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क्या माइक्रोप्लास्टिक बिगाड़ रहा दिल्ली की सेहत ?

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जहरीली हवा ने जहां एक ओर दिल्ली वालों की दिनचर्या बदल दी है, वहीं दूसरी ओर प्रदूषित हवा ने बच्चों, बुजुर्गों समेत महिलाओं के समक्ष अनेक प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं खड़ी कर दीं हैं।सच तो यह है कि साल दर साल राजधानी में प्रदूषण से परेशानियां बढ़ती ही चली जा रही हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली पिछले कई वर्षों से प्रदूषण की मार झेल रही है। यहां तक कि गर्भस्थ शिशुओं तक पर प्रदूषण का व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। इस क्रम में यदि हम जन्म पंजीकरण के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले वर्ष जन्म लेने वाले 30.31 प्रतिशत नवजात शिशुओं का वजन दो किलोग्राम तक था। वहीं, वर्ष 2023 में यह आंकड़ा 31.54 प्रतिशत था। गौरतलब है कि जन्म के समय नवजात का वजन ढाई किलोग्राम से कम हो तो उसे सामान्य से कम माना जाता है। ऐसे में जन्म के समय सामान्य से कम वजन वाले नवजात शिशुओं की संख्या 30-31 प्रतिशत से अधिक है। इतना ही नहीं, एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में छपी एक खबर के अनुसार चांदनी चौक की हवा में प्लास्टिक के कण भी पाये गये हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जैसा कि दैनिक ने लिखा है-‘चेन्नई और मुंबई की तुलना में कोलकाता और दिल्ली की आबोहवा में माइक्रो प्लास्टिक की मौजूदगी कहीं अधिक है। इस वजह से इन दोनों शहरों की हवा में प्लास्टिक के ऐसे सूक्ष्म अंश अधिक हैं, जो सांस के जरिये शरीर में पहुंच सकते हैं। इस तरह के आइएमपी (सांस के साथ शरीर में पहुंचने योग्य माइक्रो प्लास्टिक) का कोलकाता में स्तर 14.23 माइक्रोग्राम घन मीटर और दिल्ली में 14.18 माइक्रोग्राम घन मीटर पाया गया। चेन्नई और मुंबई के वातावरण में इसकी मौजूदगी बहुत कम रही।’ बताता चलूं कि खराब कूड़ा प्रबंधन इसके लिए जिम्मेदार है । वास्तव में, सर्दी के मौसम में प्रदूषण बढ़ने के साथ हवा में माइक्रो प्लास्टिक का स्तर भी 14 से 71 प्रतिशत बढ़ जाता है। दरअसल,यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि सर्दियों में कूड़े का ठीक से प्रबंधन नहीं हो पाता और लोग सिंथेटिक कपड़े ज्यादा पहनते हैं। ठंड की वजह से हवा नीचे ही अटकी रहती है, जिससे प्रदूषण ऊपर नहीं उठ पाता। इस मौसम में पैकेट वाले खाने और प्लास्टिक वाले सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल भी बढ़ जाता है, जिससे प्लास्टिक कूड़ा ज्यादा बनता है। दिल्ली के चांदनी चौक और सरोजिनी नगर जैसे बाजारों में हवा में माइक्रोप्लास्टिक ज्यादा पाया गया है। बहरहाल, क्या यह चिंताजनक बात नहीं है कि

राजधानी में 22 स्थानों पर प्रदूषण का स्तर हाल ही में 400 पार कर गया।केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, 19 नवंबर 2025 को बुधवार के वायु गुणवत्ता सूचकांक में 18 नवंबर 2025 मंगलवार की अपेक्षा लगभग 20 अंकों की वृद्धि दर्ज की गई। गौरतलब है कि मंगलवार को मानक एक्यूआई 374 दर्ज किया गया, जबकि बुधवार को यह 392 दर्ज किया गया। शाम 7 बजे 22 जगहों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 से ऊपर दर्ज किया गया, जो कि गंभीर श्रेणी में आता है। वास्तव में,

हवा की गति कम, तापमान में गिरावट और आंशिक रूप से बादल छाए रहने के कारण राजधानी में प्रदूषण के स्तर में लगातार पिछले कुछ दिनों से एक्यूआई 300 से अधिक है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राजधानी में बुधवार की सुबह 8 बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 391 दर्ज किया गया। इसी के साथ दिल्ली में लगातार छठे दिन वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में रही। बहरहाल, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली और दिल्ली एनसीआर के कई क्षेत्र लगातार शामिल होते रहे हैं। यहाँ सर्दियों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब स्तर तक पहुँच जाती है, क्योंकि वाहन धुआँ, औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण धूल और आसपास के राज्यों में पराली जलने का असर मिलकर प्रदूषण बढ़ा देते हैं। ठंडी हवा और कम हवा की रफ्तार प्रदूषित कणों को जमीन के पास रोके रखती है, जिससे पीएम₂.₅ और पीएम₁₀ का स्तर तेजी से बढ़ जाता है। दिल्ली के साथ-साथ नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद भी अक्सर ‘बहुत खराब’ या ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुँच जाते हैं। इस प्रदूषण से साँस और हृदय संबंधी बीमारियाँ बढ़ती हैं और बच्चों-बुजुर्गों पर इसका सबसे ज्यादा असर होता है। लगातार बढ़ते प्रदूषण ने दिल्ली-एनसीआर को वैश्विक स्तर पर अत्यधिक प्रदूषण प्रभावित क्षेत्र बना दिया है। इसी क्रम में हाल ही में शीर्ष अदालत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों को नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित खेल स्पर्धाएं स्थगित करने का निर्देश देने पर भी विचार करने को कहा है। गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान न्यायमित्र एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने पीठ को बताया कि एनसीआर के कई स्कूल नवंबर में भीषण वायु प्रदूषण के बीच खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा, जब बड़े लोग एयर प्यूरीफायर चालू करके बंद जगहों पर बैठे होते हैं, तो बच्चे खुले ‘गैस चैंबर’ में खेल प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे होते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। इसके बाद, मुख्य न्यायाधीश गवई ने सीएक्यूएम से कहा, स्कूलों में खेल गतिविधियों को सुरक्षित महीनों में आयोजित कराने पर विचार करने को कहा। बहरहाल,सरल शब्दों में कहें तो हर साल ठंड शुरू होते ही विशेषकर नवंबर , दिसंबर और जनवरी के महीनों में दिल्ली-एनसीआर की हवा इतनी खराब हो जाती है कि लोगों का स्वस्थ रहना मुश्किल हो जाता है, लेकिन दुख की बात यह है कि लगातार बढ़ती इस समस्या को रोकने के लिए प्रभावी व कारगर कदम उठाने के बजाय अलग-अलग स्तर पर लापरवाही दिखाई देती है, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है।ऐसे समय में यह चाहिए कि स्कूल-कालेज बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खेलकूद या बाहरी गतिविधियों के लिए साफ-सुथरे नियम बनाएं, ताकि बच्चे जहरीली हवा से बच सकें। मगर अक्सर होता यह है कि कार्यक्रम बनाते समय प्रदूषण के खतरे को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे बच्चों की सेहत पर और ज्यादा असर पड़ता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दियों की शुरुआत के साथ हवा इतनी जहरीली हो जाती है कि बच्चों के लिए बाहर खेलना भी खतरे से भरा हो जाता है। इसके बावजूद कई बार स्कूल और अधिकारी खेल गतिविधियों की योजना बनाते समय इस स्थिति को नजरअंदाज कर देते हैं।