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फलदायी के महान व पावनपर्व सूर्य षष्ठी व छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है| इस दिन अस्ताचलगामी तथा उदय होते साक्षात सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है अर्थात यह पावन पर्व सूर्य देव और छठी मइया के आराध्य मानकर मनाए जाने वाला चार दिवसीय निर्जला कठिन व्रत है| यह महान पर्व हमारे देश के अलावे विदेशों मे भी बड़ी श्रध्दा के साथ मनाया जाता है| मारीशस, फिजी, नेपाल के साथ- साथ विकसित कहे जाने वाले ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों मे भी प्रवासी भारतीय सामूहिक रुप से छठ पूजा करते है| छठ पूजा की परंपरा अति प्राचीन काल से जुड़ी हुई है| कहा जाता है कि त्रेता युग में वनवास से लौटने के बाद माता जानकी छठ पर्व की थी तथा द्वापर मे अंगराज महान दानवीर सूर्य पुत्र कर्ण सूर्य उपासना किया करते थे वही द्रौपदी भी विघ्न- बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए छठ पूजा की थी| छठ पूजा के संदर्भ मे कई पौराणिक कथाएँ भी है| एक कथा यह भी है कि राजा प्रियवद तथा उनकी महारानी मालिनी को महर्षि कश्यप के आशीर्वाद से पुत्र प्राप्त हुआ परन्तु दुर्भाग्यवश पुत्र मृत जन्मा | मृत पुत्र को देखकर राजा शोक मे डूब गए तथा अपना प्राण त्यागने का संकल्प लेने लगे तभी ब्रह्मा जी के मानस पुत्री देवसेना षष्ठी देवी प्रकट होकर राजा से कही आप मेरी उपासना करे और दुसरो को भी मेरी उपासना करने हेतु प्रेरित करे ऐसा करने से ही आप को पुत्र प्राप्ति होगी| राजा प्रियवद और रानी मालिनी ने बड़ी ही आस्था व श्रद्धा के साथ देवसेना षष्ठी देवी की व्रत किया| यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को संपन्न हुई थी |फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ| ऐसा पौराणिक कथा आप भी पढ़े या सुने होगें| मै भी पढ़ी हुई उक्त पौराणिक कथा को उदधृत किया हूँ| परन्तु वास्तविकता यह है कि छठ पूजा की महिमा अपरंपार है विशेषकर यह कठिन पावन पर्व संतान प्राप्ति तथा संतान के रोगमुक्ति, सुस्वास्थ्य, लंबी उम्र और समृद्धि के लिए समर्पित है| ऐसा मान्यता है कि यह पावन पर्व करने से संतान की प्राप्ति तथा संतान की रोगो से मुक्ति और संतान की लंबी उम्र मिलती है|यही वजह है कि प्रायः सभी संप्रदाय के लोग छठी मइया की महिमा से अच्छी तरह वाकिफ़ है| इसलिए कई अन्य जाति, समुदाय, संप्रदाय के लोग भी बड़ी आस्था व पवित्रता के साथ छठ पूजा करते हुए प्रलक्षित होती हैं| इस पावन पर्व में दण्ड देने का भी प्रावधान है| यह दण्ड अपने घर से उदर तथा वक्ष के बल धरा मे दण्डवत फिर खड़े होकर सूर्य देव को प्रणाम कर फिर दण्डवत ऐसा करते हुए मन्नत मांगने वाले लोग पूजा स्थल नदी, पोखर घाट तक पहुँचते है जहाँ जल मे खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते है|ऐसा मान्यता है कि छठी मइया को दण्ड देने से मन्नते फलीभूत होती है| विज्ञान के दृष्टि से भी छठ पूजा की महत्व देखा जा सकता है| सूर्य देव को जल अर्पित करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा हानिकारक पराबैंगनी किरणों से त्वचा की रक्षा होती है जिससे त्वचा रोग से मुक्ति मिलती है या त्वचा रोग कम होनी की संभावना होती है| छठ पूजा के गीत लोगों को आस्था के डोर मे इस प्रकार बांध देती है कि पूरा वतावरण शुध्द,स्वच्छ,पवित्र भक्तिमय हो जाता है| छठ पूजा की लोकगीत छठी मइया की पूजन व महत्व को दर्शाती है| लोकगीत छठ पूजा की परंपरा, महत्व तथा सामाजिक एकता,संस्कृति,सामूहिकता, सहयोगिता का धरोहर है| यह पावन पर्व विश्व कल्याण, पर्यावरण शुध्दता का प्रेरणास्रोत होने के साथ -साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, सामूहिक समरसता का परिचायक भी है| विशेषकर छठी मइया की महिमा को देखते हुए लोगों को छठ पूजा करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से यह लेख लिखा हूँ|
पवन कुमार शर्मा (शिक्षक)
दुमदुमा (असम)
मो.नं. ९९५४३२७६७७





















