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गजल

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शायद…

रेत पर लिखे ,वो सारे हर्फ ,जो तूने कहे जो मैंने कहे
एक ही लहर से बह जाएंगे शायद..
वो सारे सपने ,वो सारे किस्से,
 अधूरे अनकहे ही रह जाएंगे शायद..
 तकदीर को दरकिनार गर कर भी दूं
 पांव में पड़ी जंजीर में फंसे रह जाएंगे शायद..
 फिर सारे साजा वो आवाज और ये अंदाज
 बैरंग लौटे अपने ठिकाने
बड़ी उम्मीद ने से सजाया था दरबार ,
सोचा था अनकहा कह जाएंगे शायद..
रेत पर लिखे ,वो सारे हर्फ ,जो तूने कहे जो मैंने कहे
एक ही लहर से बह जाएंगे शायद..

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