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सम्माननीय मित्रों ! आज हमारी असमिया सरकार ! केन्द्रीय राष्ट्र वाद का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार ! हमारी मातृसंस्था ! हमारे यशस्वी प्रधानमन्त्री जी,मुख्यमंत्री जी ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे हमारे स्थानीय राजनैतिक प्रतिनिधियों को महत्व नहीं देते।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम बलिदानी स्वर्गीय श्रीमान मंगल पाण्डेय जी की मूर्ति स्थापना हेतु किये जा रहे हमारे बार-बार के अनुरोधों और ज्ञापनों को अत्यंत ही उपेक्षित भाव से रद्दी की टोकरी में डालते जाने की चली आ रही यह परम्परा यही बताती है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर बलिदानी वीरों को सम्मानित करने का पाखंड करने वाली अन्य सरकारों के मार्ग पर बीजेपी भी चल पडी है इसमें किसी को सन्देह करने की आवश्यकता अब नहीं है।
लगभग छत्तीस वर्षों से मैं दिलीप कुमार से परिचित हूँ ! उनके त्याग और ज्ञान को अंतःकरण से स्वीकार करता हूँ ! उन्होंने जिस संघ के लिये संघर्ष किया ! लाठियाँ खायीं ! भूखे पेट संघ की पचीस वर्षों तक निःस्वार्थ भाव से सेवा की ! अभी भी कर रहे हैं ! उनके जैसे व्यक्ति को जब हाशिये पर छोड़ दिया गया तो उस संस्था और दल से आप क्या अपेक्षा कर सकते हैं ?
“आत्मवाच्यं न जानीते जानन्नपि च मुह्यति” मै सरलतापूर्वक यह समझ सकता हूँ कि दिलीप कुमार के पास भ्रष्टाचार से कमाई सम्पत्ति तो है नहीं ! न ही कोई नौकरी है ! आजीवन संघ की गुलामी करने के कारण कोई सम्पत्ति भी नहीं है और न ही कोई सामान्य सा-“पद”! और उनके पीछे भूखे जंगली कुत्तों को लगातार छोडा जा रहा है ! दशकों से छोडा जा रहा है ! बिलकुल इसी प्रकार सन् 2097 मे मेरे पीछे भी छोडा गया था ! अभी भी कुछ लोगों को इस बात का बहुत ही कष्ट है कि -“मैं भूखा भिखारी सन्यासी आज इतने सुख से कैसे रहता हूँ ? उनके आगे हांथ क्यों नहीं पसारता ? मुझे भलीभांति अपमानित करने में सफलता न मिलने का कष्ट कुछ लोगों की रातों की नींद उडाता रहता है ! और वे कुछ मुट्ठी भर लोग भलीभांति जानते हैं कि अब मैं उनके समक्ष याचक बनकर कभी नहीं आने वाला।
मित्रों ! मुझे ग्लानि इसकी है कि आज तथाकथित हिन्दुस्थान को प्राथमिकता देने वाली सरकार के शासन में हिन्दी हिन्दू और हिन्दुस्थान का ही निरन्तर अपमान किया जा रहा है। हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री जी ने कभी हमारे राजनैतिक प्रतिनिधि से अनौपचारिक रूप से कहा था कि-“मंगल पाण्डे चौक पर मंगल पाण्डे जी,झांसी की रानी लक्ष्मीबाई,वीर सावरकर तीनों की मूर्ति लगवा देंगे ! किन्तु हमारी मांग एक चुनाव के पश्चात दूसरे चुनाव तक यथावत लम्बित ही रही।
संघ से लेकर बीजेपी तक सभी चाहते हैं कि केवल राम मन्दिर के नाम पर ! धारा-370 के नाम पर ! यूसीसी के नाम पर ! एक देश एक चुनाव के नाम पर-“फिर एकबार मोदी सरकार” किन्तु हम हिन्दी भाषी समुदाय के सामान्य लोग ! निम्न आयवर्ग के लोग ! चाय बागानों के श्रमिक ! नगरीय क्षेत्रों में रहने वाले सामान्य लोगों के भविष्य की चिंता किसे है ?
भगवान श्रीराम हमारे आदर्श हैं ! किन्तु मंगल पाण्डे जी किसके आदर्श हैं ? मैं जानता हूँ कि एकबार पुनश्च चुनावी आचार संहिता का विधवा प्रलाप होगा ! और हमें पुनश्च मूर्ख बना दिया जायेगा ! यह सरकार पांच दस हजार नकली किसानों की उस भीड़ से समझौता करना चाहती है जो हांथों में डंडे ! पाॅकेट में पिस्टल तीर धनुष,भाले और तलवार लेकर ! बुलडोजर,जेसीबी जैसी भारी भरकम मशीनों को लेकर हमारे निहत्थे पुलिस प्रशासन पर हमले कर रही है ! और हमारे जैसे संघ और बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं की छोटी छोटी मांगों को निष्ठुरता पूर्वक ठुकरा दिया जाता है ? मित्रों ! आज बडे बडे भू माफियाओं की समस्या सुलझा दी जाती है ! विभिन्न यूनियन के नेताओं के घर भर दिये जाते हैं ! सरकार के पिछलग्गू पत्रकारों के घर उपहारों से और उनके समाचार पत्र राजकीय विज्ञापनों से पाट दिये जाते हैं ! प्रति तीन चार महीने में गलियों में खडंजे बिछाये और उखाड़ दिये जाते हैं ! सडकें बनते बनते टूट जाती हैं,धंस जाती हैं ! उनके टेण्डर सरलता पूर्वक मनमाने ठेकेदारों को आवंटित कर दिए जाते हैं ! महान ईमानदार अर्थात सरकारी ईमानदार लोगों की कोठियां पर कोठियां और नये नये विवाह घर,होटल बनते जाते हैं ! बस एक अदद मंगल पाण्डे जी की मूर्ति स्थापना नहीं हो पाती ? बस हिन्दी भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाती ! अर्थात हम हिन्दी भाषी लोग सरकार की दृष्टि में ! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दृष्टि में-“अस्पृश्य” हैं। यह मेरा दुर्भाग्य है कि आयु के उस पडाव पर आ चुका जहाँ आकर अब शरीर लेखनी का साथ नहीं देता ! अपने समुदाय का मार्गदर्शन भला मेरे जैसा अशिक्षित क्या कर सकता है ! अशिक्षा का अभिशाप तो मैं झेल ही रहा हूँ ! बांग्ला,अंग्रेजी पढनी बोलनी नहीं आती ! और-“हिन्दी” हमारी पीढियों को पढाई नहीं जाती ! हमारे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जी ! हमारे असम के शिक्षामंत्री जी वंदे भारत ट्रेन की तरह फर्राटे से हिन्दी बोलते हैं ! मंचों से हिन्दी पढने सीखने और बोलने का-“मंत्र” देते हैं ! हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अमर बलिदानी लोगों के नाम की सौगन्ध खाते-खिलाते हैं ! किन्तु हिन्दी के विद्यालयों का बांग्ला करण होते चुपचाप देखते रहते हैं ! हिन्दी शिक्षकों की नियुक्ति के नाम पर मौन व्रत धारण कर लेते हैं ! अमर बलिदानी मंगल पाण्डे जी की मूर्ति स्थापना के नाम पर आचार संहिता की दुहाई देते हैं किन्तु अन्यान्य लोकलुभावन झूठी घोषणाओं और आश्वासनों का -“भानुमति का पिटारा” खोल कर रख देते हैं ! मित्रों मुझे स्मरण आता है कि एकबार एक व्यक्ति को समुद्र के तट पर एक शंख मिला ! और आकाशवाणी हुयी अर्थात-“मन की बात” हुयी की इस शंख से जो माँगोगे वही मिलेगा ! इतना ही नहीं अपितु उससे दुगुना मिलेगा ! उस व्यक्ति ने कहा -“दो पांच हजार! शंख से आवाज आई-लो दस हजार ! किन्तु मिला कुछ नहीं ! फिर उस व्यक्ति ने कहा दो बीस हजार ! शंख ने चीखकर कहा- लो चालिस हजार ! किन्तु मिला कुछ नहीं और ऊपर से ये आवाज आयी ! वत्स ! चुनाव बीत चुके ! इस शंख का नाम-“ढपोर शंख” है इसे किसी को बताना मत ! लोग तुम्हारा ही उपहास करेंगे ! केवल इतना स्मरण रखना ! अगले चुनाव में अर्थात 2029 में पुनश्च यह शंख तुम्हारे बच्चों के काम आयेगा-क्रमशः …..आनंद शास्त्री शिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″