इसी वजह से माननीय सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से कहा कि वह नवंबर-दिसंबर में होने वाली स्कूलों की खेल प्रतियोगिताएँ सुरक्षित महीनों तक टालने पर विचार करे। इसके बाद आयोग ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और यूपी(उत्तर प्रदेश) जैसे राज्यों को यह सलाह दी है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए इस दौरान होने वाली शारीरिक और खेल गतिविधियाँ स्थगित की जाएँ, जैसा कि सर्दियों में धुंध, ठंड और प्रदूषण बढ़ने से दिल्ली-एनसीआर की हवा कई बार गैस चेंबर जैसी हो जाती है और साफ हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। वास्तव में, दिल्ली और दिल्ली-एनसीआर में हाल के महीनों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब स्तर पर बनी हुई है। कई इलाकों में एक्यूआइ (एयर क्वालिटी इंडेक्स) अक्सर 300 से 400 के बीच दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है, जबकि कुछ स्थानों पर यह 400 से ऊपर पहुंचकर ‘गंभीर’ स्तर तक पहुंच गया। मीडिया में उपलब्ध खबरों से जानकारी मिलती है कि दिवाली और ठंड की शुरुआत के दौरान प्रदूषण और तेजी से बढ़ गया, जिससे पीएम 2.5 जैसे खतरनाक कणों का स्तर राष्ट्रीय मानकों से दो से तीन गुना तक अधिक पाया गया। वातावरण में इन सूक्ष्म कणों की मौजूदगी आंखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत और फेफड़ों पर या यूं कहें कि हमारे स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है। दिल्ली-एनसीआर के कई मॉनिटरिंग स्टेशनों ने लगातार कई दिनों तक खराब-से-अत्यधिक खराब हवा दर्ज की, जो बताता है कि सुधार की कोशिशों के बावजूद हालात स्थिर नहीं हो पा रहे। हालांकि, साल के कुछ महीनों में औसत एक्यूआइ में मामूली सुधार देखने को मिला, लेकिन सर्दियों के दौरान हवा की गुणवत्ता फिर तेज़ी से गिर जाती है। कुल मिलाकर, यह स्थिति शहर के बच्चों, बुज़ुर्गों और अस्थमा या हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा करती है और साफ हवा सुनिश्चित करने के लिए लगातार, सख्त और समन्वित प्रयासों की जरूरत को रेखांकित करती है। निष्कर्षतः, यह बात कही जा सकती है कि बढ़ते प्रदूषण के बीच बच्चों की सेहत को प्राथमिकता देना अनिवार्य है। अदालतों की सख्त टिप्पणियों के बावजूद स्कूलों में खेल गतिविधियाँ न रोकना स्पष्ट लापरवाही है। सर्दियों में जब कई शहरों की हवा ‘गंभीर’ स्तर पर पहुँच जाती है, तब एकरूप और कड़ी नीति लागू करना ही इस समस्या से निपटने का व्यावहारिक समाधान है। वास्तव में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए सबसे पहले स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना जरूरी है, ताकि कोयला, डीज़ल और पेट्रोल से होने वाले उत्सर्जन में कमी आए। दूसरा, सार्वजनिक परिवहन को मजबूत कर लोगों को निजी वाहनों की जगह बस, मेट्रो और साझा यातायात का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। तीसरा प्रभावी उपाय औद्योगिक इकाइयों में उत्सर्जन नियंत्रण उपकरण लगाना है, जिससे धुआं और हानिकारक गैसों को फिल्टर करके ही हवा में छोड़ा जा सके। चौथा, हरित क्षेत्र और पेड़-पौधों की संख्या बढ़ाना हवा की गुणवत्ता सुधारने में बेहद सहायक है, क्योंकि ये प्रदूषक कणों को सोख लेते हैं। अंत में, कचरा प्रबंधन और पराली जलाने पर सख्त नियंत्रण व जागरूकता जरूरी है, ताकि धुएं और जहरीले कणों के फैलाव को रोका जा सके।

 

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार

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