प्रस्तावना
भारत एक विविधता-पूर्ण राष्ट्र है, जिसमें संस्कृति, धर्म, भाषा, भूगोल, आर्थिक संरचना—सबका समन्वय समाया हुआ है। ‘विकासशील’ या ‘विकसित’ देश की परिभाषा मात्र आर्थिक अभिवृद्धि अथवा प्रति-व्यक्ति आय तक सीमित नहीं है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य-सेवाएँ, सामाजिक न्याय, बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर), पर्यावरणीय स्थिरता, तकनीकी प्रगति, नवाचार, राजनीतिक स्थिरता, संस्थागत क्षमता और जन-सहभागिता जैसे कई आयामों से जुड़ा हुआ है। अतः यह चर्चा सम्यक रूप से यही प्रयास है कि भारत की वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ, उपलब्धियाँ और उसके सामने विकास-मार्ग की संभावनाओं को सब पक्षों से आत्मसात करने का प्रयास हो।
- परिभाषा: “विकासशील”और “विकसित” की अवधारणा
1.1 “विकासशील” देश (Developing Country)
आमतौर पर निम्न-आय (low-income) या मध्यम-आय (middle-income) देश जिन्हें औद्योगिक स्तर, मानव विकास सूचकांक (HDI), जीवन स्तर, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के स्तर में सुधार की आवश्यकता होती है।
तकनीकी दक्षता, औद्योगिक आधार, आर्थिक संरचना और सामाजिक संकेतकों में मध्यम स्तर के होते हैं।
1.2 “विकसित” देश (Developed Country)
उच्च-आय (high-income) देश जिनमें प्रति-व्यक्ति आय बहुत अधिक होती है; शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा उच्च स्तर पर; संस्थागत स्थिरता, शहरीकरण, नवाचार, वैज्ञानिक-तकनीकी आधार मजबूत सामाजिक सुरक्षा, न्याय, पारदर्शिता, पर्यावरण-खेप, डिजिटल संरचना आदि मजबूत रहते हैं।
भारत यदि विकसित बनना चाहता है, तो उसे उपरोक्त सभी क्षेत्रों में क्रमश: सुधार करना होगा।
- आर्थिकआयाम
2.1 आर्थिक विकास और GDP वृद्धि
पिछले तीन दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि दर उल्लेखनीय रही है—1990 के दशक के सुधारों (लिबरलाइज़ेशन, निजीकरण, वैश्वीकरण) के बाद औसत वार्षिक वृद्धि दर 6–8 % रही है। आज भारत दुनिया की पाँचवीं-छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
लेकिन विकसित स्तर तक पहुँचने के लिए भारत को स्थायी, समावेशी और गुणवत्तापूर्ण विकास दर (वार्षिक 8–9 %) की दर से भी ज़्यादा निरंतर वर्ष दर वर्ष चाहिए।
2.2 प्रति-व्यक्ति आय और असमानता
भारत की प्रति-व्यक्ति आय अभी भी विकासशील देश की श्रेणी में है। ग्लोबल स्तर पर विकसित देशों में प्रति-व्यक्ति आय अमेरिकी डॉलर में 40–60 हजार या उससे अधिक होती है, जबकि भारत में यह लगभग 2–3 हजार डॉलर प्रति वर्ष है (इसमें सटीक आंकड़े समय-समय पर बदलते हैं)।
इसके अलावा आय-असमानता, क्षतीय असमानता, ग्रामीण-शहरी असमानता, जातिगत एवं लैंगिक असमानता बहुत गहरी है।
इन्हें दूर करना एक बुनियादी चुनौती है।
2.3 औद्योगिक बुनियादी ढाँचा और नौकरियाँ
भारत में सेवा क्षेत्र (IT, वित्त, व्यापार-वाणिज्य) में जबरदस्त वृद्धि हुई है, पर विनिर्माण (manufacturing sector) अपेक्षाकृत सीमित रहा। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं ने प्रयासों को गति दी है। हालांकि रोजगार-सृजन, MSMEs (सूक्ष्म-लघु उद्योग), MSME नेटवर्क, निजी निवेश, निर्यात वृद्धि आदि में निरंतर सुधार हुआ है।
विकसित स्तर पर पहुँचने के लिए भारत को विनिर्माण और कृषि दोनों क्षेत्रों में ‘उच्च उत्पादकता’, ‘मूल्य-वर्धित उत्पादन’ और ‘गुणवत्ता-नियंत्रण’ लाना होगा।
- सामाजिकआयाम
3.1 शिक्षा
भारत में शिक्षा प्रणाली व्यापक ढंग से फैली है—कक्षा-एक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक रोज़ लाखों विद्यार्थी पढ़ते हैं।
लेकिन साक्षरता दर तो बढ़ी है, शैक्षिक गुणवत्ता, अध्यापन-प्रणाली, पठन-पाठन–स्तर, डिजिटल शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण (skilling), मगर सीमित संसाधन और अनियमितता (like खाली स्कूल, शिक्षक अनुपस्थिति, अपर्याप्त छात्र-शिक्षक अनुपात आदि) जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
विकसित राष्ट्र बनने के लिए भारत को शिक्षा की सार्वभौमिकता के साथ गुणवत्ता, नवाचार, शोध एवं कौशल-प्रशिक्षण पर भी बल देना होगा।
3.2 स्वास्थ्य
स्वास्थ्य देखभाल में प्रगति हुई है—शिशु मृत्यु दर (infant mortality), मातृ मृत्यु दर (maternal mortality), टीकाकरण कवरेज आदि में सुधार आया है।
लेकिन स्वास्थ्य-संरचना में असमानता (ग्रामीण-शहरी, राज्य-राज्य में), जन-स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर (primary health centers), विशेषज्ञता, डॉक्टर-बेड अनुपात, ग्रामीण अस्पताल प्रणालियाँ, बीमा-कवरेज (जन-आयुष्मान योजना आदि) में अभी काफी काम बाकी है।
विकसित स्तर पर पहुँचने के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा (UHC), टिकाऊ बीमा, डिजिटल हेल्थ (जैसे eSanjeevani), स्वच्छता और पोषण रणनीतियों को और मज़बूती से लागू करना जरूरी है।
3.3 सामाजिक न्याय और समावेशन
भारत की सामाजिक संरचना में जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग, आर्थिक वर्ग, आदिवासी/पीछड़े वर्गों में अंतर गहरा है।
आरक्षण, सामाजिक कल्याण योजनाएँ, Adhaar-बीमा योजनाएँ, डिजिटल लाभ-वितरण, PDS, महिलाओं-अनुचित अवस्था में महिलाओं को सशक्त करना, LGBTQ+ समुदाय आदि के अधिकार सुनिश्चित करना—इन सभी क्षेत्रों में काम चलता रहा है, लेकिन जमीन पर सूक्ष्मता से सुनियोजित सुधार आवश्यक हैं।
विकसित राष्ट्र का मतलब है—सभी वर्गों को सशक्त, सम्मानित, और सुरक्षित महसूस कराना।
- राजनीतिक-संस्थागतआयाम
4.1 लोकतंत्र और न्यायपालिका
भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। नियमित और शांतिपूर्ण चुनाव, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता जैसी संस्थागत विशेषताएँ गारंटी हैं।
परन्तु न्यायपालिका में लंबित मामले, धीमा पारदर्शी प्रक्रिया, सस्ता और तेज़ न्याय (access to justice) जैसी चुनौतियाँ हैं।
विकसित राष्ट्र के लिए नयायपूर्ण, त्वरित और सबके लिए सुलभ न्याय की दृष्टि से सुधार ज़रूरी है।
4.2 सरकारी व्यवस्था और भ्रष्टाचार
भारत ने सूचना का अधिकार (RTI), जीएसटी, डिजिटलीकरण, ऑनलाइन सेवाएँ, वित्तीय शाखीय विभाजन (मिशन मोड), विभिन्न मंत्रालयों में इंफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ाया है।
फिर भी भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, लाभ-वितरण में बाधाएँ, प्रणालीगत देरी मौजूद हैं।
विकसित बनाने के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही, डिजिटल-गवर्नेंस, नागरिक भागीदारी को और सशक्त करना पड़ेगा।
- तकनीकी,नवाचार और डिजिटल आयाम
5.1 डिजिटल क्रांति
भारत में डिजिटलीकरण तेज़ी से बढ़ा—Aadhaar, UPI, ऑनलाइन बैंकिंग, डिजिटल भुगतान, मोबाइल-वित्त, DigiLocker, CoWIN, e-governance, वगैरह।
इसने लाखों लोगों को वित्त-सेवा, बैंकिंग, सरकारी लाभ, प्रमाण-पत्र, स्वास्थ्य-सेवा तक पहुँचाने में मदद की।
यह विकसित देशों की तकनीकी दक्षता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
5.2 अनुसंधान-और-विकास (R\&D), स्टार्ट-अप इकोसिस्टम
भारत अब ग्लोबल स्टार्ट-अप हब बनता जा रहा है—आईडीबीआई, सेंटर ऑफ इनोवेशन, T-hub, Atal Innovation Mission, numerous unicorns। विज्ञान, अंतरिक्ष, परमाणु, कृषि, IT, जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भी अनुसंधान एक्शन लिया गया है।
किन्तु R\&D पर खर्च GDP के 2–3 % तक (कुछ विकसित देशों में 3–4 % से भी अधिक होता है) पहुँचाने, योग्य शोधकर्ताओं और संस्थानों तथा पेटेंट, उच्च गुणवत्ता-अनुसंधानों को बढ़ावा देने की आवश्यकता बनी हुई है।
5.3 तकनीकी विभाजन (Digital Divide)
शहरों में इंटरनेट-सेवा, स्मार्टफोन, 4G-5G कवरेज अच्छे हैं, लेकिन ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में नेटवर्क धीमा, बजट उपकरण और डिजिटल साक्षरता की कमी समाज में विभाजन





















