फॉलो करें

कुशोत्पाटनी अमावस्या का महत्व कैसे करें कुशोत्पाटन – डॉ. बी. के. मल्लिक

170 Views
भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन वर्ष भर के लिए पुरोहित नदी, पोखर, जलाशय आदि से कुशा घास एकत्रित कर घर में रखते हैं। कुशा घास का प्रयोग कर्मकांड कराने में किया जाता है।
कुशोत्पाटिनी अमावस्या मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या को कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
कुशोत्पाटिनी अमावस्या का महत्व
ऐसी मान्यता है कि इस दिन कुशा नामक घास को उखाड़ने से यह वर्ष भर कार्य करती है तथा पूजा पाठ कर्म कांड सभी शुभ कार्यों में आचमन में या जाप आदि करने के लिए कुशा इसी अमावस्या के दिन उखाड़ कर लाई जाती है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है। इसलिए इसे कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। यदि भाद्रपद माह में सोमवती अमावस्या पड़े तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक समय हिरण्यकश्यप के बड़े भाई हिरण्याक्ष ने धरती का अपहरण कर लिया। हिरण्याक्ष पृथ्वी को पताल लोक ले गया राक्षस राज इतना शक्तिशाली था कि उसका कोई विरोध तक ना कर सका। तब धरती को मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया तथा हिरण्याक्ष का वध कर धरती को मुक्त कराया। तथा पृथ्वी को पुनः अपनी पूर्व अवस्था में स्थापना किया।
पृथ्वी की स्थापना करने के बाद भगवान वाराह बहुत भीग गए थे जिसके कारण उन्होंने अपने शरीर को बहुत तेज झटका, झटकने से उनके रोए टूटकर धरती पर जा गिरे जिससे कुशा की उत्पत्ति हुई। कुशा की जड़ में भगवान ब्रह्मा, मध्य भाग में भगवान विष्णु तथा शीर्ष भाग में भगवान शिव विराजते हैं।
मान्यातानुसार कुशा को किसी साफ-सुथरे जल श्रोत अथवा पोखर से प्राप्त करना चाहिए। स्वयं को पूर्व की दिशा की तरफ मुंह करना चाहिए तथा अपने हाथ से कुशा को धीरे-धीरे उखाड़ना चाहिए है। ध्यान रहे कि यह साबुत ही रहे ऊपर की नोक भी ना टूटने पाए।
कुशा का चिकित्सा में प्रयोग
कुशा का प्रयोग प्राचीन काल से चिकित्सा एवं धार्मिक कार्यों में किए जाने का वर्णन है। मूत्रविरेचनीय तथा स्तन्यजनन आदि महाकषायों में कुश के प्रयोग का वर्णन मिलता है।
कुश का वानस्पतिक नाम डेस्मोस्टेकिया बाईपिन्नेटा है। कुशा को अंग्रेजी में सैक्रिफिशियल ग्रास कहते हैं. भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में कई नामों से कुशा को कुश, सूच्याग्र, पवित्र, यज्ञभूषण, कुस, दर्भाईपुल, दर्भा तथा हल्फा ग्रास के नाम से भी जाना जाता है।
कुशोत्पाटनी अमावास्या के दिन उखाड़ा गया कुश 1 वर्ष पर्यंत उपयोग में लाया जा सकता है। हमारे सनातन धर्म में कुशा को अत्यन्त पवित्र माना गया है। वैदिक परम्परा में पूजा, जप, श्राद्धकार्य इत्यादि के समय पवित्री धारण आवश्यक है। यह पवित्री ‘कुशा’ से बनाई जाती है। अमावस्या के दिन उखाड़ा गए कुश का एक मास तक उपयोग किया जा सकता है किन्तु कुशोत्पाटनी अमावस्या को उखाड़ा गया कुश 1 वर्ष तक शुद्ध व उपयोगी रहता है।
 *ऐसे करें कुशोत्पाटन*
कुश को उखाड़ने को कुशोत्पाटन कहा जाता है। इसके लिए स्नान के पश्चात् सफ़ेद वस्त्र धारणकर प्रात:काल कुशोत्पाटन के लिए प्रस्थान करें। कुशोत्पाटन करते समय (कुशा को उखाड़ते) अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
सर्वप्रथम “ॐ” कहकर कुश का स्पर्श करें फ़िर निम्न मन्त्र बोलकर प्रार्थना करें-
“विरन्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिनिसर्जन।
नुद सर्वाणि  पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव॥
इस प्रार्थना के पश्चात् हुँ फट् बोलकर कुश को उखाड़ें।
कुश उखाड़ने से पूर्व यह ध्यान रखें कि जो कुश आप उखाड़ रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो। ऐसा कुश ना उखाड़ें जो गन्दे स्थान पर हो, जो जला हुआ हो, जो मार्ग में हो या जिसका अग्रभाग कटा हो, इस प्रकार का कुश ग्रहण करने योग्य नहीं होता है।
डॉ. बी. के. मल्लिक वरिष्ठ लेखक
9810075792

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल