सत्ताईस जनवरी दो हजार इक्कीस – , गणतंत्र दिवस के बाद का सबेरा I कल संपन्न हुए गणतंत्र दिवस के प्रभात परेड की भव्यता , शान -शौकत और मान-मर्यादा दोपहर होते होते लाल किले की शर्मनाक घटनाओं के चलते मिटटी में मिल चुकी थी I आज वातावरण में अजीब सी नीरवता है I ठंड और धुंध दोनों है I घड़ी की सूई ६.३० बजे का इशारा कर रही है I मेट्रो के दौड़ने की आवाज कानों को साफ साफ सुनाई दे रही है I इन सब सामान्य सी लगने वाली प्रतिध्वनियों के बावजूद रह रह कर मेरी आँखों के समक्ष कल लाल किले में जबरदस्ती घुस कर उसके प्राचीर पर पहुँच कर ध्वज स्तम्भ पर चढ़ कर भारत की सम्प्रभुता को मुंह चिढ़ा कर एक दंगाई द्वारा तिरंगे कि जगह अन्य ध्वज और किसी संगठन का झंडा लहराने का दृश्य अभी भी कौंध रहा था I उसके बाद वहां हुई उद्दंडता ,उच्छंखृलता और हुड़दंग शायद ही कभी मन से हट पाये I उनकी क्या कहूं जो टी वी पर बैठ कर राजनीति की बड़ी बड़ी बातें करते हैं , ट्विटर पर निरंतर उलटबासियां टीपते रहते हैं , वीरता का दम्भ भरते हैं , प्रबल देश भक्ति का राग अलापते अघाते नहीं , अपने इतिहास ज्ञान का ढिंढोरा पीटते हैं , नेताजी सुभाष चंद्र बोस, .लौह पुरुष पटेल , राष्ट्र -पिता गाँधी और मिसाईल -पुरुष कलम साहिब से अपने वैचारिक सामिप्य का डंका बजाते रहते हैं पर हम जैसे सामान्य देश के हित चिंतक नागरिक ,आस्थावान प्रबुद्ध लोग और बर्फ जैसी सर्दी में देश की सीमाओं पर डटे सैनिकों के मन पर क्या बीत रही होगी यह ईश्वर ही जानता है I आग में घी डालने के बाद एक ढपोर शंख चिल्ला रहा था अशांति से किसी समस्या का हल नहीं होता I कल की पूरी घटना मन में सिहरन उत्पन्न करती है और साथ-साथ बहुत कुछ सीख भी देती है I
माना देश अंदर से मजबूत है I भावनात्मक रूप से पूरा देश उत्तर -दक्षिण ,पूर्व-पश्चिम एकता के सूत्र में बंधा हुआ है I उसने कोरोना जैसी विषम महाआपदा को बुद्धिमत्ता पूर्वक झेला उसका हल निकाला I अत्यधिक अल्प अवधि में वैक्सीन विकसित कर ली I विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण के सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने का श्रीगणेश किया है I मंगल ग्रह और चन्द्रमा तक अपने यान पहुंचा दिये हैं I चिनाब के ऊपर विश्व का सबसे बड़ा रेलवे पुल बना सकते हैं I यह सब उसकी वैज्ञानिक उत्कृष्टता का कमाल है I वीर जवान प्राण देकर भी देश की समस्त सीमाओं की विपरीति परिस्थितियों में अहर्निश रक्षा कर रहें हैं I यह मनस्तोष की बात है I किन्तु घर के अंदर बैठे इन दंगाइयों ,आतताइयों और दरिंदों से देश को कौन बचायेगा ? घर के अंदर छिपे इन भेड़ियों से कौन निपटेगा ? राजधानी दिल्ली कितनी सुरक्षित है यह प्रश्न अवश्य विचारणीय है I
