विश्व में एक और हिटलर की आहट सुनी जा रही है। एक और हिटलर की आहट को अनसुनी करने वाले घोर संकट को आमंत्रण दे रहे हैं। विश्व मंदी के संकट को जन्म देने वाले डोनाल्ड ट्रम्प आगे भी इसी तरह के हिटलरी कारनामे को अंजाम देते रहेंगे, ऐसी आशंका को खारिज करना मुश्किल है। शायद वह हिटलर के रास्ते पर चल रहे हैं। हिटलर ने युद्ध को अपनी अराजक शक्ति बनायी थी और दुनिया को चैपट करने का काम किया था, असंख्य लोगों का लहू बहाया था। मारे जाने के पूर्व हिटलर ने दुनिया की मानवता को ऐसी चोट पहुंचायी थी जिसकी कीमत दुनिया आज तक भुगत रही है, नागाशाकी और हिरोशिमा में आज भी बच्चे भयंकर विकृत जन्म लेते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प युद्ध और हथियार को अपनी अराजक शक्ति नहीं बना रहे हैं पर उनकी अराजक शक्ति तो आर्थिक हथकंडे हैं। आर्थिक हथकंडों के माध्यम से दुनिया के बाजार को अस्थिर ही नहीं करना चाहते हैं बल्कि तहस-नहस करना चाहते हैं। उनकी आर्थिक सुधार की नीतियां बहुत ही खतरनाक है, अमानवीय है और दुनिया के देशों की अस्मिाएं और संप्रभुत्ताओ को रौंदने वाले हैं। वह कैसे? टैरिफ एक ऐसा हथियार है जो बहुत ही घातक है और जानलेवा है। डोनाल्ड ट्रम्प से टैरिफ हथियार से न केवल बडे देश मर्माहत है बल्कि छोटे देश भी मर्माहत हैं और जो संकट ग्रस्त हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था धाराशायी हो सकती है, जिनकी उत्पादक ईकांइयों में मंदी का प्रकोप फैल सकता है, फलस्वरूप ताला लगने का संकट खडा हो सकता है। जब निर्यातक इंकाइयां मंदी की शिकार होगी और उन्हें के्रता नहीं मिलेंगे तो फिर उनके सामने बेमौत मरने की स्थिति उत्पन्न होगी, इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है। सबसे बडी बात यह है कि अमेरिका के मित्र देश भी इस संकट के भागीदार बन रहे हैं।
दुष्परिणम अभी से सामने आने लगे हैं। विश्व मंदी की आहट भी सुनाई देने लगी है। शेयर मार्केट को दुनिया की अर्थव्यवस्था का आईना समझा जाता है, मेरूदंड समझा जाता है। शेयर मार्केट अगर उपर जा रहा है तो यह समझा जाता है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था मजबूत है और गतिशील है, समृद्धि का प्रतीक है, लोग शेयर मार्केट में निवेश करने के लिए जोखिम लेने से नहीं झिझकेगे। लेकिन शेयर मार्केट अगर लुढकेगा तो फिर दुनिया की अर्थव्यवस्था में हाहाकार मचना अनिवार्य है। शेयर मार्केट का लुढकने का अर्थ यह है कि दुनिया आर्थिक मंदी की दौर से गुजर रही है, निवेशकों का विश्वास डगमगा गया है, निवेशक अपनी पंूजी मार्केट मे ढकलने और हानि होने का दांव नहीं खेलेंगे, जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं होंगे। सबसे बडी बात यह है कि अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार देने वाली कृषि और औद्योगिक इंकाइयों पर पडेगा जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का मेरूदंड होते हैं। भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश जो अपनी कृषि और औद्योगिक इंकाइयों की समृद्धि के बल पर दुनिया के उपभोक्ता मार्केट पर कब्जा जमाते हैं और अपनी अर्थव्यवस्था का मजबूत करते हैं, इतना ही नहीं बल्कि आर्थिक विकास की सीढियां चढते हैं। लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प का दूसरा उदय इन सबके लिए एक संकट और परेशानी का पर्याय बन गया है। दुनिया को हाहाकार करने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी खतरनाक और जानलेवा नीतियां बार-बार लागू करने का काम किया है।
खासकर शेयर मार्केट का धाराशायी होना यह प्रमाणित करता है कि डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीतियां बहुत ही खतरनाक और जानलेवा है। अमेरिका, फ्रांस, जापान, चीन और जर्मनी जैसे देशों के शेयर मार्केट में गिरावट देखी गयी है। अमेरिका के शेयर मार्केट में गिरावट को आश्चर्यजनक घटना मानी जा रही है। पिछले सप्ताह अमेरिकी और ब्रिटेन के बाजारों में शेयर सूचकांक पांच प्रतिशत से ज्यादा गिर गये। कोविड माहामारी के बाद अमेरिकी बाजार में सबसे ज्यादा गिरावट नोट किया गया है। दुनिया के अन्य शेयर बाजारों के गिरावट भी चिंता के कारण हैं। नुकसान भयानक हुआ है। निवेशकों के अरबों-खरबों डालर डूब गये, निवेशक अर्श से फर्श पर आ गये। इससे अमेरिकी बाजार भी खासे प्रभावित होंगे। जानकर यह बताते हैं कि अमेरिका में भी आर्थिक महंगाई बढेगी और बैरोजगारी का खतरा उत्पन्न होगा। अमेरिका का उपभोक्ता बाजार आयात पर ज्यादा निर्भर है। आयपित वस्तुएं जब महंगी होगी तो फिर अमेरिकी लोगों को उन आयातित वस्तुओं तक पहुंच निर्धारित और सुनिश्चित करने के लिए अधिक पूंजी खर्च करनी पडेगी। इस कारण अमेरिकी नागरिकों को भी अपने बैंक एकांउट की गरीबी का सामना करना पड सकता है।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यूरोप के बडे देशों जैसे ब्रिटैन, फ्रांस के लिए अमेरिका एक संरक्षक के तौर सामने आया था। ब्रिटेन और फ्रांस एक तरह से पराजित ही हो गये थे, सिर्फ हार यानी की आत्मसर्पण की घोषणा बाकी थी। इसी दौरान अमेरिका ने ब्रिटेन और फ्रास की रक्षा करने का काम किया, इन्हें हिटलर से लडने के लिए हथियार दिया, आर्थिक सहायताएं दी थी। हिटलर की पराजय के बाद यूरोप की सुरक्षा के लिए नाटो जैसा संगठन बनाया। नाटो में रूूरोपीय देश के साथ ही साथ अमेरिका भी शामिल है। लेकिन यूरोप के बडे देश ही नहीं बल्कि छोटे देश भी अमेरिका को लेकर नकरात्मक नीतियां स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। यूरोपीय देश भी टैरिफ वार के शिकार है। यूरोपीय देश प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं और प्रतिक्रिया में अमेरिकी वस्तुओं और अमेरिकी विजनों का बहिष्कार करने की घोषण भी कर रहे हैं। यूरोपीय यूनियन के ट्रेड कमिशनर मारोस सपकोविक ने कहा कि हमनें अमेरिकी अधिकारियों से दो घंटे तक बात की है, अपनी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि प्रतिक्रिया का इंतजार करना होगा। यूरोपीय देश भी डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ युद्ध का जवाब देंगे, इसकी नीतियां वे बना रहे हैं। अमेरिका के दोस्त ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया भी डोनाल्ड ट्रम्प की इस नीति से खफा है और अमेरिका का पक्ष लेने के लिए तैयार नहीं है।
ऐशिया महादेश में तीन देश प्रमुख हैं जो डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ युद्ध की गर्दन मरोड सकते हैं। पहला चीन है, दूसरा जापान है और तीसरा भारत है। चीन, जापान और भारत की अर्थव्यवस्था बहुत ही समृद्ध है। चीन भी आक्रमकता छोडने के लिए तैयार नही है। जवाबी कार्रवाई चीन ने शुरू कर दी है। चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर 34 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है। चीन के साझेदार कुछ यूरोपीय देश भी है, अफ्रीकी देशों में चीन की अच्छी पहुंच हैं। इधर जापान भी अपने हितों की रक्षा करने के लिए जवाबी कार्रवाई कर सकता है। जहां तक भारत की बात है तो भारत अभी भी तेल देखो, तेल की धार देखो की नीति पर चल रहा है। अमेरिका से आपसी बातचीत का रास्ता अपनाया है। फिर भी भारत का आतंरिक रोजगार और समृद्धि के अवसरों पर जो नकारात्मक प्रभाव पडा है उसे खारिज नहीं किया जा सकता है, उसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। खासकर कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में भीषण प्रभाव पडा है। भारत भी डोनाल्ड ट्रम्प को जवाब देने के लिए आज न कल कदम उठाने के लिए बाध्य होगा।
हिटलर की तरह डोनाल्ड ट्रम्प भी दुनिया को तहस-नहस करने और संहार करने का सपना देखते-देखते खुद भी आत्मघात कर सकते हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी, अमरिकी लोगों के सपने कब्र बन सकते हैं। खासकर दुनिया में अमेरिका का प्रभुत्व कमजोर होगा, संयुक्त राष्ट्रसंघ में अमरिकी भूमिका कमजोर होगी। कमजोर अैर मित्र देशों को टैरिफ हथकंडे से मुक्त करना चाहिए। हिटलर ने जिस तरह से अपने मित्र सोवियत संघ और स्तालिन पर हमला कर अपनी कब्र खोदी थी उसी प्रकार से डोनाल्ड ट्रम्प भी अपनी अराजक और हिंसक टैरिफ वार से अमेरिकी प्रभुत्व की कब खोद रहे हैं। खासकर भारत, जापान और ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के प्रति डोनाल्ड का टैरिफ रवैया सहनशीलता की श्रेणी में होना चाहिए।
संपर्क:
आचार्य श्रीहरि
नई दिल्ली
मोबाइल 9315206123




















