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गुरुचरण विश्वविद्यालय में विश्व संस्कृत दिवस का भव्य आयोजन

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9 अगस्त को गुरुचरण विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा विश्व संस्कृत दिवस धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों के स्वागत के साथ हुआ, जिसमें बृष्टि देवनाथ, मनीषा नाथ और पूर्णिमा दास ने उत्तरीय एवं चंदन अर्पित कर उनका अभिनंदन किया। दीप प्रज्वलन के बाद प्रभा देवी ने ‘दीप मंत्र’ का उच्चारण किया और सुस्मिता सिन्हा ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

विभागाध्यक्ष डॉ. संधानी नाथ ने स्वागत भाषण एवं कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर संस्कृत विभाग की समाचार पत्रिका “संस्कृत विमर्शिनी” के प्रथम अंक का विमोचन किया गया। पत्रिका के संपादक डॉ. केशव लुइटेल ने संपादकीय वक्तव्य में पत्रिका की अवधारणा एवं महत्व बताया।

मुख्य अतिथि डॉ. शंकर भट्टाचार्य ने कहा कि संस्कृत भारत की सांस्कृतिक एवं वैदिक परंपरा की आधारशिला है, जिसमें आयुर्वेद, रसायन विद्या, वास्तुशास्त्र जैसी अनेक ज्ञान परंपराएं निहित हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि संस्कृत को जीवित रखने के लिए शिक्षा और संवाद में इसकी अधिकाधिक प्रयोगशीलता आवश्यक है।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. निरंजन राय ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में रूस, जर्मनी जैसे देशों का उदाहरण देते हुए मातृभाषा में शिक्षा की अहमियत बताई। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में जब संस्कृत के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी, तब देश आत्मनिर्भर था। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत संस्कृत को जन-जन तक पहुँचाने के लिए केंद्र सरकार ने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की है।

पंजीयक डॉ. विद्युत कांति पाल ने संस्कृत दिवस और श्रावणी पूर्णिमा के सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि राखी केवल धागे का बंधन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक है।

कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं—प्राभा देवी ने ‘रुद्राष्टकम’ का पाठ किया, बाल कलाकार प्रसन्नाक्षी देवी ने ‘शिव वंदना’ नृत्य प्रस्तुत किया, मनीषा नाथ, बृष्टि देवनाथ और अनीशा दत्ता ने सामूहिक गीत गाया, स्वर्णिता नाथ ने ‘संस्कृत ग्राम’ पर अपने अनुभव साझा किए, नंदिनी देव ने ‘मधुराष्टकम’ पर नृत्य किया, अनीशा दत्ता ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया और शिबांगी विश्वास ने भूपेन हजारिका के प्रसिद्ध गीत “बिस्तीर्णा दुपारे” के संस्कृत अनुवाद पर नृत्य किया।

धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रेवा राय ने किया तथा संचालन देवडाली दे और सुस्मिता सिन्हा ने किया। कार्यक्रम का समापन ‘वंदे मातरम्’ गीत के साथ हुआ।

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