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डुमरांव स्टेशन के समीप स्थित ऐतिहासिक भोजपुर किला बदहाली के आंसू बहा रहा है

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दिलीप कुमार द्वारा नया भोजपुर, बिहार से एक विशेष रिपोर्ट 09 मई:

डुमरांव रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक भोजपुर किला, जिसे राजा भोज के वंशज राजा रुद्र प्रताप सिंह ने 1633 ईस्वी में बनवाया था, आज उपेक्षा की मार झेल रहा है। इतिहास की अमूल्य धरोहर, यह किला आज प्रशासनिक उदासीनता और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी का शिकार बन चुका है।

इतिहासकारों और स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, परमार वंश के राजा भोज के पुत्र ने मुगलों के अत्याचार से त्रस्त होकर पूर्व की ओर पलायन कर डुमरांव के निकट ‘भोजपुर’ नगरी बसाई थी, जिसे आज ‘नया भोजपुर’ के नाम से जाना जाता है। कहते हैं, यह किला गंगा तट पर स्थित था, और इसमें 52 गली व 53 बाजार हुआ करते थे। आज भी किले के पास सब्जी मंडी लगती है, जो इस गौरवशाली अतीत की झलक देती है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि एक स्कूल की खुदाई में मिली सुरंग में लोहे की जंजीरें मिलीं जो अब तक बिना जंग के सुरक्षित हैं—संकेत है कि यह कभी राजा का बंदीगृह रहा होगा। वहीं, एक जनश्रुति के अनुसार, राजा ने दरिद्रता को ‘खरीद’ लिया था, जिसके कारण गंगा नदी वहां से हट गई।

मुगलों ने 1636 में किले पर हमला कर उसे ध्वस्त कर दिया। राजा रुद्र प्रताप सिंह ने आत्मसमर्पण से इनकार किया, जिसके कारण उन्हें मृत्यु दंड दिया गया। किले के बचे हुए भग्नावशेष आज भी पतली ईंटों, चूने की दीवारों और उत्कृष्ट नक्काशी के प्रमाण हैं। किले का बेस कछुए के आकार में है जो अपने भीतर कई रहस्य समेटे है—कहा जाता है कि यहां एक भूल-भुलैया भी थी, जिसके ‘नाक कटा’ की कहानी प्रसिद्ध है। लोग कहते हैं, इसके द्वार पर जलता दीप दिल्ली से दिखाई देता था।

संरक्षण के प्रयास और विफलताएं
2013 में जिला प्रशासन ने इस ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण हेतु केंद्र सरकार को ₹45 लाख का प्रस्ताव भेजा, लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। 2022 में विधायक डॉ. अजीत कुमार सिंह ने विधानसभा में इसकी दुर्दशा का मुद्दा उठाया और पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग की, लेकिन वह भी कागज़ों में ही दफन हो गया।

डंपिंग ग्राउंड बनता इतिहास
सबसे दुखद पहलू यह है कि नगर परिषद ने किले के आसपास का क्षेत्र डंपिंग ग्राउंड में तब्दील कर दिया है। कचरे के ढेर, फटे हुए पुरातत्व विभाग के बोर्ड और अतिक्रमण इस धरोहर को लगातार निगल रहे हैं। खसरा-खतौनी में ‘नवरत्नगढ़’ के नाम से दर्ज भूमि पर अब कब्रें बन गई हैं।

स्थानीय निवासी अवध बिहारी पांडे बताते हैं कि प्रशासनिक चुप्पी और वोट बैंक की राजनीति के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर अपनी अंतिम साँसे गिन रही है। जलक्रीड़ा स्थल और ऐतिहासिक गढ़ भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। बाबा भोजेश्वर नाथ का मंदिर—जो राजा भोज के वंशजों का माना जाता है—अब भी यहां स्थित है और लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

जनप्रतिनिधियों की चुप्पी
हमने वार्ड पार्षद श्री धनंजय पांडे से कई बार संपर्क की कोशिश की, लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो सके। नगर परिषद की चेयरपर्सन के प्रतिनिधि श्री सुमित कुमार से भी लंबी मशक्कत के बाद मुलाकात हो सकी, मगर उन्होंने शाम तक समय देने की बात कहकर बात टाल दी।

अब भी समय है—बचाइए अपनी धरोहर
भोजपुर किला केवल एक ऐतिहासिक स्मारक नहीं, बल्कि भोजपुरी संस्कृति की जड़ है। यहीं से भोजपुरी भाषा की उत्पत्ति मानी जाती है। यदि सरकार और प्रशासन ने अब भी कदम नहीं उठाए, तो यह धरोहर इतिहास में खो जाएगी। ज़रूरत है कि इसे राष्ट्रीय महत्व की धरोहर घोषित कर संरक्षित किया जाए, पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाए, और स्थानीय इतिहास को शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

“भोजपुर केवल एक गांव नहीं, भोजपुरी अस्मिता का केंद्र है।”
प्रेरणा भारती की यह अपील है कि सरकार, जनप्रतिनिधि और समाज मिलकर इस धरोहर को संरक्षित करने का संकल्प लें।

हमारे प्रेरणा भारती डिजिटल के यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज पर इसका वडियो प्रसारण देख सकते हैं।

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