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चाय उद्योग में उत्पादनकर्ता नहीं खरीददार तय कर रहे हैं चाय का दाम- पवन सिंह घटवार 

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प्रे.स. शिलचर, 20 मार्च: बराक घाटी की चाय आक्सन में जाती है, वहां चार-पांच खरीददार मिलकर आपस में चाय का दाम तय कर लेते हैं। उत्पादनकर्ता को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। उपरोक्त बातें 18 मार्च को बराक चाय श्रमिक यूनियन द्वारा लावक चाय बागान में आयोजित हीरक जयंती समारोह में बोलते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और श्रमिक नेता पवन सिंह घटवार ने कहीं। उन्होंने 200 चाय बागान से आए हुए श्रमिकों और यूनियन के कार्यकर्ताओं तथा अतिथियों का अभिनंदन करते हुए कहा कि 75 साल पूरा करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह यूनियन ट्रेड यूनियन से भी बड़ा है, इसका जन्म आजादी से पूर्व हुआ था। तब पाकिस्तान नहीं बना था, विभाजन के बाद नए तरीके से यूनियन गठित हुआ।
हमारे पूर्वजों ने खून पसीने से जंगलों को आबाद करके चाय बागान लगाया। असम की चाय पूरी दुनिया में जानी जाती है किंतु इसके पीछे जिनका खून पसीना है, उन्हें लोग नहीं जानते। बराक घाटी के चाय उद्योग ने एक लाख से ऊपर लोगों को रोजी-रोटी की व्यवस्था किया है। कोई सरकार इतने लोगों को रोजी-रोटी देने की व्यवस्था नहीं कर सकती, यह टी इंडस्ट्री कर रही है। आपको आश्चर्य होगा कि बाजार में जाएंगे तो सामान का मूल्य दुकानदार तय करता है किंतु चाय उद्योग में जो चाय बना रहे हैं, उसका दाम नहीं तय कर सकते, खरीदने वाला दाम तय करता है। इसलिए चाय उद्योग आर्थिक रूप से संकट में है। जो मूल्य मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है।
मैं मुख्यमंत्री जी से बोला था कि हम जो चाय उत्पादन करते हैं, उसका उचित मूल्य मिलना चाहिए। जो चाय डेढ़ सौ ₹200 में आक्सन में बिक जाता है, वही बाजार में 350 ₹400 में ट्रेडर्स बेच रहे हैं। चाय के व्यापारी को सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है। टाटा ग्लोबल, हिंदुस्तान लीवर, बाघ बकरी इनका बैलेंस शीट देखेंगे तो ये 100- 200- 400 करोड रुपए का लाभ कमाते हैं। इधर उत्पादनकर्ता को उत्पादन का खर्च भी नहीं मिल रहा है। हमने सरकार और मालिक दोनों को बोला है श्रमिक को उचित मजदूरी मिलना चाहिए। सबसे कम मजदूरी चाय बागान में मिलती है, उनकी मजदूरी बढ़ानी चाहिए। चाय उद्योग है, इसलिए हम हैं, मैनेजर है, मालिक है। उद्योग नहीं रहेगा तो हमारा हाल क्या होगा? चाय उद्योग का अच्छा होगा तो हमारा भी अच्छा होगा। अच्छी मजदूरी मिलेगी और बोनस भी मिलेगा। आक्सन सिस्टम अंग्रेजों ने बनाया था, इसमें खरीदार चार-पांच है, उनका भारी मुनाफा होता है। सरकार को यह पॉलिसी चेंज करना होगा, सरकार को देखना होगा कि चाय का उचित मूल्य मिले। खरीददार आपस में मिलकर चाय का दाम तय न कर सके।

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