फॉलो करें

क्यों कहते है दोस्ती हो तो  कृष्ण और सुदामा जैसा? –  डॉ. बी. के. मल्लिक

19 Views
जब दोस्ती की बात होती है तो कृष्ण और सुदामा का नाम जरूर आता है। सुदामा ने कृष्ण के लिए इतना बड़ा त्याग किया कि वो खुद दरिद्र बन गया। कुछ लोगों का मानना है कि कृष्ण ने सुदामा को दरिद्र होने का श्राप दिया था यह बात बिल्कुल ही गलत है। बल्कि सच्चाई यह है कि सुदामा ने श्री कृष्ण के लिए इतना बड़ा त्याग किया जिससे वह खुद दरिद्र हो गया और श्री कृष्ण द्वारकाधीश बन गए। ब्राह्मण ज्ञान और त्याग का प्रतीक होता है और इसमें ब्राह्मण के सभी गुण मौजूद हैं। सुदामा को मैं भगवान से भी ज्यादा प्रेम करता हूं।
इस प्रसंग में द्वारकाधीश श्री कृष्ण अपने रानी के साथ संवाद कर रहे हैं जिसका कुछ अंश में प्रस्तुत कर रहा हूं। जब सुदामा जब द्वारका पूरी पहुंचता है तो अपने मित्र के लिए चावल का भुज लेकर के जाता है।  श्री कृष्ण जैसे ही द्वारकाधीश ने तीसरी मुट्ठी चांवल उठाकर फाँक लगानी चाही, रुक्मिणी जी ने जल्दी से उनका हाथ युग पकड़ कर कहा?  क्या भाभी के बनाए इन स्वादिष्ट चावलों के स्वाद का सारा सुख अकेले ही उठाएंगे स्वामी ? हमें भी तो ये सुख उठाने का अवसर दीजिए।  द्वारकधीश के अधरों पर एक अर्थपूर्ण स्मित उपस्थित हो गयी। उन्होंने चावल वापस उसी पोटली में डाले और उठाकर अपनी पटरानी को दे दिया। सुदामा के साथ बातें करते हुए कब कृष्ण उनके पाँव दबाने लगे ये सुदामा को पता ही नहीं चला।  सुदामा सो चुके थे किंतु कृष्ण अपनी ही सोच में मगन उनके पाँव दबाते हुए बचपन की बातें करते चले जा रहे थे कि तभी रुक्मिणी जी ने उनके कंधे पर हाथ रखा।  कृष्ण ने चौंक कर पहले उन्हें देखा और फिर सुदामा को फिर उनका आशय समझकर वहाँ से उठकर अपने कक्ष में चले आये। कृष्ण की ऐसी मगन अवस्था देखकर रुक्मिणी ने पूछा, स्वामी आज आपका व्यवहार बहुत ही विचित्र प्रतीत हो रहा है। आप जो इस संसार के बड़े से बड़े सम्राट के द्वारका आने पर उनसे तनिक भी प्रभावित नहीं होते हैं अपने मित्र के आगमन की सूचना पर इतने भाव-विह्वल हो गए कि भोजन छोड़कर नंगे पाँव उन्हें लेने के लिए भागते चले गए। जिनको कोई भी दुख, कष्ट या चुनौती कभी रुला नहीं पाई यहाँ तक कि जो गोकुल छोड़ते समय मैया यशोदा के अश्रु देखकर भी नहीं रोये वे अपने मित्र के जीर्ण शीर्ण घावों से भरे पाँवों को देखकर इतने भावुक हो गए कि अपने अश्रुओं से ही उनके पाँवों को धो दिया।
कूटनीति, राजनीति और ज्ञान के शिखर पुरुष आप, अपने मित्र को देखकर इतने मगन हो गए कि बिना कुछ भी विचार किये उन्हें समस्त त्रैलोक्य की संपदा एवं समृद्धि देने जा रहे थे। कृष्ण ने अपनी उसी आमोदित अवस्था में कहा, वह मेरे बालपन का मित्र है रुक्मिणी। उन्होंने तो बचपन में आपसे छुपाकर वो चने भी खाये थे जो गुरुमाता ने उन्हें आपसे बाँटकर खाने को कहे थे अब ऐसे मित्र के लिए इतनी भावुकता क्यों हैं स्वामी ?
