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भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘इसरो’ जहां एक ओर वर्ष 2028 में चंद्रयान-4 मिशन को लांच करने की तैयारी कर रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘ नासा’ ने अपने महत्वकांक्षी चंद्र मिशन को रद्द कर दिया है। इसके पीछे आखिर कारण क्या हैं ? भारत अपने चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-4’ के तहत जहां चंद्रमा की चट्टानों और वहां की मिट्टी को इकट्ठा करके उन्हें वापस धरती पर लाने की दिशा में लगातार कार्य कर रहा है, वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा ‘ ने इस बात को लेकर संपूर्ण विश्व को चौंकाया है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ और अन्य संसाधनों की खोज के लिए प्रस्तावित आर्टेमिस चंद्र रोवर (वीआईपीईआर) मिशन पर नासा लगभग 450 मिलियन डॉलर (37 हजार 650 करोड़ रुपए) खर्च कर चुका है और कुल लागत 610 मिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो कि वास्तव में एक बहुत बड़ी धनराशि है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार वीआईपीईआर को पहले वर्ष 2023 में लॉन्च करने की योजना थी, लेकिन वर्ष 2022 में नासा ने इसे वर्ष 2024 के अंत तक टाल दिया, ताकि ग्रिफिन लैंडर वीकल के प्री-फ्लाइट टेस्ट के लिए ज्यादा समय मिल सके। इसके बाद लॉन्चिंग की तारीख वर्ष 2025 तक बढ़ाई गई और अब इसे रद्द करना पड़ा है। अनुमान के मुताबिक मिशन के पूर्ण होने तक इसकी लागत 609.6 मिलियन डॉलर (50, 950 करोड़ रुपए) तक पहुंच जाती। बहरहाल, यदि हम यहां बजट की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2023 और 2024 के लिए नासा का बजट क्रमशः 25.4 बिलियन डालर तथा वित्तीय वर्ष 2024 के लिए 24.875 बिलियन डालर है। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि वित्त वर्ष 2024 का बजट पिछले वर्ष के बजट से 2% कम है। बिडेन प्रशासन ने 2024 के वित्तीय वर्ष के लिए 27.2 डालर बिलियन का बजट प्रस्तावित किया था, जो 2023 की तुलना में 7.1% अधिक है। वहीं दूसरी ओर इस साल फरवरी में घोषित अंतरिम बजट में भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अंतरिक्ष विभाग को 13,042.75 करोड़ रुपये आवंटित किए। यह पिछले वर्ष के बजट से 498.84 करोड़ रुपये की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। हालांकि, यहां यह बात उल्लेखनीय है कि ‘इसरो’ के पास ‘नासा’ या विश्व की बाकी अन्य एजेंसियों की तरह ढेर सारे संसाधन और बहुत बड़ा बजट उपलब्ध नहीं है, लेकिन सीमित बजट में ही प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों, तकनीकी, लगातार मेहनत से हमारा इसरो अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल कर रहा है। कम बजट में भी बेहतरीन परिणाम इसरो के वैज्ञानिक देते रहे हैं और इस वजह से इसरो पूरी दुनिया के लिए उदाहरण बन गया है। हालांकि यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विकासशील देश की दृष्टि से इसरो के लिए सरकार के पास फंड की कोई कमी नहीं है, लेकिन विकसित देश अमेरिका की तुलना में हमारे देश का स्पेस बजट कम ही है। जिस प्रकार से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने चंद्र मिशन को रद्द किया है, उससे यह प्रतीत होता है कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा फंड की किल्लत का सामना कर रही है। न सिर्फ उसका बजट घटता जा रहा है। अलबत्ता, उसे अपने स्पेस प्रोग्रामों के लिए जितना पैसा चाहिए वह भी नहीं मिल पा रहा है। एक जानकारी के अनुसार नासा ने वित्त वर्ष 2024 (अक्टूबर 2023 – सितंबर 2024) में अपने सभी मिशन, स्पेस एक्सप्लोरेशन और ऑपरेशन के लिए लगभग 27 अरब डॉलर का अनुरोध किया था। लेकिन, इसके मुकाबले उसे लगभग 9% कम रकम मिली। पिछले वर्ष की तुलना में यह 2% कम थी। अब वित्त वर्ष 2025 के लिए उसने जो बजट अनुरोध रखा है, वह पिछले साल की मांग से 2 अरब डॉलर कम है। वास्तव में, यहां यह बात सोचनीय है कि आखिर नासा को अपने स्पेस कार्यक्रम के लिए जितने पैसे की जरूरत है उतना उसे क्यों नहीं मिल पा रहा है? शायद इसके पीछे कारण अमेरिकी सरकार पर कर्ज का बोझ हो सकता है। इधर यदि हम इसरो की बात करें तो हमारे देश का इसरो अंतरिक्ष कार्यक्रमों के मामले में कभी भी किसी देश के साथ होड़ नहीं करता बल्कि वह तो अपनी प्रतिभा, लग्न व जुनून में विश्वास करता है और कम लागत में भी बेहतरी को अग्रसर है। यह हम भारतीयों को गौरवान्वित महसूस कराता है। यहां पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि विकासशील देश होते हुए भी हमारे यहां स्पेस मिशन के लिए बजट की भी कोई कमी नहीं है। उल्लेखनीय है कि नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ की स्थापना वर्ष 1958 में जबकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। इसरो के संस्थापक विक्रम साराभाई थे। पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसरो दुनिया की सबसे कम लागत वाली अंतरिक्ष एजेंसी है। हमारा देश जुनून, मेहनत में विश्वास करता है। सच तो यह है कि भारत की स्पेस एजेंसी ‘इसरो’ की सफलता की वजह ही, ‘प्रतिभा, लगन और जुनून’ है । पाठकों को याद होगा कि चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। आने वाले समय में इसरो की योजना मंगलयान-2 और शुक्र मिशन जैसे प्रोग्रामों को अंजाम तक पहुंचाने की है। सूर्य मिशन पर भी काम किया जा रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि चंद्रयान-3 की सफलता के बाद एक बार फिर अंतरिक्ष के क्षेत्र में पूरी दुनिया हमारा लोहा मान गई है। हालांकि, अंतरिक्ष और विज्ञान से जुड़ा दूसरा बड़ा नाम दिमाग में ‘नासा’ का ही आता है, जो अमेरिका की स्पेस एजेंसी है। इसरो के सभी सफल स्पेस मिशन्स के बाद यह चर्चा भी जोर पकड़ती है कि क्या इसरो नासा को टक्कर दे रहा है, या फिर कम बजट और संसाधनों के बावजूद अंतरिक्ष में सफलता पाने वाला इसरो नासा से बेहतर है। नासा और इसरो के अलावा भी रूस और चीन जैसे देशों की स्पेस एजेंसियां अंतरिक्ष विज्ञान में नए-नए प्रयोग कर रही हैं, लेकिन नासा का नाम सबसे ऊपर है। अब सामने आ रहा है कि एक से एक महंगे मिशन भेज चुका नासा इस बार आर्टेमिस मिशन को आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं है और इधर खर्च के लिहाज से इसरो ने नासा के मुकाबले काफी कम कीमत पर बड़ी सफलता हासिल की है क्योंकि जिस चंद्र मिशन पर अमरीका अब तक 37 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर चुका, इतने में भारत 1200 बार चंद्रमा पर अपना मिशन भेज सकता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से पिछले वर्ष भेजे चंद्रयान-3 पर लगभग 615 करोड़ रुपए की लागत आई थी। सच में अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो का कोई जबाब नहीं है। आने वाले समय में इसरो और भी अधिक अंतरिक्ष उपलब्धियों के साथ विश्व में सबसे आगे होगा, ऐसा विश्वास ही नहीं बल्कि पूर्ण आशा है।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार।
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