असल में, किसी भी स्त्री के शरीर के माप में वह कभी गलती नहीं करता।
बिना कोई जवाब दिए, उसने नोट उठा लिए।
वह बाहर निकल गई, उसी रास्ते से जिससे आई थी।
टेबल पर रखी दवा की बोतल से एक चम्मच लेकर उसने खुद पी लिया।
बिस्तर पर पड़ी अपनी छोटी बच्ची के अधमरे शरीर को हल्के से उठाकर उसने उसे भी दवा पिला दी।
टक… टक…
फिर दरवाजे पर दस्तक हुई।
अब तक माँ की गोद में सो चुकी बच्ची को वह धीरे से बिस्तर पर सुलाकर दरवाजा खोलने चली गई, नग्न ही।
नोट:
हम चाहे जितने भी कपड़े पहन लें, नग्न ही जन्म लेते हैं।
सभ्य पुरुष/महिलाओं को भी नीली फिल्में पसंद होती हैं।
कोई औरत जन्म से वेश्या नहीं होती, परिस्थितियाँ उसे वेश्या बना देती हैं।
आह! ये सस्ते प्रेम भी कितने रहस्यमय होते हैं,
कोई दिल की सरहदें चाहता है,
तो कोई सिर्फ भोग की मंज़िल…।
अगर जीवन को एक सिक्के के रूप में देखा जाए, तो प्रेम और वासना कभी-कभी उसकी दो विपरीत सतहों पर होते हैं,
ठीक वैसे ही जैसे ‘69’ की स्थिति।
बबिता बोरा
(लेखिका पेशे से असम पुलिस में एक उप-निरीक्षक के रूप में शिलचर में कार्यरत हैं।)