कृष्ण मुस्कुराये, सुदामा ने तो वह कार्य किया है कि समस्त सृष्टि को उसका आभार मानना चाहिए। वो चने उसने इसलिए नहीं खाये थे कि उसे भूख लगी थी अपितु उसने इसलिए खाये थे क्योंकि वो नहीं चाहता था कि उसका मित्र कृष्ण दरिद्रता देखे। उसे ज्ञात था कि वे चने आश्रम में चोर छोड़कर गए थे और उसे यह भी ज्ञात था कि उन चोरों ने वे चने एक ब्राह्मणी के गृह से चुराए थे। उसे यह भी ज्ञात था कि उस ब्राह्मणी ने यह श्राप दिया था कि जो भी उन चनों को खायेगा वह जीवन पर्यंत दरिद्र ही रहेगा।  सुदामा ने वे चने इसलिए मुझसे छुपाकर खाये ताकि मैं सुखी रहूँ।  वो मुझमे ईश्वर का कोई अंश समझता था तो उसने वे चने इसलिए खाये क्योंकि उसे लगा कि यदि ईश्वर ही दरिद्र हो जायेगा तो संपूर्ण सृष्टि ही दरिद्र हो जायेगी, सुदामा ने संपूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए स्वयं का दरिद्र होना स्वीकार किया।
इतना बड़ा त्याग…रुक्मिणी के मुख से स्वतः ही निकला।
मेरा मित्र ब्राह्मण है रुक्मिणी और ब्राह्मण ज्ञानी और त्यागी ही होते हैं, उनमें जन कल्याण की भावना कूट कूट कर भरी होती है, इक्का दुक्का अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो ब्राह्मण ऐसे ही होते हैं।
अब तुम ही बताओ ऐसे मित्र के लिए ह्रदय में प्रेम नहीं तो फिर क्या उत्पन्न होगा प्रिये ? गोकुल छोड़ते हुए मैं इसलिए नहीं रोया था क्योंकि यदि मैं रोता तो मेरी मैया तो प्राण ही छोड़ देती, परंतु मेरे मित्र के ऐसे पाँव देखकर उनमें ऐसे घावों को देखकर मेरा ह्रदय करुणा से भर आया रुक्मिणी, उसके पाँवों में ऐसे घाव और जीवन में उसकी ऐसी दशा मात्र इसलिए हुई क्योंकि वह अपने इस मित्र का भला चाहता था।
पता है रुक्मिणी, परिवार को छोड़कर किसी और ने कभी इस कृष्ण का इतना भला नहीं चाहा, लोग बाग तो मुझसे उनका भला करने की अपेक्षा रखते हैं, बस सुदामा जैसे मित्र ही होते हैं जो अपने मित्र के सुख के लिए स्वेच्छा से दरिद्रता एवं कष्ट का आवरण ओढ़ लेते हैं।
ऐसे मित्र दुर्लभ होते हैं और न जाने किन पुण्यों के फलस्वरूप मिलते हैं। अब ऐसे मित्र को यदि त्रैलोक्य की समस्त संपदा भी दे दी जाए तो भी कम होगा, श्रीकृष्ण अपने भावुकता से भरे भर्राये स्वर में बोले?
इधर कक्ष में समस्त रानियों के नेत्र सजल थे और उधर कक्ष के बाहर खड़े सुदामा के नेत्रों से गंगा यमुना बह रही थीं ।
डॉ बी के मल्लिक
लेखक एवं स्वतंत्र स्तंभकार
9810075792

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल