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गुरछली, — मदन सुमित्रा सिंघल

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गुरछली को घर वाले घर के ही काम में लगा दिया वो अनचाही संतान थी सातवें महीने में पधारने के कारण कमजोर थी तो गुरछली नाम भी रख दिया ईश्वर ने उसे एक कम देने में कंजुसी करदी इसलिए सपने सोच लिया कि इसकी शादी तो होनी नहीं है इसलिए घर आंगन बुहारना सारे गाँव से गाय भैंस वाले घरों से छाछ लाकर घर का झाकरा भरना। कुंए एवं जोहङ से दिनभर छोटे से मंगलिये ( छोटे घङे) में पानी ढोना था। दिन में पीढा खाट दरी एवं झोला बनाने के साथ साथ दादी चांदकोरी के साथ बङी पापङ बनाना सीख गयी। सभी बहन भाईयों की शादी में बिना हुहुजत काम करती गीत एवं नृत्य करती। उसकी समर्पण भावना के कारण कोई भी उसे कांणी अथवा गुरछली अब नहीं कहते थे क्योंकि महात्मा जी ने उसका नाम प्रियदर्शनी रख दिया था। प्रियदर्शनी 15 साल की हो गई तो डोकरी दादी के साथ बढिया खाना बनाने के साथ सब प्रबंध देखने लगी। अधिकतर बच्चे उसे भुवा ही कहते थे एक दिन सांवरमल आये तो सारे गाँव वाले लोग खुश थे कारण वो जींदगी भर रिश्ते करवाते थे लेकिन कोई एक पैसा भी नही लेते ना ही आज तक कोई शिकायत मिली। सांवरमल जी प्रियदर्शनी को दिखाने के लिए एक धनाड्य पढे लिखे युवक के साथ जीप लेकर आये। दो तीन ओर भी साथ में थे। गुरछली को नैत्र चिकित्सक ने जांच करने के बाद कहा कि यदि कोई नेत्रदान करें तो यह आप लोगो की तरह देखने लगेगी। सारा खर्च यह युवक देने के साथ इससे शादी के तैयार है। सरपंच रामसिंह ने कहा कि सांवरमल जी जब यह युवक तैयार है तो आज ही शादी क्यों नहीं?? कितनी हटीकटी एवं सुंदर तथा हर काम में दक्ष है। यह सही है कि यह बिल्कुल भी पढीलिखी नहीं है। युवक मान गया उसे दो बच्चों के लिए तत्काल माँ चाहिए थी। आज सुदर्शन युवक से प्रियदर्शनी की शादी संक्षिप्त एवं सादगी से संपन्न हुई।  एक साल बाद अपने बच्चे के साथ प्रियदर्शनी नयी आंख का प्रत्यारोपण करवाकर आयी तो गाँव में खुशी का माहौल था।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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