असम भिन्न भाषिक समुदायों का निवासस्थल है। प्रायः चार करोड़ जनसंख्या वाले इस प्रदेश में असमियाभाषी बहुसंख्यक हैं। जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरे क्रम पर हैं चाय जनजाति सह हिंदीभाषी। इस प्रदेश में राष्ट्रवाद का झंडा लेकर यह समुदाय ही चल रहा है। इसका प्रमाण हैं राम मंदिर निर्माण आन्दोलन जब नब्बे के दशक में आरंभ हुआ था, उस समय १९९१ ई. में आयोजित असम विधानसभा चुनाव में भाजपा का तबतक सर्वश्रेष्ठ विजय। बराकघाटी के अधिकांश चाय बागान क्षेत्र के विधानसभा आसनों में भाजपा प्रार्थी विजयी हुए थे। सोनाइ, पाथारकांदि, राताबाड़ी, धोलाई, काटिगोरा विधानसभा क्षेत्र में अधिकांश मतदाता हिंदीभाषी सह चाय जनजाति समुदाय के हैं। इन विधानसभा क्षेत्रों से प्रथमबार भाजपा प्रार्थी विजयी हुए थे। उस समय तक भाजपा का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था असम विधानसभा चुनाव में १० विजयी प्रार्थी के संग। पाथारकांदी से प्रथमबार भाजपा प्रार्थी के रूप में विजयी हुए थे स्वर्गीय मधुसूदन तिवारी जी एवं सोनाइ विधानसभा से विजयी हुए थे स्वर्गीय बद्रीनारायण सिंह जी। दुर्भाग्य से दोनो हिंदीभाषी प्रार्थियों को भाजपा द्वारा अगले विधानसभा चुनाव में प्रार्थी नहीं बनाया गया था उनके विजयी आसनों से । क्या यह कोई षड़यंत्र था कुछ भाजपाईयो का कि हिंदीभाषियो को असम प्रदेश भाजपा से बाहर करना हैं या उनको भाजपा में आगे नही करना हैं ? असम में प्रथमबार भाजपा सत्ता में आई २०१६ ई. में अन्य क्षेत्रीय दलो के संग गठबंधन करके। पुनः भाजपा गठबंधन सत्ता में आई २०२१ ई. में। दोनो विधानसभा चुनावों में भाजपा ने चाय बागान क्षेत्र में चाय जनजाति या हिंदीभाषियों को प्रार्थी नही बनाया २/३ आसन छोड़कर। उन चाय बागान क्षेत्रों में भाजपा से हिंदीभाषी प्रार्थी सहजता से विजयी होता। बराकघाटी में असम प्रदेश भाजपा में उन लोगो को महत्व दिया जा रहा है जो पूर्वी पाकिस्तान से मुसलमानो से पलायन करके यहाँ शरण लिया था जो एकसमय कांग्रेस तथा वामपंथी दलो के घोर समर्थक थे। जो लोग समय के अनुसार अपना रंग बदलते हैं, सत्ता सुख भोगने के लिए आज भाजपा में सक्रिय हैं। भाजपा की मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी मूकदर्शक होकर यह सब देख रहे हैं। आज असम प्रदेश में कांग्रेस युक्त भाजपा हैं। सम्पूर्ण असम राज्य में भाजपा संगठन में हिंदीभाषी सह चाय जनजाति के लोग नाम मात्र के ही हैं। असम सरकार द्वारा बार-बार हिंदी भाषा के प्रति भी भेदभाव की जा रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने अपने एक आदेश में लिखा हैं कि हिंदी स्वाभाविक रूप से भारत की राष्ट्रभाषा हैं। इसी हिंदी भाषा शिक्षण हेतु असम सरकार की प्रादेशिकृत विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालयो में आवश्यकतानुसार शिक्षक नही हैं तथा दूसरे सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। सम्पूर्ण बराकघाटी में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम बलिदानी मंगल पाण्डे की एक भी मूर्ति नही हैं। जिनको विदेशी औपनिवेशिक अंग्रेज शासको ने १८५७ ई. में मृत्युदंड दे दिया था। उस महान बलिदानी की मूर्ति हम शिलचर नगर के समीप घुंघूर मंगल पाण्डे चौराहे पर स्थापित करना चाहते हैं। जिसके लिए मंगल पाण्डे मूर्ति स्थापना समिति २०२१ ई. से संबंधित असम सरकार की लोक निर्माण विभाग से अनुमति पत्र प्राप्त करने हेतु काछाड़ जिलाधिकारी से लेकर असम के मुख्यमंत्री तथा भारत सरकार की सड़क परिवहन तथा राजमार्ग मंत्रालय की मंत्री नीतीन गडकरी को आवेदन / ज्ञापन दे चुका हैं। दुर्भाग्य से भाजपा की स्वघोषित राष्ट्रवादी असम सरकार आज तक अनुमति पत्र नही दिया हैं। असम के मुख्यमंत्री एकबार मूर्ति स्थापना समिति के लोगो को आमंत्रित किए थे उनके शिलचर प्रवास के समय जनवरी २०२२ ई. में तथा आश्वस्त किए थे कि समिति को अनुमति पत्र प्राप्त होगा।
काछाड़ जिला के एकजन स्थानीय भाजपा विधायक से बार-बार मूर्ति स्थापना समिति के पदाधिकारी भेंट करके अनुरोध कर चुके हैं अनुमति पत्र के लिए किंतु प्रत्येक बार वह नकारात्मक प्रतिक्रिया दे चुके हैं। क्या हम किसी राजनेता से सहयोग धनराशि मांग कर रहे है? नही, हम केवल असम सरकार से अनुमति पत्र मांग कर रहे है, जो देना असम सरकार की दायित्व हैं एवं कर्तव्य हैं। बराकघाटी के प्रत्येक कोने में भिन्न भाषिक समुदाय के प्रख्यात व्यक्तियो की मूर्ति स्थापित हैं। भारत के समान एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में यह एक स्वाभाविक क्रिया हैं। क्यों फिर हमारे संग भेदभाव हो रहा हैं? भाजपाई अपने आपको राष्ट्रवादी कहते हैं। क्या असम में यह उनका राष्ट्रवाद हैं कि विश्व के सबसे प्राचीन एवं बड़े गणतंत्र के एक महानायक वीर योद्धा स्वतंत्रता संग्रामी मंगल पाण्डे की मूर्ति स्थापित करने हेतु हम शिलचर से असम के राजधानी दिसपुर होकर दिल्ली तक ज्ञापन दे रहे हैं? हमे केवल अपमान प्राप्त हो रहा हैं। बराकघाटी में विशेषकर चाय बागान क्षेत्रों में नक्सल माओवाद का प्रभाव हैं। इसका प्रमाण हैं २०२२ के मार्च में काछाड़ जिला अंतर्गत पाथिमारा क्षेत्र से पश्चिमबंगाल निवासी एक नक्सल माओवादी आतंकवादी अरुण भट्टाचार्य (कंचन दा) का गिरफ्तार होना असम आरक्षी द्वारा। इस वयस्क माओवादी आतंकवादी को गिरफ्तार करने के लिए तीन करोड़ रुपए का घोषित पुरस्कार था। इसके ऊपर भारत के विभिन्न राज्यों में २०० अभियोग प्रविष्ट हैं। असम में विगत वर्ष चुनाव क्षेत्र परिसीमन के पश्चात कुछ असम विरोधी एवं जिहादी बराकघाटी को असम प्रदेश से पृथक करने के लिए मांग कर रहे हैं। क्या भाजपा सह इसके मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों के अनुसार यह सब नक्सल माओवादी अलगाववादी भारत विरोधी, असम विरोधी लोग ही राष्ट्रवादी हैं? जिन लोगो का इतिहास है कि १९६२ ई. में हमारे ऊपर आक्रमणकारी चीनी सैनिको का स्वागत किया था। इन वामपंथी माओवादियो ने चीनीयो को चंदा उठाकर सहयोग किया था। यह लोग उस समय चीन के राष्ट्रपति को भारत का राष्ट्रपति बोल रहा था। यह सब वामपंथी बोल रहे थे कि चीनी सैनिक उनको स्वतंत्र करने के लिए भारत पर आक्रमण किया हैं। उस समय बड़े वामपंथी नेता ज्योति बसु जैसे भारत विरोधियो को भारत सरकार ने कारागार में डाला था।
क्या यह सब अभी राष्ट्रवादी भाजपा समर्थक हो गए हैं? भाजपा सह संघ परिवार के लोग इस अहंकार में नही रहे कि भाजपा अपराजेय हैं। इसका उदाहरण हैं महाराष्ट्र, कर्णाटक एवं हिमाचल प्रदेश में भाजपा सत्ता में रहते हुए विधानसभा चुनाव में हार गया था। असम प्रदेश भाजपा की हिंदीभाषी तथा चाय जनजातियो के प्रति भेदभाव का उत्तर इस वर्ष लोकसभा चुनाव में अवश्य ही प्राप्त होगा।
#राजन कुँवर , बिहारा , काछाड़ (असम)
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- Admin
- January 28, 2024
- 12:53 pm
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दक्षिण असम से प्रकाशित एकमात्र दैनिक हिंदी समाचार पत्रिका प्रेरणा भारती के १४ जनवरी २०२४ के अंक में लिखित आलेख “बराकघाटी में भाजपा क्यों कर रही हैं हिंदीभाषियों की उपेक्षा ” के संदर्भ में पत्र
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