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दीपावली : प्रकाश का पर्व और आत्मज्योति का उत्सव —  डा. रणजीत कुमार तिवारी

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दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धि-विनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।
दीपक की लौ को ईश्वर का स्वरूप माना गया है, जो अज्ञान और अधर्म के अंधकार को मिटाती है। जब हम दीप जलाते हैं, तो वह केवल बाहरी रोशनी नहीं देता, बल्कि हमारे भीतर के पाप, अंधकार और नकारात्मक विचारों को भी नष्ट करता है। दीपक मंगल, समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक है। उसकी ज्योति शुभ विचारों, निर्मल भावनाओं और सत्कर्मों की प्रेरणा देती है। दीप जलाने का अर्थ है अपने जीवन में सकारात्मकता, ज्ञान और दया का प्रकाश फैलाना तथा अज्ञान, रोग, द्वेष और अहंकार रूपी अंधकार को मिटाना। इन श्लोकों के माध्यम से हम यह स्वीकार करते हैं कि दीप केवल रोशनी नहीं देता, वह ईश्वर का रूप है, जो हमारे जीवन में शुभता, ज्ञान और कल्याण का प्रकाश फैलाता है।
भारत की सांस्कृतिक परंपरा में दीपावली सबसे सुंदर, पवित्र और जीवनमूल्य-संवर्धक पर्वों में से एक है। यह केवल दीप जलाने का अवसर नहीं, बल्कि अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान और असत्य से सत्य की ओर अग्रसर होने का प्रतीक है। दीपावली उस भारतीय परंपरा की दिव्य झलक है जिसमें बाहरी आलोक के साथ-साथ भीतर की ज्योति भी प्रज्वलित की जाती है।
दीपावली का असली अर्थ केवल घरों की सजावट और दीपों की चमक में नहीं, बल्कि उस आंतरिक जागरण में है, जो हमें अपने भीतर स्थित प्रकाश को पहचानने की प्रेरणा देता है। जब समस्त जग अंधकार में डूबा होता है, तब भारत का प्रत्येक घर, प्रत्येक हृदय दीपों से आलोकित हो उठता है यह घोषणा करता हुआ कि प्रकाश सदैव अंधकार पर विजय प्राप्त करता है। यही हमारी सनातन संस्कृति की आत्मा है, जो युगों से उद्घोष करती आ रही है , ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ – हे प्रभो! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
दीपावली का प्रकाश केवल घरों को ही नहीं, बल्कि हमारे विचारों, भावनाओं और कर्मों को भी आलोकित करता है। दीपक की छोटी-सी लौ हमें स्मरण कराती है कि जीवन का सार केवल अपने लिए जीने में नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी प्रकाश फैलाने में है। जैसे एक दीपक दूसरे दीपक को जलाकर अपना प्रकाश खोता नहीं, वैसे ही जब हम ज्ञान, प्रेम और करुणा का प्रसार करते हैं, तो संसार और अधिक प्रकाशित होता है।
दीपावली का यह संदेश युगों और सीमाओं से परे है। यह सिखाती है कि सच्ची दीपावली तब होती है जब हम अपने भीतर के अंधकार, अविद्या, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या और अहंकार को मिटाकर आत्मा की ज्योति को प्रज्वलित करते हैं। जब हृदय में शांति, ज्ञान और करुणा का आलोक जागता है, तभी जीवन में सच्ची दीपावली होती है।
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक उत्सव का कोई न कोई गूढ़ अर्थ निहित है। दीपावली भी केवल बाहरी उल्लास नहीं, बल्कि यह हमें अहंकार से आत्मा की ओर, भोग से योग की ओर, और संसार से संस्कार की ओर ले जाने वाला पर्व है। जिस प्रकार दीपक की लौ सदैव ऊपर उठती है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी उच्च आदर्शों, श्रेष्ठ कर्मों और निर्मल विचारों की दिशा में अग्रसर होना चाहिए।
दीपावली हमें यह बोध कराती है कि असली प्रकाश बाहर नहीं, भीतर है। जब हम अपने मन के दीप को जलाते हैं, तभी यह जगत सचमुच आलोकित होता है।
धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक महत्त्व – दीपावली का पर्व भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत बहुआयामी उत्सव है, जिसमें धर्म, समाज और आत्मा — तीनों के उजास का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल पूजा-पाठ या उत्सव का दिन नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक स्तर पर प्रकाश के पुनर्जागरण का प्रतीक है, धर्म में श्रद्धा का, समाज में सद्भाव का, और आत्मा में चेतना का।
धार्मिक रूप से दीपावली का संबंध अनेक पावन घटनाओं और अवतारी प्रसंगों से जुड़ा है।
सबसे प्रसिद्ध और भावस्पर्शी कथा भगवान श्रीराम की है, चौदह वर्ष के वनवास और रावण-वध के उपरांत जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे, तब सम्पूर्ण नगर दीपों से आलोकित कर दिया गया। वह केवल राजा का लौटना नहीं था, बल्कि धर्म, मर्यादा और आदर्श की पुनर्स्थापना का प्रतीक था। अयोध्या का प्रत्येक दीप यह सन्देश दे रहा था कि अधर्म कितना ही प्रबल क्यों न हो, अंततः धर्म ही विजयी होता है।
जैन धर्मावलम्बियों के लिए यह दिन विशेष रूप से पवित्र है, क्योंकि इसी तिथि को भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया, यह आत्मा की परम मुक्ति और पूर्ण प्रकाश की अवस्था का प्रतीक है। दीपावली के दीप जैन परंपरा में उस आत्मज्ञान की ज्योति का स्मरण कराते हैं, जो बंधनों को तोड़कर शुद्ध चेतना में प्रतिष्ठित करती है।
सिख परंपरा में यह दिन ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में पूजित है। इस दिन गुरु हरगोविन्द जी ने मुग़ल कारागार से स्वयं के साथ अनेक बंदियों को भी मुक्त कराया था। अतः यह दिवस केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानवता, करुणा और स्वतंत्रता के आदर्शों का उत्सव है।
आर्य समाज में दीपावली का दिन महर्षि दयानंद सरस्वती के समाधि-दिवस के रूप में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। वे ज्ञान और सत्य के दीप थे, जिन्होंने अंधविश्वास, रूढ़ि और अज्ञान के अंधकार को मिटाने का महान कार्य किया।
इस प्रकार दीपावली केवल एक धर्म या मत का पर्व नहीं, बल्कि सर्वधर्म-संवाद और समन्वय का प्रतीक है। यह दिखाती है कि प्रकाश का मूल तत्व सभी परंपराओं में समान है, चाहे वह राम के धर्म का दीप हो, महावीर के निर्वाण की ज्योति, गुरु हरगोविन्द की करुणा की लौ या दयानंद के सत्य की अग्नि। दीपावली उद्घोष करती है कि विविध मतों में छिपी ज्योति एक ही है – आत्मप्रकाश की ज्योति, जो सबको जोड़ती है, सबमें समरसता जगाती है, और सम्पूर्ण सृष्टि में वैश्विक आलोक का सृजन करती है।
आधुनिक संदर्भ में दीपावली
समय के साथ दीपावली का स्वरूप परिवर्तित हुआ है। जहाँ यह पहले आत्मिक आलोक, सादगी और पारिवारिक एकता का पर्व थी, वहीं आज यह अनेक स्थलों पर भौतिक आडंबर, उपभोग और प्रतिस्पर्धा का प्रतीक बनती जा रही है। यद्यपि यह परिवर्तन युग-प्रवृत्ति का परिणाम है, तथापि दीपावली का वास्तविक संदेश इससे कहीं अधिक गहन, संयमित और सुसंस्कृत है। यह हमें स्मरण कराती है कि विकास का मार्ग केवल बाह्य वैभव में नहीं, बल्कि अंतःशुद्धि, संयम और करुणा में निहित है।
पर्यावरणीय चेतना – जब पृथ्वी वायु, ध्वनि और धुएँ से कराह रही हो, तब दीपावली का पर्यावरणीय पक्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन जाता है। पटाखों का अत्यधिक उपयोग, रासायनिक रंगों और प्लास्टिक सजावटों का बढ़ता चलन न केवल प्रदूषण को बढ़ाता है, बल्कि पक्षियों, पशुओं और पर्यावरण के संतुलन के लिए भी संकट उत्पन्न करता है। सच्चा उत्सव वही है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करे, न कि उसे आहत करे। अतः हमें “हरित दीपावली” का संकल्प लेना चाहिए, मिट्टी के दीपक जलाकर, प्राकृतिक रंगों और पुष्पों से सजावट कर, तथा पौधारोपण जैसे कर्मों द्वारा इस पर्व को पृथ्वी-मित्र उत्सव बनाना चाहिए। दीपक का प्रकाश सिखाता है कि कम संसाधनों में भी महान उजाला फैलाया जा सकता है। एक छोटा-सा दीप भी गहन अंधकार को चुनौती देता है – यह सादगी, आत्मबल और आशा का प्रतीक है। यदि हम दीपावली में स्वच्छता, संयम और संवेदना को अपनाएँ, तो यह पर्व केवल घरों में नहीं, बल्कि धरती के प्रत्येक कोने में शांति और आनंद का आलोक फैला सकता है।
मानवता और सेवा का सन्देश – दीपावली का दूसरा व्यावहारिक सन्देश है, साझा खुशियों का उत्सव।
जब हम अपने सुख और संपन्नता का अंश दूसरों के साथ बाँटते हैं, तभी दीपावली का अर्थ पूर्ण होता है। किसी निर्धन के घर दीप जलाना, किसी असहाय को मिठाई देना, किसी वृद्धाश्रम या अनाथालय में सेवा करना, यही इस पर्व की सच्ची भावना है।
प्रकाश का अर्थ केवल स्वयं को आलोकित करना नहीं, बल्कि अन्यों के अंधकार को दूर करना है। दीपावली हमें याद दिलाती है कि मानवता ही सर्वोच्च धर्म है, और दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाना ही सबसे बड़ा पूजन है।
नवजागरण की प्रेरणा – दीपावली का प्रकाश केवल एक दिन का उत्सव न रहे, बल्कि हमारे जीवन का मार्गदर्शन बने – यही इसका सच्चा उद्देश्य है। हर दीप हमें स्मरण कराता है कि प्रत्येक अंधकार में आशा का दीपक जलाया जा सकता है। हमें अपने विचारों में सत्य का प्रकाश, कर्मों में सदाचार का तेज, और आचरण में सेवा का आलोक लाना है। दीपावली का अर्थ केवल दीप जलाना नहीं, बल्कि जीवन को प्रकाशित करना है। यह सिखाती है कि प्रकाश की शक्ति बाहर नहीं, हमारे भीतर है – वही आत्मज्योति जो सबको जोड़ती है, सबमें प्रेम का संचार करती है। अतः आइए, इस दीपावली पर हम सब यह संकल्प लें कि हम अपने हृदय में सत्य का दीप, अपने मन में शांति का दीप, और अपने जीवन में मानवता का दीप प्रज्वलित करेंगे। यही होगी सच्ची दीपावली जहाँ हर हृदय आलोकित हो, हर जीवन पुलकित हो,
और सम्पूर्ण जगत आत्मज्योति से प्रकाशित हो।

डा. रणजीत कुमार तिवारी

सहाचार्य एवं अध्यक्ष, सर्वदर्शन विभाग
कु.भा.व.सं. पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय

 

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