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कुपोषण आज संपूर्ण विश्व के लिए एक बड़ी समस्या है। आज कुपोषण बच्चों में रूग्णता और मृत्यु का एक बड़ा कारण है। कुपोषण के कारण हमारे शरीर में स्वस्थ ऊतकों और अंगों के कार्यकरण हेतु आवश्यक विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और इससे हम बीमार पड़ते हैं और बहुत बार कुपोषण से असमय मौतें हो जाती हैं। यदि हम यहां कुपोषण को परिभाषित करना चाहें तो हम यह बात कह सकते हैं कि कुपोषण या माल-न्यूट्रिशन वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से ग्रहण करने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है। कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा उपलब्ध नहीं होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के अनुसार कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षणों में क्रमशः नाटापन(बौना), निर्बलता और कम वजन को शामिल किया जा सकता है। वास्तव में अच्छा जीवन जीने के लिए अच्छे व पोषक भोजन की आवश्यकता होती है और प्रत्येक बालक को अच्छा, संतुलित व पोषक भोजन मिलना चाहिए। यहां यह उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-47 भारत सरकार को सभी नागरिकों के लिये पर्याप्त भोजन के साथ एक सम्मानित जीवन सुनिश्चित करने हेतु उचित उपाय करने के लिये बाध्य करते हैं। किंतु भारतीय संविधान में भोजन के अधिकार को ‘मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं प्रदान की गई है। यदि देश के सभी लोगों को राइट टू फूड का अधिकार मिलें तो इससे निश्चित ही कुपोषण में कमी लाई जा सकती है।
बहरहाल, यदि हम यहां कुपोषण से संबंधित आंकड़ों की बात करें तो साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए, इनमें 22.4 करोड़ (29%) भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक चौथाई से भी अधिक है। संयुक्त राष्ट्र का कुपोषण के संबंध में कुछ समय पहले यह कहना था कि भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। साल 2015-16 में किए गए एक सर्वे के आधार पर भारत में जिलेवार करीब 7 से लेकर 65 प्रतिशत तक बच्चे कुपोषण का शिकार पाए गए हैं वास्तव में,यह बहुत ही संवेदनशील बात है। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में बहुत बुरी हालत में है। आंकड़े बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक 7.20 करोड़ और लोगों के कुपोषित होने का खतरा है। जानकारी देना चाहूंगा कि वर्तमान में दक्षिण एशिया के कई देश भारी खाद्य संकट से ग्रसित हैं। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यू एच ओ) के आँकड़ों के मुताबिक भारत में दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले कहीं अधिक कुपोषित बच्चे हैं। वास्तव में गरीबी, आर्थिक तंगी कुपोषण का सबसे बड़ा कारण है। दूसरा एक कारण स्वच्छ जल की अनुपलब्धता भी है। स्वच्छ जल की अनुपलब्धता से भी कुपोषण की समस्या पैदा होती है।
भारत में आज भी कई जगहों पर लड़का और लड़की के बीच भेदभाव किया जाता है। यही वजह है कि माता-पिता लड़कियों के खान-पान और पोषण पर विशेष ध्यान नहीं देते। ऐसे में वह लड़कियां धीरे-धीरे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं। लड़कियों का कम उम्र में मां बनना भी कुपोषण का एक प्रमुख कारण है। स्तनपान के अभाव की स्थिति में भी बच्चों में कुपोषण की स्थिति पैदा हो सकती है। ज्ञान की कमी, पोषक आहार की कमी, गंदा पर्यावरण,पाचन विकार, मानसिक स्वास्थ्य, नशा, अव्यवस्थित जीवनशैली भी कुपोषण के प्रमुख कारण हैं। गरीब होने के कारण आज बहुत से लोगों के पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी तक नहीं होती है।हालांकि यह भी कि गरीबी अकेले कुपोषण को जन्म नहीं देती, किंतु यह आम लोगों के लिये पौष्टिक भोजन की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है।आँकड़े बताते हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या का लगभग 25.7 प्रतिशत हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 13.7 प्रतिशत के करीब है। अज्ञानता के कारण भी बहुत बार कोई बच्चा कुपोषण का शिकार हो सकता है। बहुत बार बच्चे के पालन-पोषण में कमी, भोजन के प्रति जागरूकता का अभाव और भोजन की आदतें, ये सभी परिवार में पोषण की कमी का कारण बनते हैं। वास्तव में,आज देश में पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण आहार के संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट दिखाई देती है जिसके कारण परिवार का परिवार कुपोषण का शिकार हो जाता है।
जलवायु परिवर्तन से भी आज कृषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है और कुपोषण जन्म लेता है। आज विश्व के 40 से अधिक विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि उत्पादन में हो रही गिरावट आने वाले वर्षों में भूख से पीड़ित लोगों की संख्या में काफी हद तक वृद्धि कर सकती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022 में दक्षिण एशिया में लगभग सौ साल में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया है। तापमान में बढ़ोतरी से खाद्य सुरक्षा कहीं न कहीं संकट में आती है और खाद्य उत्पादन कम होने से कुपोषण के आंकड़ों में भी कहीं न कहीं बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। वास्तव में, खाद्य असुरक्षा, पर्याप्त और सस्ते भोजन की कमी भी पोषण के कारण बनते हैं। आंकड़े बताते हैं कि अक्तूबर 2019 में जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा था, जबकि वर्ष 2018 में भारत 103वें स्थान पर था। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सरकार कुपोषण से निपटने के लिए अपने स्तर पर प्रयास नहीं कर रही है। आज गरीबों को फ्री अनाज दिया जा रहा है। सरकार द्वारा इस संदर्भ में काफी प्रयास किये गए हैं और विभिन्न प्रकार की योजनाएँ आज हमारे देश में चलाई जा रही हैं, किंतु इन योजनाओं और प्रयासों के बावजूद हम देश में कुपोषण की चुनौती से पूर्णतः निपटने में असमर्थ रहे हैं। इससे न केवल भारत के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की छवि भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। यूनिसेफ के अनुसार, वर्ष 2017 में सबसे कम वजन वाले बच्चों की संख्या वाले देशों में भारत 10वें स्थान पर था। इतना ही नहीं, वर्ष 2019 में ‘द लैंसेट’ नामक पत्रिका द्वारा जारी रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौंतों में से तकरीबन दो-तिहाई की मृत्यु का कारण कुपोषण है।
कोरोना महामारी के दौरान में हमने महसूस किया है कि कोरोना महामारी के कारण भी विश्व के अनेक देशों में खाद्य असुरक्षा पैदा हुई और कुपोषण के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई। आज खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के जिस अभिशाप से सारी दुनिया जूझ रही है। वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भी विश्व में कहीं न कहीं खाद्य असुरक्षा पैदा हुई है और कुपोषण में बढ़ोतरी देखने को मिली है। भूख और कुपोषण को जड़ से मिटाने के लिए खाद्य सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है। पोषण अभियानों, जागरूकता के साथ ही मिड डे मील जैसे कार्यक्रमों को और अधिक तवज्जो और महत्व देना होगा। जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान आकृष्ट करना होगा ताकि खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी हो सके। इसके अलावा गरीबी उन्मूलन की दिशा में यथेष्ठ प्रयास करने की जरूरत है।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार।