दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण गंभीर समस्या बन गई है।एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में प्रकाशित एक खबर के अनुसार ‘उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच गई। दिल्ली-एनसीआर के साथ लखनऊ, पटना, भोपाल, कानपुर, नोएडा, गाजियाबाद, जयपुर और चंडीगढ़ में धुंध की मोटी परत छाई रही। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, कई शहरों में एक्यूआइ 400 से पार गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में है। विशेषज्ञों ने कहा कि ठंडी हवाओं और आतिशबाजी के कारण प्रदूषक तत्व ऊपर नहीं उठ पाए, जिससे पूरे उत्तर भारत पर धुएं की चादर फैल गई।’ दरअसल, सर्दियों में वायु प्रदूषण में वृद्धि कई कारणों से होती है। इस मौसम में धूप कम और तापमान ठंडा होने के कारण हवा स्थिर हो जाती है, जिससे धुआं और प्रदूषक कण हवा में फैल नहीं पाते और नीचे जमे रहते हैं। इसके अलावा,इस मौसम में लोग हीटर, कोयला और लकड़ी का अधिक उपयोग करते हैं, जिससे वातावरण में कणीय प्रदूषण बढ़ता है। उत्तर भारत में पराली जलाना भी सर्दियों में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बनता है। सड़क पर धूल और वाहनों से निकलने वाला धुआं भी हवा को और प्रदूषित करता है। धुंध और स्मॉग के कारण दृश्यता कम हो जाती है और श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। हर साल दीपावली के बाद धुआं, धूल और पराली जलाने से हवा जहरीली हो जाती है। लोगों को सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और बीमारियों का खतरा बढ़ता है। इसके लिए, सरकार और जनता दोनों को मिलकर समाधान के प्रयास करने चाहिए, जैसा कि स्वच्छ हवा ही स्वस्थ जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है। त्योहार, पटाखे, स्थानीय उत्सर्जन और मौसम का मिश्रण, हमारे पर्यावरण पर कितना तीव्र प्रभाव डाल सकता है, हाल ही में इस बात का बखूबी पता चला। दरअसल, 20 अक्टूबर 2025 को दिवाली के बाद दिल्ली देश में सबसे प्रदूषित राजधानी हो गई। खबरों से पता चला है कि दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई शहर ‘गैस चैंबर’ बन गए हैं। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार नई दिल्ली में 21 अक्टूबर को (मंगलवार) को प्रदूषण के कारण सिग्नेचर ब्रिज भी धुंध में डूब गया। दिवाली के तुरंत बाद, सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों व विश्लेषणों के अनुसार, शहर में 24-घंटे के औसत पीएम 2.5 (2.5 माइक्रोन या उससे छोटे कण) का मान लगभग 488 माइक्रोग्राम/घनमीटर रहा।दिवाली-रात के दौरान कुछ स्थानों पर पीएम 2.5 ने 675 µg/m³ तक पहुँचने का रिकॉर्ड दिखाया गया।एक्यूआइ(एयर क्वालिटी इंडेक्स) के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में अधिकांश इलाकों में ‘बहुत खराब'(एक्यूआइ 300 से अधिक) श्रेणी में हवा थी। पाठकों को बताता चलूं कि दिवाली के दौरान पटाखों का इस्तेमाल प्रमुख कारण माना गया है।इस वर्ष स्टबल-बर्निंग (खेती की अवशेष जलाना) में लगभग 77 % कमी के बावजूद (पंजाब-हरियाणा में) हवा काफी बिगड़ी।इसके अलावा, रात में हवा धीमी थी, ‘इन्वर्शन’ की स्थिति बनी रही जिससे प्रदूषक नीचे ही फँसे रहे। वास्तव में, कहना ग़लत नहीं होगा कि दिवाली के उत्सव के बाद दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई राज्यों की हवा फिर खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है।हवा के प्रदूषित (जहरीली होने) से लोगों को आंखों में जलन, गले में खराश और सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक सोमवार को दिल्ली की वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ व ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज की गई। राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 531 तक पहुंच गया, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक माना जाता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार हरियाणा में सोमवार रात, दिवाली वाले दिन रात 12 बजे तक 15 जिलों में एक्यूआइ 500 तक पहुंच गया था। मुंबई के कई इलाकों में दिवाली के दिन एक्यूआइ 375 तक पहुंच गया। हालांकि, लोगों को मंगलवार को सुबह कुछ राहत मिली। राजस्थान में मंगलवार सुबह 8 बजे तक एक्यूआइ 243 रहा। भिवाडी में राज्य में सबसे ज्यादा एक्यूआइ 318 रिकॉर्ड किया गया।भोपाल में मंगलवार को औसत एक्यूआइ 316 दर्ज किया गया,जो कि बहुत खराब श्रेणी में आता है। इतना ही नहीं, लखनऊ में 222 और कानपुर में 203 एक्यूआइ दर्ज किया गया। क्या यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील बात नहीं है कि नई दिल्ली में सीपीसीबी के 38 निगरानी केंद्रों में से 34 ने ‘रेड जोन’ यानी ‘बहुत खराब’ या ‘गंभीर’ स्तर दर्ज किया गया। नरेला में एक्यूआइ 551 दर्ज हुआ, जो सबसे अधिक रहा। अशोक विहार में एक्यूआइ 493 और आनंद विहार में 394 पर पहुंच गया। वहीं यूपी के नोएडा में 369 और गाजियाबाद में 402 का स्तर रेकॉर्ड किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। गौरतलब है कि राजधानी में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान ग्रैप-2 के नियम पहले से लागू है। इसके बावजूद हवा में जहरीले कणों की मात्रा बढ़ गई। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि हर वर्ष दीपावली के बाद दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। पटाखों से निकलने वाला धुआं और हानिकारक गैसें हवा में मिलकर सांस लेना मुश्किल बना देती हैं। दूसरी ओर, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलने वाली पराली प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देती है। इन दोनों कारणों से वातावरण में धूल, धुआं और सूक्ष्म कणों की मात्रा बढ़ जाती है। आसमान में धुंध की चादर छा जाती है, जिससे दृश्यता घट जाती है। बच्चों, बुजुर्गों और रोगियों को सांस से जुड़ी बीमारियां घेर लेती हैं। स्कूलों और दफ्तरों में उपस्थिति प्रभावित होती है। सरकार और न्यायालय हर साल अपील करते हैं कि लोग पटाखे न जलाएं और पराली न जलाएं। फिर भी जागरूकता की कमी के कारण यह समस्या दोहराई जाती है। अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर स्वच्छ और हरित दीपावली का संकल्प लें।
दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य इलाकों में वायु की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दर्ज किए जाने की स्थिति तब है, जब पिछले कई वर्षों से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या को लेकर आम आदमी, विभिन्न एनजीओ, सरकारों व राजनीतिज्ञों द्वारा हर स्तर पर गंभीर चिंता जताई जाती रही है। गौरतलब है कि 2025 के अक्टूबर महीने में, दिल्ली का एक्यूआइ (वायु गुणवत्ता सूचकांक) ‘हैज़र्डस’ श्रेणी में पहुँच गया था और एक नमूने में एक्यूआइ 442 रिकॉर्ड हुआ था। रीयल-टाइम डेटा के अनुसार, कुछ इलाकों में पीएम 2.5 ≈ 219 µg/m³ और पीएम10 ≈ 348.8 µg/m³ तक दर्ज किया गया है। यहां उल्लेखनीय है कि वार्षिक औसत रूप से, दिल्ली में PM2.5 का स्तर राष्ट्रीय मानकों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) की गाइडलाइनों से कई गुना अधिक है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2025 के पहले आधे में दिल्ली में PM2.5 का औसत 87 µg/m³ था। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की वार्षिक सीमा को बहुत पहले पार कर चुका था। आइक्यू एयर की 2024 वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के अनुसार,दिल्ली फिर से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी घोषित की गई है। जानकारी के अनुसार दिल्ली का औसत PM2.5 स्तर 92.7 µg/m³ रहा। यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा (5 µg/m³) से लगभग 18 गुना अधिक है।यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि भारत के 7 शहर दुनिया के टॉप-10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं, जिनमें दिल्ली सबसे ऊपर है। बहरहाल, विशेषकर दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए दावे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन दिवाली के बाद हालात हर साल की तरह बिगड़ जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बार ग्रीन पटाखों की सीमित अनुमति दी थी, पर लोगों ने इसका भी दुरुपयोग किया। नतीजतन, दिल्ली सहित कई शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। जानकारी के अनुसार दिल्ली में यह 991पर और लखनऊ में यह 1317 तक पहुंच गया। वास्तव में, यह स्थिति बताती है कि अदालतों के आदेश और सरकारी कदम केवल औपचारिक साबित हो रहे हैं। जनता का सहयोग न मिलना भी बड़ी वजह है। अधिकांश लोग मानते हैं कि यह सरकार की जिम्मेदारी है, जबकि प्रदूषण कम करने में नागरिक भागीदारी सबसे अहम है। पुलिस और प्रशासन के लिए यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं कि हर घर में निगरानी रख सके कि कौन से पटाखे चले। इसलिए आज ज़रूरत इस बात की है कि प्रदूषण रोकने के लिए समाज व आम आदमी खुद आगे आए। धार्मिक और सामाजिक नेताओं को भी लोगों को समझाना होगा कि पर्यावरण की रक्षा ही सच्ची पूजा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि प्रदूषण अब केवल दिल्ली की नहीं, पूरे देश की समस्या बन चुका है। यह बात सही है कि आज के इस युग में प्रदूषण पर पूरी तरह से रोक लगा पाना तो संभव नहीं है, लेकिन इसे काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है। वास्तव में, दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत में वायु प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए कई प्रभावी उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले, पराली जलाने पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए और किसानों को पराली प्रबंधन के लिए आधुनिक मशीनें व आर्थिक सहायता दी जाए। वास्तव में, पराली प्रदूषण से मुक्ति के लिए किसानों, सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करना होगा। किसानों को पराली जलाने के बजाय उसका उपयोग खाद, जैव-ऊर्जा या चारे के रूप में करना चाहिए। सरकार को, जैसा कि ऊपर बता चुका हूं कि पराली प्रबंधन मशीनों पर सब्सिडी और जागरूकता अभियान बढ़ाने चाहिए। आज के इस दौर में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील तकनीकों को बढ़ावा देना बहुत ही जरूरी और आवश्यक है। स्कूलों और पंचायत स्तर पर जागरूकता फैलाकर लोगों को इसके दुष्प्रभाव बताए जाने चाहिए। वैज्ञानिक तरीकों से पराली का पुनर्चक्रण किया जा सकता है। यदि हर किसान जिम्मेदारी से कदम उठाए तो हवा फिर से स्वच्छ हो सकती है। सामूहिक प्रयास से ही पराली प्रदूषण से मुक्ति संभव है। दूसरा, वाहनों से निकलने वाले धुएं को नियंत्रित करने के लिए पुराने वाहनों को हटाया जाए, इलेक्ट्रिक वाहनों और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाए। इतना ही नहीं, आज के समय में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा और बायो ऊर्जा के उपयोग से प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। ये स्रोत प्राकृतिक हैं और इनसे कार्बन डाइऑक्साइड, धुआं या हानिकारक गैसें उत्सर्जित नहीं होतीं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के समय में विद्यालयों, कार्यालयों और आवासीय क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहन देना भी आवश्यक है। दरअसल,
पारंपरिक ऊर्जा स्रोत जैसे कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जलाने से वायु प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा से स्वच्छ और हरित वातावरण बनता है। इसके उपयोग से न केवल पर्यावरण की रक्षा होती है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित और स्वस्थ जीवन भी मिलता है। इसलिए ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को अपनाना समय की आवश्यकता है। तीसरा, निर्माण कार्यों और धूल प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए निर्माण स्थलों पर जालियां लगाना और पानी का छिड़काव जरूरी है। चौथा, औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले धुएं और रासायनिक उत्सर्जन पर निगरानी रखी जाए और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर जुर्माना लगाया जाए। पाँचवां, हरे-भरे पेड़-पौधों का अधिकाधिक रोपण किया जाए, ताकि हवा में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ सके। साथ ही, दीवाली जैसे त्योहारों पर पटाखों की जगह ग्रीन पटाखों या वैकल्पिक उत्सवों को बढ़ावा देना चाहिए। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होते हैं। इनमें सल्फर और नाइट्रेट जैसे हानिकारक रसायनों की मात्रा बहुत कम होती है। ये कम धुआं और शोर उत्पन्न करते हैं, जिससे वायु और ध्वनि प्रदूषण घटता है। ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल किए गए रसायन जल्दी विघटित हो जाते हैं। इससे हवा में जहरीले कणों की मात्रा नहीं बढ़ती। इनसे बच्चों और बुजुर्गों को सांस संबंधी समस्याएं कम होती हैं। ग्रीन पटाखे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक पहल हैं। इसके साथ ही वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार को वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र को और मजबूत बनाना चाहिए तथा लोगों को जनजागरूकता अभियानों के माध्यम से प्रदूषण रोकने के उपायों के प्रति शिक्षित करना चाहिए। इसके अलावा, मेट्रो, साइकिल ट्रैक और कारपूलिंग को बढ़ावा देकर निजी वाहनों की संख्या घटाना, कचरा जलाने पर प्रतिबंध लगाना, और शहरों के आसपास हरित पट्टी विकसित करना भी जरूरी कदम हैं। हमें यह चाहिए कि हम प्रदूषण फैलाने वाली परंपराओं को भी हम त्यागें। यदि ये सभी उपाय ईमानदारी से लागू किए जाएं, तो दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत की हवा फिर से स्वच्छ और जीवनदायी बन सकती है।आखिरकार, स्वच्छ हवा में सांस लेना हर नागरिक का अधिकार और कर्तव्य दोनों है।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
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