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होली के दिन ये क्या ठिठोली है
छुट्टी अपनी तो आज हो ली है
देह बन्दूक सी दिखे तेरी
और चितवन ज्यूँ लगे गोली है।
एक बिल्ली-सी आँख खोली है
एक बकरी-सी बोले बोली है
मर्खनी भैंस सी अदा तेरी
छुट्टी अपनी तो आज हो ली है
छुट्टी अपनी तो आज हो ली है
देह बन्दूक सी दिखे तेरी
और चितवन ज्यूँ लगे गोली है।
एक बिल्ली-सी आँख खोली है
एक बकरी-सी बोले बोली है
मर्खनी भैंस सी अदा तेरी
छुट्टी अपनी तो आज हो ली है
बीच सड़कों पे मस्त टोली है
सबकी बस प्यार भरी बोली है
चूम बुढ़िया को बूढ़ा यूँ बोला-
‘आज होली है, आज होली है’।
-प्रकाश मनु
जंगल में भी मस्ती लाया…
जंगल में भी मस्ती लाया
होली का त्योहार,
हाथी दादा लेकर आए
थोड़ा रंग उधार।
होली का त्योहार,
हाथी दादा लेकर आए
थोड़ा रंग उधार।
रंग घोल पानी में बोले-
वाह, हुई यह बात,
पिचकारी की जगह सूँड़ तो
अपनी है सौगात!
भरी बालटी लिए झूमते
जंगल आए घूम,
जिस-जिस पर बौछार पड़ी
वह उठा खुशी से झूम!
झूम-झूमकर सबने ऐसे
प्यारे गाने गाए,
दादा बोले-ऐसी होली
तो हर दिन ही आए!
श्रेणी: बाल-कविताएँ
– बेढब बनारसी
ऑफिस में कंपोजीटर कापी कापी चिल्लाता है…
आफिस में कंपोजीटर कापी कापी चिल्लाता है
कूड़ा-करकट रचनाएँ पढ़, सर में चक्कर आता है
बीत गयी तिथि, पत्र न निकला, ग्राहकगण ने किया प्रहार
तीन मास से मिला न वेतन, लौटा घर होकर लाचार
बोलीं बेलन लिए श्रीमती, होली का सामान कहाँ,
छूट गयी हिम्मत, बाहर भागा, मैं ठहरा नहीं वहाँ
चुन्नी, मुन्नी, कल्लू, मल्लू, लल्लू, सर पर हुए सवार,
सम्पादक जी हाय मनायें कैसे होली का त्यौहार
कूड़ा-करकट रचनाएँ पढ़, सर में चक्कर आता है
बीत गयी तिथि, पत्र न निकला, ग्राहकगण ने किया प्रहार
तीन मास से मिला न वेतन, लौटा घर होकर लाचार
बोलीं बेलन लिए श्रीमती, होली का सामान कहाँ,
छूट गयी हिम्मत, बाहर भागा, मैं ठहरा नहीं वहाँ
चुन्नी, मुन्नी, कल्लू, मल्लू, लल्लू, सर पर हुए सवार,
सम्पादक जी हाय मनायें कैसे होली का त्यौहार
साभार अमर उजाला