फॉलो करें

जानिए कैसे हुए शकुनि की मृत्यु और कहां गया उनका चौसर का पासा – डॉ. बी.के.मल्लिक

407 Views
महाभारत में शकुनि के पासो ने विनाशकारी खेल चौसर खेला था। जिसके कारण द्रौपदी चीरहरण जैसा कंलक हमेशा के लिए धब्बे के रूप में समाज के माथे पर चिपक गया। महाभारत के युद्ध में शकुनि की मृत्यु सहदेव के हाथों हुई थी। शकुनि के मरने के बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों को पासो को नष्ट करने के लिए कहा था।
महाभारत में द्युत क्रीडा यानी शकुनि के पासों के खेल ने इतिहास को द्रौपदी चीरहरण जैसा कलंक दिया। शकुनि के पासे न ही उसके इशारों पर चलते और न ही पांडवों को हर बार हार का मुंह देखना पड़ता। यह शकुनि के पासे ही थे, जिसके दम पर शकुनि ने दुर्योधन के साथ मिलकर इतनी बड़ी चाल चली। इन पासों के खेल का नतीजा यह हुआ कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में विनाश ही विनाश हुआ। महाभारत की कथा के अनुसार शकुनि की मृत्यु सहदेव के हाथों हुई थी। कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर सहदेव ने शकुनि को पराजित किया था। अब ऐसे में कई बार मन सवाल आता है कि शकुनि की मृत्यु के बाद उसके पासे कहां गए?
 शकुनि के पिता की हड्डियों से बने थे जादुई पासे 
शकुनि गांधार नरेश सुबल का पुत्र था। शकुनि की बहन गांधारी से धृतराष्ट्र ने जबरन विवाह किया था क्योंकि राजा सुबल एक नेत्रहीन से अपनी पुत्री का विवाह नहीं करना चाहते थे। अपने साथ अन्याय होता देखकर शकुनि ने कुरु वंश के विनाश की कसम खाई थी। जब शकुनि के पिता ने मरने से पहले कहा था कि उनकी हड्डियों से पासे बनवाकर शकुनि अपने पास रखे, जिससे कि पासे हमेशा शकुनि का मार्गदर्शन कर सके। शकुनि ने राजा सुबल की मृत्यु के बाद ऐसा ही किया, जैसा उन्होंने कहा था, लेकिन शकुनि ने छल-कपट और अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए पासों का गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
 शकुनि के पासे केवल उसकी बात ही सुनते थे
जब पांडव राज्य में अपना अधिकार मांगने लगे, तो शकुनि को एक नई चाल सूझी। उसने दुर्योधन को द्युत क्रीडा यानी चौसर का खेल खेलने का सुझाव दिया। शुरुआत में दुर्योधन को शकुनि के इस खेल पर शंका थी लेकिन शकुनि ने दुर्योधन को विश्वास दिलाया कि उसके पासे उसके इशारों पर चलते हैं, इसलिए उन्हें चौसर के खेल में जीत ही मिलेगी। शकुनि और दुर्योधन ने बड़ी चतुराई के साथ पांडवों को अपने जाल में फंसाकर एक के बाद एक सभी चीजें दांव पर लगवा दी। शकुनि ने ही दुर्योधन को सुझाव दिया कि वह युधिष्ठिर को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए कहे।
 कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर शकुनि की मृत्यु कैसे हुई।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर शकुनि ने दुर्योधन का खूब साथ दिया लेकिन जिस तरह छल-कपट से भरे मनुष्य को उसके किए की सजा मिलती है, उसी तरह शकुनि का अंत भी होना ही था। शकुनि ग्रह-नक्षत्रों का ज्ञानी था इसलिए उसे लगता था कि वे ग्रह-नक्षत्र की आड़ लेकर हर बार अन्याय करेगा और उसका कुछ भी नहीं बिगड़ सकेगा। जब महाभारत का युद्ध हुआ, तो शकुनि का सामना नकुल और सहदेव से हुआ। कुरुक्षेत्र के इस युद्ध में शकुनि समेत उसके तीनों पुत्र नकुल और सहदेव से लड़ते हुए मारे गए। सहदेव ने युद्ध के 18वें दिन शकुनि का सिर काटकर उसका वध कर दिया। शकुनि की मृत्यु के बाद दुर्योधन अपने प्राण बचाकर युद्धभूमि से भाग निकला।
 शकुनि की मृत्यु के बाद उसके पासों का क्या हुआ 
श्रीकृष्ण जानते थे कि शकुनि के पासे कितने खतरनाक हैं। शकुनि के पासे समाज के पतन का कारण बन सकते हैं इसलिए श्रीकृष्ण ने पांडवों को शकुनि के पासों को नष्ट करने के लिए कहा। भीम इन पासो को नष्ट करना चाहता था लेकिन अर्जुन ने इसकी जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली। अर्जुन ने श्रीकृष्ण की आधी-अधूरी बात सुनी और पासो को लेकर इसे नष्ट करने चले गए। अर्जुन ने जल्दबाजी में इन पासो को नष्ट करने के उद्देश्य से इन्हें नदी में फेंक दिया। उन्हें लगा कि पासो को अधिक समय तक अपने पास रखने से कहीं उनके अंदर भी छल-कपट न आ जाए इसलिए उन्होंने पासो को तेजी से साथ नदी में फेंक दिया।
अर्जुन शकुनि के पासो को नदी में फेंककर जब हस्तिनापुर लौटे, तो उन्होंने श्रीकृष्ण को पासो को नदी में फेंकने की बात कही। अर्जुन की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा- “हे पार्थ! तुमने बहुत बड़ी भूल कर दी है। शकुनि के पासे मायावी थे। उन्हें केवल नदी में फेंककर नष्ट नहीं किया जा सकता था। ये पासे अगर किसी मनुष्य के हाथ लग गए, तो फिर से समाज का पतन शुरू हो जाएगा।” माना जाता है कि नदी में बहते हुए ये पासे किसी मनुष्य के हाथ लगे और कलियुग में फिर से जुए का खेल शुरू हो गया। जुए के कारण फिर से दुनिया छल-कपट से भर गई और नए-नए रूपों में जुए का खेल खेला जाने लगा।
डॉ.बी. के. मल्लिक
वरिष्ठ लेखक
9810075792

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल