इंडिया गठबंधन की वर्तमान पहचान नेता विहीन, कार्यक्रम विहीन, और दंतविहीन की है। न कोई नेता है, न कोई नीति है, एक जुटता भी बनावटी है। सिर्फ खुशफहमियां हैं। राजनीतिक शोर के बल पर सत्ता प्राप्ति का सपना देखा जा रहा है। हिन्दू विरोध की आत्मघाती राजनीति इनकी बंद नहीं हो रही है। तानाशाही का हथकंडा कामयाब नहीं होगा। इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी एक देश और एक चुनाव, चन्द्रयाण, ग्रूप बीस आदि की सफलता के बल पर अपनी छबि लगातार चमका रहे हैं।
क्या कोई सेना कंमाडर विहीन हो सकती है? क्या कोई टीम कप्तान विहीन हो सकती है? क्या कोई घर मुखिया विहीन हो सकता है? क्या बिना चालक के कोई वाहन चल सकता है ? क्या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट बिना चीफ जस्टिस के काम कर सकती है? क्या कोई मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री विहीन हो सकता है? क्या कोई सरकार नेतृत्वकर्ता के बिना गठित हो सकती है? क्या कोई संसद या विधान सभाएं बिना अध्यक्ष की चल सकती हैं? क्या कोई पार्टी बिना अध्यक्ष की चल सकती है? अध्यक्ष विहीन पार्टी को क्या चुनाव आयोग मान्यता दे सकती है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं में है? सेना, खेल टीम, घर, सुप्रीम कोर्ट, सरकार, मंत्रिमंडल, संसद विधान सभाएं, राजनीतिक पार्टियों को चलाने और गतिमान करने के लिए नेतृत्वकर्ता की जरूरत होती है। नेतृत्वकर्ता के बिना ये सभी कसौटियां पंगू ही मानी जायेंगी, बेअर्थ और बेजान ही समझी जायेगी। राजनीति में नेतृत्वकर्ता का अर्थ नेता ही होता है, राजनीति में अभी तक यह नहीं देखा गया है कि कोई राजनीतिक पार्टी बिना अध्यक्ष का काम करती है या फिर चुनावों में सफलता हासिल करती है। राजनीति में सफलता के लिए नेतृत्वकर्ता की जरूरत होती है। नेतृत्वकर्ता की प्रतिभा, कौशल के साथ उसकी दूरदर्शिता भी महान होती है, इसी महानता की कसौटी पर जीत हासिल होती है, जय-पराजय सुनिश्चित होती है। कांग्रेस का कभी नेतृत्व महान और दूरदर्शी लोगों के हाथों में था, यही कारण है कि कांग्रेस आजादी की प्रतीक बनी। आजादी के बाद अनेकानेक राजनीतिक नेतृत्वकर्ता ने अपनी प्रतिभा और कुशल नेतृत्व का चमात्कार दिखाया और अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियों की महानता स्थापित कर सत्ता पर विराजमान हुए। नरेन्द्र मोदी अपनी चमत्कारित नेतृत्व और प्रतिभा का प्रदर्शन कर ही कांग्रेस जैसी पार्टी और सेक्युलर जमात के मकड़जाल को भेदते हुए सफलता हासिल की थी।
ख्वाह क्या है, लक्ष्य क्या है, चुनौतियां कितनी खतरनाक है? ख्वाब हिन्दुत्व के बढते हुए जनाधार का विध्ंवस करना है, लक्ष्य नरेन्द्र मोदी की कुर्सी को छीनना है। चुनौतियां जनता के विश्वास को जीतना है। जब ख्वाब, लक्ष्य और चुनौतियां इतनी कठिन और दुरूह है तो फिर इससे निपटने के लिए मार्गदर्शक, नेतृत्वकर्ता की राजनीतिक प्रतिभा, कौशल और दूरदर्शिता भी तो अभूतपूर्व होनी चाहिए, बेमिसाल होनी चाहिए और बेजोड़ होनी चाहिए। लेकिन ये सभी गौण क्यों है? सिर्फ नेतृत्वकर्ता की ही बात नहीं है। बात तो और भी अनेक हैं जिन पर चर्चा होनी चाहिए। बात नीति की भी है, बात कार्यक्रम की भी है, बात खुशफहमी से भरी हुई एकता की भी है, बात लोकसभा चुनावों में सीटों के तालमेल की भी है, बात लोकसभा चुनावों के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ किस प्रकार से अतिरंजित अभियान से बचेंगे की भी है, बात एक देश और एक चुनाव की भी है। निश्चित तौर पर नरेन्द्र मोदी ने एक देश और एक चुनाव के सिद्धांत पर एक ऐसा तीर मारा है जिसका जोड अभी इंडिया गठबंधन के पास है नहीं। एक देश और एक चुनाव के सामने इंडिया की एकता बनी रहेगी, यह कहना मुश्किल है।
इंडिया गठबंधन को देशी जुगाड़ के रूप में देखा जाना चाहिए? जुगाड़ कह कर इंडिया गठबंधन को अपमान नहीं किया जा रहा है, उसका प्रहसन नहीं किया जा रहा है, उसकी खिल्ली नहीं उड़ायी जा रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार में जुगाड़ कर चारा ढोने वाले वाहन, सवारी ढोने वाले वाहन, खेत जोतने वाले वाहन बना लेते हैं, पर उसकी चाल और काम वैसे नहीं होते जैसे असली वाहनों के होते हैं। इंडिया गठबंधन के लोगों को जुगाड़ शब्द से परहेज या परेशानी भी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि जुगाड शब्द का प्रतिनिधित्व वे तो करते ही है। उदाहरण और परिस्थितियां भी देख लीजिये। इंडिया के गठबंधन में शरद पवार भी हैं। शरद