मन के अंदर इन तमाम तूफानों के बीच मैं नित्य प्रति की भांति सैर पथ की तरफ चल दिया I रास्ते में एक क्षत विक्षत कपोत को देख कर मुझे छब्बीस जनवरी की दोपहरी पर लाल किले पर हुए वीभत्स और कुत्सित घटनाओं की स्मृति पुनः ताजी हो गयी I कपोत शांति का प्रतीक है I कहा जाता है कि इसी लाल किले के प्राचीर पर ध्वजारोहण के पश्चात भारत के प्रथम प्रधान मंत्री ने कबूतर उड़ा कर उसकी शांतिप्रियता का सांकेतिक सन्देश पूरे विश्व को दिया था I आज उसी लाल किले को खून का घूँट पीकर शान्ति खरीदनी पड़ रही है I मैं आभासी दुनिया में नहीं था I उस समय घट रही सच्चाई को मैंने दूरपट ( टी वी ) पर साक्षात देखा था I मैंने अपनी आँखों से देखा किस प्रकार किले की सुरक्षा में लगे पुलिस वालों को किले की खाई में धकेला जा रहा था I लाठियां ,लोहे की छड़ें , नंगी तलवारें भाजी जा रही थी I ट्रैक्टर को तेज गति से दौड़ा कर पुलिस दल को कुचलने का प्रयास हो रहा था I यूनेस्को द्वारा लाल किले को विश्व धरोहर बताने वाला शिलाखंड भी उन दंगाइयों के कोप भाजन का शिकार बन गया I उसे अपने स्थान से उखाड़कर भूलुंठित कर दिया गया I किले के अंदर जो कुछ भी दिखा उसे तोड़-फोड़ कर ठिकाने लगा दिया I वाह री अराजकता ? पूरा वातावरण लोमहर्षक था I मेरा मस्तिष्क और ह्रदय एक एक पल रोमांचित था I बार बार एक प्रश्न मन में उठ रहा था क्या इसी गणतंत्र के लिए अट्ठारह सौ सत्तावन से लेकर उन्नीस सौ सैतालिस और उसके बाद भी पाकिस्तान -चीन के साथ हुये कई युद्धों में अनगिनत लोगों ने अपनी कुर्बानियां दी I अनगिनत लोग शहीद हुये I नेताजी सुभाष चंद्र बोष सब कुछ त्याग कर द्वितीय विश्वयुद्ध की बारूद गोलों के बीच अंग्रेज सरकार की कड़ी सुरक्षा को धता -पता बता कर जर्मनी -जापान गये I आजाद हिन्द फ़ौज खड़ी की I अंग्रेजों के चंगुल से अंडमान-निकोबार द्वीप छुड़ाया I वहां तिरंगा लहराया I विमान दुर्घटना में आग की लपटों के बीच अपना सर्वस्व मातृभूमि को न्यौछावर कर दिया I आज उसी देश के कुछ भटके हुये लोग भारत की सार्वभौमिक प्रतिष्ठा के प्रतीक लाल किले पर तिरंगे का अपमान कर रहें हैं I अकल्पनीय और असहनीय I
भृमण पथ में घात लगा कर बैठे शिकारी प्राणी द्वारा हताहत भूमिसात कबूतर भी शायद लाल किले की घटनाओं के पीछे की सच्चाई बता रहा रहा था I मैं थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि बगीचे में चार छह कुकुर रोटी के टुकड़े और दूध-भात के लिये परस्पर कुकुर झौं झौं कर रहे थे I यह बिलकुल वही दृश्य था जब थोड़े से वोट -लाभ के लिये बहुतेरे राजनीतिक दल देश हित दरकिनार कर आपस में सर -फुट्टौवल करते हैं I कल यही तो हुआ जब देश की इज्जत मिटटी में मिल गयी तो सब एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं I हम कैपिटल हिल की घटना का उदाहरण देकर मन को भले ही समझा-बुझा ले पर लाल किले पर जो कुछ भी हुआ वह मन को दहलाने वाला था I भारत के कर्णधारों को ,उसके शुभचिंतकों और नीति नियामकों को अपने दिल पर हाथ रख कर यह सोचना पड़ेगा कि वे इस अद्भुत देश को इन घातक तत्वों से सुरक्षित कैसे रक्खेंगे ? कहीं इस घर को आग न लग जाए घर के चिराग से ? हमारे स्वातंत्र्य और गणतंत्र का प्रतीक शांतिदूत कपोत कहीं घात लगाये किसी शिकारी जंतु से क्षत-विक्षत न हो जाये ?
– डाक्टर श्रीधर द्विवेदी, नेशनल हार्ट इन्स्टीट्यूट, ईस्ट आफ कैलाश, नई दिल्ली ।