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गांव में गरीबों के घर बरसा धन, दीपावली बना समृद्धि का आधार

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बेगूसराय, 12 नवम्बर (हि.स.)। लंका विजय कर प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाए जाने वाले दीपावली और लक्ष्मी-गणेश पूजन में गांव की समृद्धि को एक नया आधार दे दिया है। वैसे तो कोई भी पर्व-त्योहार गांव की समृद्धि का आधार बनता है। इस वर्ष की भी दीपावली में हुए धन की बरसात ने गांव को समृद्ध किया है।

दीपावली को लेकर बेगूसराय में जब तीन सौ करोड़ से भी अधिक का कारोबार हुआ है तो इसमें से करोड़ों रुपए गांव भी पहुंचे। गांव में बसे कुम्हार द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीप और कलश की जहाज जमकर बिक्री हुई। वहीं, संठी उत्पादक किसानों को भी काफी फायदा हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक बेगूसराय में 50 लाख अधिक के सिर्फ कलश, दीप, मूर्ति और संठी की बिक्री हुई हैं।

विभिन्न गांवों में बसे कुम्हार परिवारों द्वारा बनाए गए दीप, कलश और चौमुख तथा मंसूरचक की प्रसिद्ध मूर्ति की बिक्री ना केवल उनके घर और स्थानीय बाजार में हुई। बल्कि बेगूसराय जिला में भी मुख्यालय में दूर-दूर से आए दो सौ से अधिक लोगों ने सड़क किनारे अस्थाई दुकान लगाया था। जहां कि तीन दिनों तक जमकर बिक्री हुई। धनतेरस और छोटी दीपावली के बाद आज रविवार को दीपावली के दिन भी खूब बिक्री हो रही है।

मिट्टी के बने दीप, चौमुख और कलश पहले तो खूब दिखते थे। बीच के समय में इनकी बिक्री में कमी आई। लेकिन अब जब कोरोना ने लोगों को गांव की याद दिलाया तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्थानीय उत्पाद खरीदने की अपील किया तो बाजार में इसका जबरदस्त असर देखा गया। सभी लोगों ने कुछ ना कुछ मिट्टी के बने दीप जरूर खरीदे हैं। जिससे इसे बनाने वाले परिवारों में नई आशा का संचार हुआ है।

कचहरी रोड में लगे एक अस्थाई दुकान पर मिट्टी के दिए दीप और कलश खरीद रही बबीता देवी ने बताया कि हमारे पूर्वजों के समय से मिट्टी के बने दीए जलाने की परंपरा रही है। बीच के दौर में आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित लोगों ने सिंथेटिक दीपों का उपयोग करना शुरू किया। लेकिन अब एक बार फिर लोग पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल स्थानीय स्तर पर बनाए गए मिट्टी के बर्तन की ओर आकर्षित हुए हैं।

मिट्टी के बने दीप और कलश ना केवल सस्ते और पर्यावरण अनुकूल होते हैं। बल्कि हमारे द्वारा खर्च किया गया पैसा हमारे समाज में ही रह जाता है, समाज के लोगों को जब फायदा होता है तो वह किसी ना किसी रूप में आगे बढ़ते हैं। हम बाजार से चमक-धमक वाले दीप खरीदने हैं तो उसमें पैसे भी अधिक खर्च होते हैं। वह चला जाता है कॉर्पोरेट के हाथ या चीन जैसे देश में। अपने जान पहचान वाले, रिश्तेदारों और समाज के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित किया है।

राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि किसी राष्ट्र का उदय अपने महत्व और प्रतिभा को समझने में अंतर्निहित होता है। यह अनाम लोग जो सृजन प्रक्रिया से जुड़े होते हैं, उन्हें आत्मविश्वास देना तो है, इससे राष्ट्र की अस्मिता समृद्ध होती है। स्वतंत्रता के बाद यह महान कार्य उपेक्षित रहा। बच्चों के खिलौनों तक के लिए भी हम पराश्रित हो गए। देश की पिछली सभी सरकारें लाचार दिखी। 2014 में सरकार बदली और नई इच्छा शक्ति सामने आया है।

राकेश सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र की बुनियाद पर होते रहे आर्थिक वैचारिक हमले को निरस्त किया। इसके अनेक आयाम हैं, उनमें एक है वोकल फॉर लोकल। यह स्थानीयता और स्थानीय सृजन का सम्मान है। दीपावली में अवसर है राष्ट्र नेता नरेन्द्र मोदी की दृष्टि को मन कर्म वचन से हम आत्मसात करें, यह भारत को समृद्ध करना होगा। स्थानीय उत्पाद खरीद कर लोगों ने आत्मनिर्भर भारत बनाने में सार्थक सहयोग किया है।

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