पवार कहते हैं कि उनकी पार्टी में कोई टूट नहीं हुई है, उनका भतीजा उनके साथ है। उनका भतीजा अजित पवार महाराष्ट में भाजपा के साथ है और भाजपा की सरकार में मंत्री है। अब शरद पवार किसके साथ है? यह आप तय कर लीजिये। ममता बनर्जी आंतरिक तौर पर कांग्रेस विरोधी हैं, कम्युनिस्टों को वह देखना तक नहीं चाहती हैं, कम्युनिस्टों को उखाड़ कर ही ममता बनर्जी ने सत्ता पायी थी। कांग्रेस और कम्युनिस्टों का पश्चिम बंगाल में गठबंधन होता है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कभी भी कम्युनिस्टों के साथ गठबंधन नहीं कर सकती है, कम्युनिस्टों के खिलाफ आग उगलना नहीं छोड़ सकती है। कम्युनिस्ट और कांग्रेस भी एक साथ कहां हैं? पश्चिम बंगाल में वे एक साथ जरूर होते हैं पर केरल में कांग्रेस और कम्युनिस्ट अलग-अलग होते हैं, एक-दूसरे के जानी दुश्मन होते हैं। अगले लोकसभा चुनाव में भी केरल में कांग्रेस और कम्युनिस्ट एक साथ नहीं होंगे और अलग-अलग ही चुनाव लडेंगे। बिहार में लालू हमेशा की तरह कांग्रेस के प्रति हमदर्दी तो दिखा सकता है पर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव शायद ही हमदर्दी दिखायें। अखिलेश यादव अपनी शर्तो पर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार होगा, कांग्रेस अपनी शर्तें नहीं मनवा पायेगी, ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास दो ही रास्ते होंगे। एक रास्ता अपमान झेलकर गठबंधन करना और दूसरा रास्ता अलग से चुनाव लड़ना। ऐसी परिस्थितियों में इंडिया गठबंधन का उत्तर प्रदेश में कौन सा अस्तित्व होगा? फिर मायावती भी कांग्रेस की जडों में मट्ठा डालने के लिए तैयार बैठी हुई है। आम आदमी पार्टी खास कर गुजरात, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस के लिए मुसीबत बनने वाली है। पिछले गुजरात विधान सभा चुनाव में आप ने कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डाला था। इस बार पंजाब, दिल्ली, हरियाणा में आप कांग्रेस को पछाड़ने में कोई कसर नहीं छोडगी। आप और कांग्रेस के बीच लोकसभा चुनावों में गठबंधन होना बहुत कठिन है और वर्तमान की परिस्थितियों से परे है। तेलागांना, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में कांग्रेस को कोई घास डालने के लिए तैयार नहीं है। इन तीनों प्रदेशों में इंडिया गठबंधन की कोई खास तस्वीर नहीं बनती है।
कांग्रेस की पहचान हिन्दुत्व विरोधी की बन गयी है। कांग्रेस इस पहचान से मुक्ति की कोशिश कर रही है। राहुल गांधी कभी मंदिर जा रहे हैं तो कभी अपने आप को सनातनी ब्राम्हण बता रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की मुस्लिम पहचान समाप्त नहीं हो रही है। इधर कांग्रेस ने जिन साथियों के बल पर मोदी को हराने का सपना देख रही है उन साथियों का हिन्दू विरोधी अभियान चरम पर है। अभी-अभी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे ने उदय निधि ने सीधे तौर हिन्दू धर्म का विध्वंस करने का नारा दिया है। कांग्रेस के नेता पी चिदम्बरम का बेटा ने हिन्दू धर्म को एक बीमारी बताया है। अखिलेश यादव की पार्टी का नेता स्वामी प्रसाद मौर्या का हिन्दू विरोधी बयानबाजी समाप्त नहीं हो रही है। ममता बनर्जी मुंबई बैठक के दौरान टीका लगाने से इनकार कर हिन्दू विरोधी होने का परिचय दे चुकी है। नीतीश कुमार ने हिन्दू त्यौहारों पर छुट्टियों में कटौती कर अलग ही विवाद खड़ा किया है। ये सभी परिस्थितियां नरेन्द्र मोदी के लिए एक बरदान की तरह ही हैं।
मंथन का विषय यह है कि नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक प्राण वायु हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व के बल पर ही मोदी चुनाव जीतते आये हैं, यह कौन नहीं जानता है। मोदी के समर्थक महंगाई, विकास और उन्नति के नाम पर वोट कम ही देते हैं, अधिकतर समर्थक हिन्दुत्व के कारण वोट देते हैं। पर इस तरह की बयानबाजी और अभियान से नरेन्द्र मोदी तो हार नहीं सकते हैं।
ग्रूप बीस की चमक, चन्द्रयाण की अपार सफलता, आदित्य की सफलता के बाद नरेन्द्र मोदी नये जोश में हैं। टमाटर अपनी पुरानी शक्ति पर लौट आया है। सिलिंडर के दामों में 200 रूपये की कटौती कर आक्रोश को कम करने का काम किया है। आने वाले दिनों में इसी तरह पेटरोल के दाम कम होने की उम्मीद है। आवास, शौचालय और राशन का वोट बैंक दरक जायेगा, यह कहना मुश्किल है। ि फर भी इंडिया गठबंधन के नेता खुशफहमी तोडने के लिए तैयार नहीं हैं।
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