फॉलो करें

डब्ल्यूएचओ ने खुद खोदी अपनी कब्र — आचार्य श्रीहरि

57 Views

विश्व स्वास्थ्य संगठन पर डोनाल्ड ट्रम्प की मार पडी है। डोनाल्ड ट्रम्प ने डब्ल्यूएचओ को अनाथ बना दिया, हाशिये पर खडा कर दिया, बेमौत मरने के लिए चौराहे पर छोड दिया। डोनाल्ड ट्रम्प के शब्द बहुत कडे हैं और काफी मारक क्षमता वाले हैं। उन्होंने सजा शब्द का प्रयोग किया है। डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि मै डब्ल्यूएचओ को सजा दे रहा हूं, उसके कर्मो का फल उसे मिलेगा और वह हाशिये पर खडा होकर बेमौत मरेगा। डब्ल्यूएचओ से अमेरिका अलग हो गया। अमेरिका के अलग होने से डब्ल्यूएचओ एक तरह से अपंग हो जायेगा, उसके कई कार्यक्रमों और योजनाओं पर विराम लग जायेगा, उसकी भूखमरी से उत्पन्न वीमारियों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियानों की कटौती होगी और कमजोर भी होगा। चीन की तरफदारी कर और चीन के गुनाहों के प्रति आंख मूंद कर डब्ल्यूएचओ ने अपनी कब्र खोद खोदी है। गुनहगारों के प्रति सहानुभूति रखना या फिर उसके प्रति हमदर्दी रखना हमेशा नुकसानकुन होता है, आत्मघाती होता है और अपनी क्रब्र खोदने जैसा ही होता है।
इस विश्व स्वास्थ्य संगठन की निर्भरता अमेरिका पर कुछ ज्यादा ही थी। डब्ल्यूएचओ के अठारह प्रतिशत से अधिक दानकर्ता अमेरिका ही था। इसके साथ ही साथ डब्ल्यूएचओ को अमेरिका तकनीकी सहित अन्य सहयोग भी करता था। अमेरिका की इस निर्णय से उसके मित्र देश भी इसी तरह के प्रतिबंधित और आघात वाले कदम उठा सकते हैं और डब्ल्यूएचओ से अपना पींड छुडा सकते हैं। अमेरिका के मित्र देश भी डब्ल्यूएचओ के क्रियाकलापों से खुश नहीं हैं, उनके पर्दे के पीछे होने वाले खेल से खुश नहीं हैं। डब्ल्यूएचओ की अपनी कुछ कमजोरियां ऐसी हैं कि जिससे वह हाथी का सफेद दांत बन गया है, दुनिया के बडे देशों के लिए बोझ बन गया है, चीन और रूस जैसे देशों का मोहरा बन गया है, बीमारियों से लडने और बीमारियों के खिलाफ सशक्त अभियान चलाने में डब्ल्यूएचओ जरूर विफल रहा है।
डब्ल्यूएचओ के अधिकारी दुनिया को सिर्फ बीमारियों के डर को दिखाने और उसके नाम पर मनोरंजन करने में ज्यादा सक्रिय रहते हैं। कोरोना काल इसका उदाहरण है। जब कोरोना विकराल रूप धारण कर लिया और दुनिया भर में लाखों मौतें हुई तो फिर डब्ल्यूएचओ सिर्फ कागजी शेर ही दिखाई दिया, उसके पास कोरोना से लडने के लिए कोई योजना नहीं थी और न ही उसकी तैयारियां ऐसी थी कि जिससे गरीब देशों को कोरोना बीमारी से राहत मिलती। कागजी शेर की दहाड अमेरिका क्यों सुने? अपनी अर्थव्यवस्था को बलिदान कर दुनिया के देश इस कागजी शेर को क्यों गतिशील रखने के काम करें? विचारण के विषय यही हैं।
ट्रम्प की डब्ल्यूएचओ से दुश्मनी कोरोना काल की है। ट्रम्प की चार साल पूर्व हुई हार के पीछे डब्ल्यूएचओ को माना। डोनाल्ड ट्रम्प की समझ थी कि कोरोना काल के कारण उनकी हार हुई। कोरोना को वे ठीक से नियंत्रण नहीं कर पाये थे। अमेरिका में कोरोना से हजारों लोगों की मौत हुई थी। कोरोना से अमेरिका त्राहिमाम कर रहा था। कोरोना संकट के दौरान ही अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुआ था और जनता के बीच कोरोना को लेकर गुस्सा था और उस गुस्से के शिकार डोनाल्ड ट्रम्प हुए थे। डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि कोरोना चाइनिज वायरस है। चीन ने अमेरिका और यूरोप को तबाह करने के लिए कोरोना वायरस छोडा है। उस समय दुनिया में धारणा यही थी कि कोरोना का वायरस चाईनिज है। चीन के प्रयोगशाला से ही यह वायरस बाहर आया और दुनिया में फैला। तथ्य भी यही था कि कोरोना बीमारी चीन से बाहर की दुनिया में गयी थी और पहला कोरोना रोगी भी चीन मे ही पाया गया था। चीन के प्रयोग शाला में ऐसा वायरस बनाया जा रहा था जो बिना युद्ध किये किसी देश को तबाह कर सकता था। असावधानी से कोरोना वायरस प्रयोगशाला की परिधि और लक्ष्मण रेखा से बाहर आ गया था। उस वायरस को चीनी वैज्ञानिक नियंत्रित करने में सफल नहीं हो सके थे। डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर कोरोना वायरस फैलाने के सरेआम आरोप लगाये थे। डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि चीन को अपनी करतूत के कारण जिम्मेदारी लेनी चाहिए और दुनिया भर जो ंसंहार हुआ है, जो क्षति हुई है उसकी सजा चीन को मिलनी चाहिए। ट्रम्प की इस अवधारणा के खिलाफ चीन काफी आबबबुला हुआ था।
डोनाल्ड ट्रम्प ने डब्ल्यूएचओ से चीन की जिम्मेदारी तय करने के लिए कहा था। डब्ल्यूएचओ की जिम्मेदारी भी बनती थी कि कोरोना वायरस कहा सें आया? इसकी खोज करने की। डब्ल्यूएचओ ने चीन के अंदर जांच करने की थोडी कोशिश जरूर की थी। पर डब्ल्यूएचओ ने चीन की जिम्मेदारी तय करने की वीरता नहीं दिखायी थी। डब्ल्यूएचओ ने यह भी नहीं माना था कि चीन की करतूत कोरोना बीमारी का वायरस है। जबकि चीन से नही ंतो यह बीमारी कहां से आयी थी? यह तय करने और या फिर खोज करने में डब्ल्यूएचओ विफल रहा था। एक प्रश्न यह भी उठा था कि डब्ल्यूएचओ के पास इतना संसाधन होने और इतनी स्वास्थ्य शक्तियां होने के बावजूद यह संगठन असहाय क्यों रहा? जबकि इस संगठन के पास हजारों स्वास्थ्य बैज्ञानिक और कर्मचारी हैं, जिनका प्रथम कार्य ही बीमारियों के बारे में संपूर्ण जानकारी जुटाना और रोकथाम के लिए कारगर कदम उठाना था।
डब्ल्यूएचओ ने अपने बयान में खुद यह माना है कि अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए विशेष स्थान रखता है। डब्ल्यूएचओ के स्थापना काल से ही अमेरिका सहयोगी रहा है। डब्ल्यूएचओ की स्थापना 1948 में हुई थी। अमेरिका के साथ मिलकर डब्ल्यूएचओ ने कोई एक नहीं बल्कि कई बीमारियों के खिलाफ सफल अभियान चलाया है। डब्ल्यूएचओ ने चेचक और पोलियो उन्मूलन में अपनी पीठ थपथपाई है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि उसने दुनिया भर में चेचक और पोलियों का उन्मूलन किया है पर इसमें उसने अमेरिका को भी श्रेय दिया है। कुपोषण युक्त बीमारियों के खिलाफ भी डब्ल्यूएचओ का अभियान बहुत ही राहतकारी रहा है। खासकर अफ्रीकी महादेश के देशों में भूख से बच्चों की मृत्यु दर बहुत ही ज्यादा है, भूख जनित बीमारियों का प्रकोप इतना है कि बच्चों की शरीर से मांस ही गायब हो जाता है। ऐसी खतरनाक बीमारियो से लडने के लिए इस वैश्विक संगठन को अमेरिका जैसे विशालकाय और धनी देश की जरूरत है। इस तथ्य को इनकार नही किया जा सकता है।
दोष सिर्फ डोनाल्ड का नहीं है। दोष डब्ल्यूएचओ का भी है। डब्ल्यूएचओ की मूर्खता ही सामने आती है। डब्ल्यूएचओ का दोष क्या है और उसकी मूर्खता क्या है? डब्ल्यूएचओ की मूर्खता और दोष आ बैल मार वाली कहानी है। समुद्र में रहकर मगरमच्छ से बैर लेने वाली कहानी है। डब्ल्यूएचओ ने उस अमेरिका से बैर मोल ले लिया जो उसका मेरूदंड था, उसकी जान थी। क्योंकि डब्ल्यूएचओ के दानदाताओं में अमेरिका सर्वश्रेष्ठ और अग्रणी देश है। अमेरिका के साथ यूरोपीय देश भी है। अमेरिका के साथ जापान जैसे देश भी है। भारत भी चीन के कारण डब्ल्यूएचओ से खुन्नश रखता है। अमेरिका के रास्ते पर जापान और भारत भी चल दिये और अमेरिकी दोस्त यूरोपीय देश भी चल निकले तो फिर डब्ल्यूएचओ की कहानी क्या बनेगी? क्या इस पर डब्ल्यूएचओ ने कभी भी मंथन किया है?
डब्ल्यूएचओ की स्वतंत्रता और निष्पक्षता जरूरी है। चीन की तरफदारी कर, चीन के प्रति आंख मूद कर डब्ल्यूएचओ ने अपनी कब्र खोदी है। चीन बहुत की कइयां देश है, उसके लिए मानवाधिकार और मानवता कोई अर्थ नहीं रखता है। चीन एक तानाशाही वाला देश है और उसकी नीतियां लूटो और राज करो वाली है। चीन के फेर में पडकर कई अफ्रीकी देश कंगाल हो गये, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देश भी चीन के फेर में कंगाल हो गये। अमेरिका की तरह चीन कभी भी डब्ल्यूएचओ की सहायता नहीं करेगा। फिर डब्ल्यूएचओ की एचआईवी, मलेरिया और तपेदिक जैसी दर्जनों बीमारियों के खिलाफ चलने वाले अभियान कैसे चलेंगे?

संपर्क्र
आचार्य श्रीहरि
मोबाइल   9315206123

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

+22°C
Sat
+25°C
+19°C
Sun
+26°C
+18°C
Mon
+25°C
+18°C
Tue
+31°C
+20°C
Wed
+34°C
+24°C
Thu
+32°C
+27°C
Fri
+29°C
+21°C
Weather Data Source: Wetter Heute Kapstadt

राशिफल