छात्र-जनता के विद्रोह के बाद बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन को लगभग छह महीने होने को आए हैं। 5 अगस्त दोपहर को, बिना अपनी पार्टी को पूरी तरह से बताए, पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत भाग गईं। नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनूस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद, अवामी लीग के शीर्ष नेताओं और पूर्व मंत्रियों के खिलाफ कड़ा अभियान शुरू हुआ। कई बड़े नेताओं को पुलिस ने रातों-रात गिरफ्तार कर लिया।
लेकिन बांग्लादेश की जनता के मन में सबसे बड़ा सवाल यह है कि कुछ गिने-चुने नेताओं की गिरफ्तारी के अलावा बाकी मंत्री, सांसद और आला अधिकारी आखिर गए कहां? सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद ही सीमाओं को सील कर दिया गया था, हवाई अड्डों पर कड़ी निगरानी थी। फिर भी इतने सारे पूर्व मंत्री, सांसद और अधिकारी अचानक गायब कैसे हो गए?
नेता लापता, सरकार के पास कोई जवाब नहीं
पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश के सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में यही सवाल घूम रहा है। अब तक जो नेता गिरफ्तार हुए हैं, उनमें दीपू मनी, अनिसुल हक, टिपु मुनशी, साधन चंद्र मजूमदार, शाहजहान खान, शम्सुल हक टुकु, असदुज्जामान नूर और जुनैद अहमद पलक शामिल हैं। इनके अलावा, शेख हसीना सरकार के कुछ प्रभावशाली सलाहकारों को भी हिरासत में लिया गया है।
हालांकि, अवामी लीग की शीर्ष समिति के 79 नेताओं में से सिर्फ सात को ही गिरफ्तार किया गया है। अधिकांश सांसदों और मंत्रियों का अब तक कोई अता-पता नहीं है। सरकार ने उनके खिलाफ हत्या, भ्रष्टाचार और लूटपाट जैसे मामलों में मुकदमे दर्ज कर दिए हैं, ताकि वे दोबारा राजनीति में सक्रिय न हो सकें। लेकिन सवाल वही है—अगर वे देश में हैं, तो अब तक सामने क्यों नहीं आए? और अगर वे देश से बाहर भाग गए, तो आखिर कैसे?
गुप्त सौदे और करोड़ों की रिश्वत देकर बच निकले नेता
बांग्लादेश की राजनीति और अवामी लीग के अंदरूनी सूत्रों से बातचीत के बाद जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। ‘बार्तालीपी’ ने एक पूर्व सांसद से विशेष बातचीत की, जो फिलहाल ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में छिपे हुए हैं। सुरक्षा कारणों से उन्होंने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर यह जानकारी साझा की।
उन्होंने बताया कि 5 अगस्त के बाद अवामी लीग के ज्यादातर शीर्ष नेता देश छोड़कर भाग गए थे—और यह भागने की सुविधा खुद बांग्लादेश की सेना के कुछ अधिकारियों ने दी थी, लेकिन भारी कीमत लेकर!
पूर्व सांसद ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि उन्होंने 7 अगस्त की रात अमीरात एयरलाइंस से बांग्लादेश छोड़ा। इससे पहले वे दो दिन तक ढाका के गुलशन इलाके में एक रिश्तेदार के घर में छिपे रहे। उनके उस रिश्तेदार के संपर्क में सेना के एक कर्नल स्तर के अधिकारी थे। लेकिन सिर्फ उसी की मदद से बच निकलना संभव नहीं था—इसके लिए और भी वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को ‘राजी’ करना पड़ा।
हवाई अड्डे की सुरक्षा व्यवस्था संभाल रहे एक शीर्ष सैन्य अधिकारी से संपर्क हुआ और अंततः सौदा हुआ—50,000 अमेरिकी डॉलर की रिश्वत देने के बाद ही ‘सुरक्षित निकासी’ (Safe Passage) मिलेगी।
सेना ने बनाया पैसे कमाने का जरिया
उस समय बांग्लादेश में अराजकता फैली हुई थी। कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी थी, बैंक बंद थे, और इतनी नकद रकम भी उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में उनके रिश्तेदार ने रिश्वत की रकम का इंतजाम किया। इसके बाद, 7 अगस्त की शाम को, सेना के एक कर्नल की गाड़ी में बैठकर, केवल एक बैग लेकर, वे हवाई अड्डे पहुंचे। वहां, वही सैन्य अधिकारी उन्हें इमिग्रेशन प्रक्रिया पूरी करवा कर सीधे डिपार्चर लाउंज तक ले गया।
अब तक वे सिडनी में छिपे हुए हैं।
यह तो सिर्फ उनकी कहानी है। लेकिन उन्होंने खुलासा किया कि उनके जैसे ही कई अन्य नेता और मंत्री भी इसी तरह सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की मदद से देश छोड़कर भागने में सफल हुए।
उन्होंने बताया कि 5 अगस्त को जब यह खबर फैली कि शेख हसीना देश छोड़ चुकी हैं, तो अवामी लीग के मंत्रियों और सांसदों को समझ में आ गया कि अब उनके पास भी बचने का एक ही रास्ता है—जल्द से जल्द देश छोड़ देना।
सीमा से भागने के लिए करोड़ों का सौदा
कई मंत्री और सांसद सीधे सेना मुख्यालय (ढाका कैंटोनमेंट) में शरण लेने पहुंचे। उनके साथ उनके परिवार के सदस्य भी थे। लेकिन कुछ लोग भागने की कोशिश में सड़कों पर ही पकड़े गए।
तब बांग्लादेश की पुलिस निष्क्रिय थी और सेना का नियंत्रण था। सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने इस स्थिति को पैसा कमाने के मौके के रूप में देखा। चूंकि अवामी लीग के कई नेताओं ने भ्रष्टाचार के जरिए हजारों करोड़ की संपत्ति इकट्ठा की थी, सेना के पास उनके वित्तीय रिकॉर्ड थे।
अब ‘डील’ हुई—नेताओं को देश छोड़ने में मदद मिलेगी, लेकिन इसके बदले उन्हें भारी रकम चुकानी होगी।
यह रकम 50 करोड़ से लेकर 200 करोड़ टका (बांग्लादेशी मुद्रा) तक थी। लेकिन यह रकम बांग्लादेश में नहीं, बल्कि मलेशिया, कतर और ब्रिटेन में सैन्य अधिकारियों के करीबी लोगों को हस्तांतरित की गई। जैसे ही यह भुगतान हुआ, नेताओं को सुरक्षित रास्ता मिल गया।
संपत्तियां भी गंवाईं, लेकिन जान बचाने के लिए मजबूर हुए नेता
कुछ नेताओं को सेना अधिकारियों के करीबी घरों में छिपने का मौका दिया गया, लेकिन ‘पे फॉर स्टे’ (Pay for Stay) की शर्त पर—जितने दिन रुके, उतना अधिक भुगतान किया। यह रकम भी डॉलर में ली गई।
इतना ही नहीं, कई नेताओं को अपनी प्राइम लोकेशन वाली संपत्तियां सेना अधिकारियों के रिश्तेदारों के नाम ट्रांसफर करने पर मजबूर किया गया।
पूर्व सांसद ने खुलासा किया कि 27 जनवरी को ही अवामी लीग के एक वरिष्ठ नेता ने इसी तरह सेना अधिकारियों को भारी रिश्वत देकर सिलहट के रास्ते अगरतला में प्रवेश किया, फिर कोलकाता से होते हुए सीधा टोरंटो चला गया।
सत्ता बदली, सेना मालामाल हो गई
छात्र-जनता के इस विद्रोह से किसे फायदा हुआ, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि बांग्लादेश की सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारी रातों-रात मालामाल हो गए। वहीं, शेख हसीना सरकार के उन भ्रष्ट नेताओं, जिन्होंने वर्षों तक देश को लूटा, उन्हें अपनी जान बचाने के लिए अपने सारे संसाधन गंवाने पड़े।
पूर्व सांसद की इस कबूलनामा से यह साफ हो गया कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में अवामी लीग के नेता और मंत्री अचानक कहां गायब हो गए।
(स्रोत: साभार बार्तालीपी, 29 जनवरी, 2025)





















