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गौहाटी हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: असम सरकार की SOP रद्द, पशु लड़ाई पर पूर्ण प्रतिबंध

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एजेंसी समाचार, गुवाहाटी, 19 दिसंबर: गौहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को खारिज करते हुए राज्य में भैंसों और बुलबुल पक्षियों की लड़ाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह SOP पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (PCA), 1960 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का सीधा उल्लंघन करती है।
पारंपरिक प्रथाओं को कानूनी रूप देने में असम पीछे
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने पारंपरिक पशु-आधारित प्रथाओं को जारी रखने के लिए PCA अधिनियम में संशोधन किया और राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त की। इसके विपरीत, असम ने ऐसा कोई संशोधन नहीं किया और SOP के माध्यम से कानून को दरकिनार करने की कोशिश की, जो संविधान के अनुच्छेद 254 के तहत अस्वीकार्य है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन अनिवार्य
जस्टिस देवाशीष बरुआ की अगुवाई वाली बेंच ने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश का कानून है और राज्य सरकार को उसका पालन करना होगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि SOP के जरिए PCA अधिनियम, 1960 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों को नजरअंदाज करना संविधान के तहत अनुचित है।
पशु अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि PCA अधिनियम की धारा 3 के तहत, पशुओं के प्रभारी व्यक्ति का यह अनिवार्य कर्तव्य है कि वह उनका कल्याण सुनिश्चित करे। अदालत ने कहा कि पशु अधिकार कर्तव्यों के समानांतर चलते हैं और उनके उल्लंघन पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
माघ बिहू के दौरान लड़ाई की अनुमति को खारिज किया
असम सरकार ने 27 दिसंबर 2023 को SOP जारी कर माघ बिहू त्योहार के दौरान भैंसों और बुलबुल पक्षियों की लड़ाई की अनुमति दी थी। इस पर अदालत ने कहा कि ऐसी गतिविधियां न केवल कानून का उल्लंघन करती हैं, बल्कि पशु अधिकारों के लिए भी हानिकारक हैं।
असम सरकार को सख्त निर्देश
गौहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार को निर्देश दिया है कि वह PCA अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करे। अदालत ने कहा कि जब तक 1960 के अधिनियम में संशोधन नहीं किया जाता और राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं ली जाती, तब तक SOP के माध्यम से कानून को बदलने का कोई प्रयास नहीं किया जा सकता।
यह फैसला न केवल असम में पशु अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह पारंपरिक प्रथाओं के नाम पर कानून के उल्लंघन को भी रोकने का संदेश देता है।

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