उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि समाज में न्याय, समानता और प्रगति लाने के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी और परिवर्तनकारी तंत्र है
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि समाज में न्याय, समानता और प्रगति लाने के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी और परिवर्तनकारी तंत्र है और लोगों को शिक्षित किए बिना सामाजिक परिस्थितियों को नहीं बदला जा सकता है। धनखड़ ने असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के 21 वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि छात्रों से ‘परिवर्तन का वाहक’ बनकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम करना चाहिए। उन्होंनें छात्रों से कहा, “आप 2047 के भारत के निर्माता और योद्धा हैं।प्रतियोगिता को सर्वश्रेष्ठ गुरु और भय को सबसे बड़ा शत्रु बताते हुए धनखड़ ने छात्रों से बड़े सपने देखने और कभी भी तनाव नहीं लेने को कहा। उन्होंने छात्रों से कहा, “सपने देखो लेकिन सिर्फ सपने देखने वाले मत बनो, उन सपनों को साकार करो। पूर्वोत्तर के आठ राज्यों की भारत की ‘अष्ट लक्ष्मी’ के रूप में प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन राज्यों के विकास और योगदान के बिना भारत का विकास अधूरा रहेगा। उन्होंने इस क्षेत्र की भाषाई विविधता और साहित्यिक परंपराओं को संरक्षित करने की दिशा में काम करने की सराहना करते हुए कहा कि भाषाओं का संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे हजारों वर्षों में विकसित हुई हैं।संसद को लोकतंत्र का मंदिर बताते हुए धनखड़ ने कहा कि यह एक ऐसा मंच है जहां जनहित के मुद्दों पर बहस, विचार-विमर्श, चर्चा और निर्णय लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि संसद में लंबे समय तक व्यवधान होने से, लोगों का अपने प्रतिनिधियों के प्रति सम्मान और विश्वास कम होता है। इसलिए, उन्होंने एक परिवेश बनाने का आह्वान किया ताकि सांसद संविधान के संस्थापकों की भावना का सम्मान बनाए रखते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने असम की प्रतिष्ठित हस्तियों को डी.एस.सी. और डी. लिट डिग्री (ऑनोरिस कौसा) की उपाधियाँ प्रदान की। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में पौधारोपण भी किया।