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जरा,ज़रा ठहरकर आना,
कुछ काम बाकी है।
सोचता हूँ लोग मुझे देखते रहें,
उनसे कुछ बात बाकी है ।
समय का नजारा देख,
कहने को मजबूर हुए ;
तेरे आने का संकेत ,
अपने लोग दूर हुए ।
चाहत थी पकड़ कर रखूँगा उसको
पर लाचार विवश मन था ,
गोरा चमड़ा, स्थूल रूप मेरा तन ,
बेकार हो जाएगा यह, डर था ।
पर तू आएगी ही तेरा वश नहीं चलता,
समय का चक्र निरंतर है चलता ।
बचपन गया खेलने खाते,
जिसकी चाहत थी रुकेगी देर तक ,
पर चल दी आते-आते,
नित निहारता रहा उसे, पर
बाँध न सका उसे,
कुछ बात करने दो,
हे जरा ज़रा ठहर कर आना
कुछ काम बाकी है ।
राकेश कुमार पाण्डेय
स्नातकोत्तर शिक्षक
केंद्रीय विद्यालय ओएनजीसी अगरतला