फॉलो करें

कैसे लोग अपने पिता का घुमना- फिरना बंद कर देते हैं……..

45 Views
बहू मैं इस घर का चौकीदार नहीं हूं
पापा बस हम लोग निकल रहे हैं। शाम तक लौट आएँगे। आप प्लीज घर का ख्याल रखना
हां आपका खाना टेबल पर रख दिया है। जब भी भूख लगे, लेकर खा लेना। रात तक का ही खाना बना दिया है। हम लोगों को आने में देर हो जाएगी तो थकने के बाद खाना नहीं बनेगा और हम लोग वैसे भी खाना खाकर आएंगे
और हां जाते-जाते बाहर ताला लगा कर जा रहे हैं। अपना ख्याल रखना
दोनों बेटे और बहू कहते हुए अपने अपने परिवार के साथ घर से बाहर निकल गए। आज इन लोगों का रिजॉट जाने का मूड है। सुबह से शाम तक वही मौज मस्ती करने का इरादा है।
एक बार भी किसी ने हरदयाल जी से नहीं पूछा कि वो भी जाना चाहते हैं या नहीं। सोफे पर से उठ कर खिड़की के पास चलकर गए और खिड़की में से नीचे देखा तो दोनों अपनी कारों में बच्चों के साथ बैठकर रवाना हो गए। थोड़ी देर तक खिड़की के बाहर यूं ही ताकते रहे।
उसके बाद उदास मन से धीरे धीरे चलते हुए डाइनिंग टेबल पर आए और वहाँ रखे हुए खाने को खोल कर देखा। केसरोल में पाँच रोटियां, डोंगे में पतली सी दाल, एक प्लेट में सलाद के नाम पर एक प्याज काटकर रखा हुआ था। खाने को देखते ही मन ही मन सोचने लगे कि अभी तो सुबह के 8:00 ही बज रहे हैं। आज पूरा दिन मुझे इसी खाने से निकालना है। रात को भी खाना नहीं मिलेगा। इतने से मेरा पेट कैसे भरेगा?
पिछली बार भी जब ये लोग घूमने गए थे तब भी बहू इतना सा ही खाना बना कर गई थी। रात को घर पर आने के बाद हरदयाल जी ने सिर्फ इतना ही तो कहा था कि बहू मुझे बहुत जोर से भूख लगी है। बस उसी में दोनों बहूओं ने रोना-धोना मचा दिया था और बेटे?
बेटे तो वैसे भी अपनी पत्नियों के आगे कुछ बोलते नहीं है। पर आज फिर वही?
एक लंबी गहरी सांस लेकर अपने कमरे की तरफ आए। कमरे में अपनी पत्नी की तस्वीर देखकर आंखों में आंसू आ गये। एक वो थी जो कभी मुझे भूखा नहीं रहने देती थी। पर उसके जाने के बाद तो सचमुच पेट भर खाने को भी तरस गया हूं। सोचा था कि रिटायर होने के बाद परिवार वालों के साथ खूब घूमूंगा फिरूँगा, पर यहां तो बीमार नहीं हूं पर घर में हर कोई मुझे बीमार बनाने में लगा हुआ है। जानता था कि हर बात के दो पहलू होते हैं, पर कभी इस पहलू के बारे में तो सोचा ही नहीं था।
पहले कितना घूमने का शौक था। महीने में दो बार तो परिवार के साथ बाहर घूमने निकल ही जाते थे  पर अब? कितने महीनों से तो घर के बाहर भी नहीं निकला हूं। ये लोग जब भी कहीं जाते हैं ताले में बंद कर के जाते हैं। एक बार भी नहीं पूछते कि पापा आपको भी चलना है क्या? अब तो घुटन सी होने लगी है। किसी से बाहर बात भी नहीं करने देते और खुद भी बैठ कर बात करना पसंद नहीं करते। आजकल पता नहीं दोस्तों के भी फोन नहीं आते, ना उनका फोन लगता है। मेरे ही बेटों ने अपने घर का चौकीदार बनाकर रख दिया है मुझे।
जब हाथ पैर चल रहे हैं तब मेरी कदर नहीं है तो जिस दिन बिस्तर पकड़ लूंगा तो मुझे तो पूछेंगे भी नहीं। किसी ना किसी निर्णय पर पहुंचना बहुत जरूरी हो चुका है। अभी हरदयाल जी मन ही मन सोच रहे थे कि उनके फोन पर एक अननोन नंबर से फोन आया,
जब मोबाइल उठाया तो दूसरी तरफ उनके दोस्त कैलाश जी बोल रहे थे,
और हरदयाल, कैसा है? कितने दिनों बाद तेरा फोन लगा है
अरे कैलाश आज इतने दिनों बाद तुझे मेरी याद कैसे आई”
भाई यह पूछने के लिए कि कब तक भाभी के जाने का गम बनाएगा। कुछ आगे का सोचा है कि नहीं
मतलब?
मतलब यह कि इस बार हम सारे दोस्त मिलकर रामेश्वरम घूमने जा रहे हैं। तू भी चलेगा इस बार। पिछली दो बार भी तुम मना कर चुके हो
मैंने मना किया? कब?
अरे पिछली बार वैष्णो देवी यात्रा पर गए थे और उससे पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गए थे। तेरे फोन पर फोन लगाओ तो लगता ही नहीं है। आखिर तेरे बेटों को फोन लगाया था। तब तेरे बेटों ने ही कहा कि पापा मना कर रहे हैं। अब मम्मी के बगैर उनका कहीं मन नहीं लगता। इस बार मैंने किसी और नंबर से फोन लगाया तुझे। कमाल है ये नम्बर तो लग गया
सुनकर हरदयाल जी हैरान रह गए। उन्हें तो बिल्कुल पता नहीं था कि पहले भी दो यात्रा जा चुकी है। मतलब बेटों ने उन तक बात पहुंचाई ही नहीं। और फिर उनका मोबाइल….?
अरे क्या हुआ? जवाब तो दे
अचानक कैलाश जी की आवाज से हरदयाल जी की तंद्रा टूटी,
अरे हां, इस बार जरूर जाऊंगा। कितना क्या पेमेंट देना है वो बता देना। मैं डिपाॅजिट करा दूँगा
चल मैं तुझे अपने व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल कर लेता हूं और वही सारी डिटेल भेज देता हूं। और रही बात पेमेंट की, वो तू बाद में दे देना। कम से कम तूने हाँ तो की। वैसे भी हम कल ही रवाना हो रहे हैं। और तेरी टिकट हमने पहले ही करवा ली थी। अगर तू फोन नहीं उठाता, तो हम आज तेरे घर आ जाते
अच्छा, ठीक है बाबा। पर डिटेल आधे घंटे बाद भेजना
चल फिर फटाफट से तैयारी कर ले। कल सुबह ही निकलना है
कहकर कैलाश जी ने फोन रख दिया। कैलाश जी के फोन रखते ही हरदयाल जी ने अपना फोन चेक किया। हरदयाल जी के अधिकतर सभी दोस्त उसमें ब्लॉक हो रखे थे।
उन्हें याद आया कि पिछली बार बच्चों को मेरे भरोसे छोड़कर चारों ऊटी घूमने गए थे। देखकर हरदयाल जी का दिमाग चकरा गया। इतना बड़ा धोखा?
कुछ देर तक आंखों में आंसू लिए अपनी पत्नी की तस्वीर की तरफ देखते रहे। फिर आंसू पोछ कर सबसे पहले हरदयाल जी ने अपने सारे दोस्तों को अनब्लॉक किया। उसके बाद उठकर अपने कमरे में गए और अपनी अलमारी में से अपने टूर पर पहनने वाले कपड़े निकाल कर पैक किये।
 अपने स्पोर्ट्स शूज निकालें और उनकी धूल साफ की। कुछ कैश और आई डी अपने पास रखे। मोबाइल पर अपने अकाउंट चेक किए। अपनी दवाइयों का बाॅक्स रखा। जितना समझ आया, उस हिसाब से पैकिंग कर ली। और इंतजार करने लगे दूसरे दिन का।
रात को जब बच्चे घर आए तब तक हरदयाल जी सो चुके थे। किसी ने भी उनके कमरे में जाने की जहमत नहीं उठायी। सब अपने अपने कमरे में जाकर सो गए।
दूसरे दिन जब बेटे और बहुएँ चाय पी रहे थे तो हरदयाल जी तैयार होकर अपना बैग लेकर बाहर आए। उन्हें देखते ही बड़ा बेटा बोला,
अरे पापा आप कहाँ चल दिए?
मैं अपने दोस्तों के साथ रामेश्वरम टूर पर जा रहा हूं। मेरा भी टिकट है
हरदयाल जी की बात सुनकर चारों बेटे बहू एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। बड़ी बहू बोली,
पर पापा जी आप ऐसे कैसे जा सकते हैं? बच्चों के एग्जाम शुरू होने वाले हैं और हमें भी बेंगलुरु के लिए रवाना होना है। मेरे मौसा जी के बेटे की शादी है
बच्चों को हम किसके भरोसे छोड़ कर जाएँगे। आपने सोचा भी हैं? छोटी बहू ने भी कहा।
और क्यों फालतू में पैसे खर्च करना? आपके पास इतना ही पैसा है तो थोड़ा बहुत हमें ही दे दीजिए  बेटे ने भी कहा
और वैसे भी इस उमर में कहां घूमने की लग रही है आपको? कल को गिर पड़ गए तो सेवा कौन करेगा? इसलिए चुपचाप अपना सामान वापस कमरे में रख दीजिए बड़ी बहू बोली
मुझे ऑर्डर देने वाली तुम कौन होती हो बड़ी बहू?  तुम लोगों ने मुझे अपने घर का चौकीदार समझ रखा है जो अपने बच्चो को मेरे भरोसे छोड़ कर चले जाते हो। तुम लोगों की हिम्मत कैसे हो गई मेरे मोबाइल से मेरे दोस्तों को ब्लॉक करने की
पापा, आप गलत समझ रहे हो। वो.. आपको कोई डिस्टर्ब ना करें इसलिए ब्लॉक किया था
अच्छा? मेरे आराम का इतना ही ख्याल हैं तो अपने बच्चे खुद संभालो। और रही बात मेरे घूमने-फिरने के खर्चे की तो वो मैं अपने खुद के कमाए पैसों से कर रहा हूं। किसी को बताने की जरूरत नहीं है। अभी तो मैं रामेश्वरम जा रहा हूं। वापस आने के बाद निर्णय लूंगा कि अब मुझे क्या करना है। बहुत हो गई तुम लोगों की मनमानी
कहकर हरदयाल जी वहाँ से रवाना हो गए। बेटे और बहू से कुछ बोलते ना बना। आखिर सब यही सोचते रह गए कि पापा आखिर क्या निर्णय लेंगे।
साभार फेसबुक

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल