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केन्द्रीय हिमालयीय संस्कृति शिक्षण संस्थान में द्वि-दिवसीय व्याख्यान माला सम्पन्न

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वेस्ट कामेंग, अरुणाचल प्रदेश: केन्द्रीय हिमालयीय संस्कृति शिक्षण संस्थान में 20 और 21 मार्च 2025 को संस्थान के संस्थापक तेरवहा छोना गोन्तसे रिनपोछे की स्मृति में द्वि-दिवसीय व्याख्यान माला का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। इस विद्वत्सभा में भोटी, हिन्दी और अंग्रेजी—तीनों भाषाओं में विविध विषयों पर विद्वानों ने अपने गहन विचार प्रस्तुत किए।
शुभारंभ समारोह
कार्यक्रम का शुभारम्भ 20 मार्च को दीप प्रज्वलन और भोटी एवं संस्कृत भाषा में मंगलाचरण से हुआ। संस्थान के निर्देशक डॉ. गुरमेत दोर्जे ने स्वागत भाषण देते हुए व्याख्यान माला के उद्देश्य और तेरवहा छोना गोन्तसे रिनपोछे के योगदान पर प्रकाश डाला।
प्रथम दिवस (20 मार्च 2025)
पहले सत्र में सेरा जे मोनास्ट्री, कर्नाटक से पधारे प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान गेसे लारम लोब्सङ ड्रकपा ने भोटी भाषा में “बौद्ध धर्म के माध्यम से सार्थक जीवन” विषय पर अपना विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बौद्ध धर्म के नैतिक सिद्धांतों और उनके व्यावहारिक जीवन में महत्व को रेखांकित किया।
इसके बाद कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत और प्राच्य अध्ययन विश्वविद्यालय, नलबाड़ी (असम) के सर्वदर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. रणजीत कुमार तिवारी ने हिन्दी भाषा में “भारतीय संस्कृति में बौद्ध दर्शन का प्रभाव” विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बौद्ध दर्शन के भारतीय संस्कृति पर पड़े गहरे प्रभाव को सरल और रोचक शैली में प्रस्तुत किया।
तृतीय वक्ता के रूप में एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा के डेवलपमेंट स्टडीज विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. मीजिंक्षा दैमारी ने अंग्रेजी भाषा में “Agrarian Change in North East” विषय पर विस्तार से व्याख्यान दिया। उन्होंने पूर्वोत्तर भारत में कृषि-आर्थिक परिवर्तन और उनके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पर अपने गहन शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए।
द्वितीय दिवस (21 मार्च 2025)
दूसरे दिन का शुभारंभ बोमडिला कॉलेज के हिन्दी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. आलोक कुमार सिंह के व्याख्यान से हुआ। उन्होंने “भक्ति साहित्य और मानव मूल्य” विषय पर सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। उनके व्याख्यान में भक्ति आंदोलन के सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान को विशेष रूप से रेखांकित किया गया।
इसके बाद दोर्जे खाण्डु महाविद्यालय, तवांग से पधारी सुश्री रञ्जु पाङगिङ ने अंग्रेजी भाषा में “Role of Sacred Groves in Conserving Biodiversity” विषय पर प्रभावशाली व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने पवित्र उपवनों (सैक्रेड ग्रोव्स) की पारिस्थितिकीय महत्ता और जैव विविधता संरक्षण में उनकी भूमिका को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाया।
तृतीय वक्ता के रूप में लेह, लद्दाख से पधारे प्रतिष्ठित बौद्ध विद्वान खेनपो कुन्छोक थुप्सतेन ने “लोक गाथाएँ और बौद्ध परम्परा” विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने लोक साहित्य में निहित बौद्ध शिक्षाओं और सांस्कृतिक विरासत की परंपरा पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
प्रश्नोत्तर सत्र और समापन समारोह
प्रत्येक व्याख्यान के उपरांत आयोजित प्रश्नोत्तर सत्र ने छात्रों की जिज्ञासा को प्रेरित किया और उन्हें विद्वानों के साथ संवाद का अवसर प्राप्त हुआ।
कार्यक्रम के समापन पर छात्र-छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया, जिसमें अरुणाचल प्रदेश की लोक-संस्कृति की झलक देखने को मिली। तत्पश्चात, सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र एवं स्मृति-चिह्न प्रदान किए गए।
पूरे कार्यक्रम का सुस्पष्ट और कुशल संचालन संस्थान के संस्कृत अध्यापक डॉ. रामगोपाल उपाध्याय ने किया।
इस द्वि-दिवसीय व्याख्यान माला ने विद्वानों और विद्यार्थियों को ज्ञानवर्धक चर्चा और संवाद के माध्यम से भारतीय संस्कृति, बौद्ध परंपरा एवं समकालीन सामाजिक मुद्दों की गहराई को समझने का उत्कृष्ट मंच प्रदान किया।

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