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बेशक परिवर्त्तन आया है,
सम्बन्धों में तनातनी है,
घर-आँगन दीवार-द्वार तक,
बदल गये पर प्रीति न बदली।।
पहनावे अभिरुचियाँ बदलीं,
अकड़न बदली नहीं किसी की।
नर-नारी की चाहत बदली,
धड़कन बदली नहीं किसी की।।
साँस वही है आस वही है,
जीवन का आभास वही है।
दुनिया का विश्वास डिगा पर,
प्राण प्रणय की रीति न बदली।।
घर-आँगन दीवार-द्वार तक,
बदल गये पर प्रीति न बदली।।
चाल-चलन में चालाकी है,
भोलापन हो गया हवाई।
चेहरे पर चिकनापन भारी,
गुपचुप मलने लगे मलाई।।
चुम्बन है आलिंगन भी है,
कम्पन है आलम्बन भी है।
अभिनन्दन ठनगन बदले हैं,
पर अनबन की भीति न बदली।।
घर-आँगन दीवार-द्वार तक ,
बदल गये पर प्रीति न बदली ।।
एकाकी हो गयी जिन्दगी,
द्वेष द्रोह सा अड़ा खड़ा है ।
मात्र प्रदर्शन को जीवित सा,
परिवारों में मोह खड़ा है।।,
पनघट सूना नलघट सूना,
तट मरघट पर जमघट दूना ।
तनघट काम विरक्त भले हो ,
पर मनघट ने नीति न बदली।।
घर-आँगन दीवार-द्वार तक ,
बदल गये पर प्रीति न बदली ।।
बिजली की इस चकाचौंध में,
दीपक के उजियारे घायल।
पाँव मुक्त हैं तब से जब से,
बन्धन के विरोध में पायल।।
छ्न्द कभी स्वच्छन्द नहीं था,
कविता से छलछन्द हुआ है।
बिना पुष्प मकरन्द बनाया,
रसानन्द से गरल चुआ है।।
परिभाषा कितनी ही बदली,
मगर गीत की गीति न बदली।।
घर-आँगन दीवार-द्वार तक ,
बदल गये पर प्रीति न बदली।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
9424044284
6265196070





















