फॉलो करें

“जब शिखर मौन होता है…”

227 Views
(नेतृत्व की महानता और विवशता- मोदी की व्यक्तित्व की विशालता के प्रति समर्पित )
जब शिखर मौन होता है, तब भी वो बोल रहा होता है,
भीतर ही भीतर हर चिंता का भार वो तोल रहा होता है।
जो चलता हो अग्निपथ पर, वो छाँव कहाँ माँगा करता?
जिसे न मिले एक नींद की घड़ी, वो स्वप्न कहाँ देखा करता?
हर दिशा जो देखे उसकी ओर, निर्णय लेकर खड़ा रहे,
कैसे कह दे थक गया हूँ मैं -जब युग उत्तर माँगा करे?
हाँ, थकता है वो भी भीतर, पर कभी ठहर नहीं जाने देता,
अडिग खड़ा है आँधियों में , खुद को दीपक बन जाने देता।
जिसके संकेत मात्र से काँप उठे सत्ता की चुप सीमायें,
वो रोज़ छुपाकर अपने दर्द, सह ले मन की  अपनी पीड़ायें।
जिसने सुखों से मुँह मोड़ा-राष्ट्रधर्म को जीवन माना,
हर पीड़ा में मुस्कुराकर, दृढ़ संकल्प को अपना माना ।
रातें जिसकी मौन रहीं, पर निर्णय दीप जलाते रहे,
दिन में जिसकी हर कोशिश से आशा के बीज लगाते रहे।
वो लौ है जो अंधियारे में, ख़ुद उजास बन जलती है
वो छाया है जो तपकर भी, शीतलता स्वयं गढ़ती है ।
जब लहरें उग्र हो जाएँ और नैया डगमग होने लगे,
वो पतवार थामे रहता है, मन आँखों में देश संजोने लगे।
तो जब भी लगे अकेले हो, या राहें संशय में डूबें,
बस याद रखना — कोई है जो हर दिन खुद को रोज़ गँवाता है – ख़ुद को हार के जीता है।
हरेंद्र नाथ श्रीवास्तव
मौलिक व स्वरचित
@ सर्वाधिकार सुरक्षित
१३/०५/२०२५

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल