून के सीजन में यही स्थिति रहती है। सड़क पानी के अंदर बह जाती है। उस समय एक सुनसान द्वीप में इस गांव का कायापलट हो जाता है, काटाखाल नदी का जलस्तर बढ़ा तो गांव के लोगों की रातों की नींद उड़ जाती है। इसका मतलब यह है कि नदी का पानी सब कुछ बहाकर ले जाती है। गांव में हर साल जब मानसून आता है तो कुनकुनबस्ती को यह डर सताता है। गौतम रॉय जैसे  नेता इस जिले से राज्य मंत्री तक रहा है, उन्होंने दिल्ली से दिसपुर तक की यात्रा की है लेकिन लाला के नाम से मशहूर इस कुनकुनबस्ती इलाके की दुर्दशा के बारे में कई बार बताया गया लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। बाद में कृपानाथ माला सांसद, स्थानीय विधायक जाकिर हुसैन लश्कर से गांव के लोग कई बार मिलकर सड़क बनाने का अनुरोध किया लेकिन दोनों बड़े-बड़े वादों के बावजूद कुछ नहीं किया और इसी गुस्से से गांव के लोग इस बार लोकसभा चुनाव बहिष्कार करेंगे। गांव के बुजुर्गों में कृष्णप्रसाद ग्वाला, घंटू रविदास,रामकेबल ग्वाला, भोला ग्वाला, मदन ग्वाला, शिवशंकर शुक्लवैद्य, जलाल उद्दीन, मयूर अली सहित गांव के कई वरिष्ठ लोगो ने आज प्रेरणा भारती के प्रतिनिधि से बात करते हुए उपरोक्त बातें बताईं।

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