सूरज सदा समय से आता और समय से जाता है
चंदा सदा समय से आता और समय से जाता है
तारे सदा समय से आते और समय से जाते हैं
सारी दुनिया का चक्कर ये प्रतिदिन एक लगाते हैं
हैं कितने पाबंद समय के पल भर देर नहीं करते
ठीक समय से सोते हैं वे ठीक समय से हैं जगते
अगर समय की पाबंदी हम उनसे सीख कहीं जाएँ
तो फ़िर हम भी सूरज चाँद सितारों जैसे बन जाएँ
सीधे-सादे शब्दों में एक सुंदर-सार्थक बाल गीत के माध्यम से बच्चों को समय की पाबंदी का पाठ पढ़ाने वाले “बच्चों के गाँधी” के नाम से मशहूर हुए सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार डॉ. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की ऐसी तमाम कविताएँ पाठ्यक्रमों में दर्ज हैं जो आज भी हिंदुस्तान के करोड़ों बच्चों को नैतिकता, जीवटता, कर्मठता और भारतीयता के संस्कार प्रदान कर रही हैं।
1 दिसंबर, सन् 1916 को आगरा के रोहता में जन्म लेकर 29 अगस्त, सन् 1998 को आगरा में ही अंतिम साँस लेने वाले माहेश्वरी जी एक ऐसे साहित्य पथिक हैं जो सदा “सीधी राह चलते रहे”। शायद इस कारण ही यह संजोग बना कि वे आत्मकथा “सीधी राह चलता रहा” को पूर्ण करते ही मात्र दो घंटे के अंदर इस दुनिया को अलविदा कह गए।
आकर्षण तो बहुत तुम्हारा लेकिन मेरी भी मज़बूरी
कैसे पाट सकूंगा बोलो धरती आसमान की दूरी..
कभी किसी अन्य संदर्भ में इस गीत को रचने वाले माहेश्वरी जी अंतिम पड़ाव में अपनी ही सीमाओं के पार चले गए। ऋषि तुल्य गरिमा के साथ जो हमारी पीढ़ी को स्थानीय काव्य-गोष्ठियों में जी भरकर आशीष और स्नेह लुटाते थे, वह एक पल में हम सबके लिए आसमान के तारे हो गए।
शौर्य और पुरुषार्थ का दिया महामंत्र
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं
तुम निडर डटो वहीं
उपरोक्त कविता द्वारा हर परिस्थिति में अविचल होकर निरंतर आगे बढ़ते रहने का संदेश हो या निम्नलिखित पंक्तियों द्वारा शिक्षा के दीपक से पूरी दुनिया को चेतना-संपन्न करने की सीख हो.. युग कवि डॉ. कुमार विश्वास के अनुसार डॉ. माहेश्वरी ने अपने बाल गीतों द्वारा करोड़ों बच्चों को शौर्य और पुरुषार्थ का महामंत्र सहज ही दे दिया।
उठो धरा के अमर सपूतो पुन: नया निर्माण करो
जन-जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो
सरस्वती का पावन मंदिर यह संपत्ति तुम्हारी है
तुममें से हर बालक इसका रक्षक और पुजारी है
शत-शत दीपक जला ज्ञान के नवयुग का आह्वान करो
कविताओं ने किया घर-घर जन जागरण
इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव-वृष्टि से
जाति-भेद की, धर्म-वेश की
काले-गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है
बच्चों के गाँधी माहेश्वरी जी के बाल गीतों में प्रेम, अमन, भाईचारा, राष्ट्रीय एकता, सांप्रदायिक सौहार्द्र और वसुधैव कुटुंबकम जैसे उच्च कोटि के भाव पंक्ति पंक्ति भरे हुए थे। इन गीतों ने घर-घर जन जागरण किया। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग द्वारा होर्डिंग्स के माध्यम से इनके गीत ‘हम सब सुमन एक उपवन के’ का प्रचार किया गया।
बच्चों के गाँधी द्वारा लिखी गई ‘धरती हम सब की’ कविता के माध्यम से बच्चों को एकता का दिया गया यह संदेश कितना सरल और साफ है.. देखिए..
सूरज है हम सबका एक
चंदा है हम सबका एक
पानी है हम सबका एक
और पवन है सबकी एक
हैं दुनिया में लोग अनेक
लेकिन सबकी दुनिया एक
विरासत को सहेजने का भाव जगाया
डॉ. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी उत्तर प्रदेश के शिक्षा सचिव रहे। इस दौरान उन्होंने शिक्षा के व्यापक प्रसार और शिक्षा-स्तर के उन्नयन के लिए अनवरत प्रयास किया। इस क्रम में उन्होंने कई महत्वपूर्ण कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनाकर विरासत को सहेजने का अनुपम संदेश दिया। महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे महाकवि पर उन्होंने बड़े ही मनोयोग से एक वृत्त चित्र बनाया। उनके हृदय में बड़े-बुजुर्गों और दिवंगत महापुरुषों के प्रति सम्मान का भाव था और यही भाव वह अपने समकालीनों के साथ नई पीढ़ी में जगाते रहे।
शव के साथ-साथ तो चलने वाले लोग हजारों होंगे
किंतु अंत तक संग-साथ में चलने वाला एक न होगा
दुनिया की बस यही रीति है, प्रीति दिखावे की प्रतीति है
‘चला गया, आदमी भला था’, कहने की बन गई नीति है
अर्पित होंगी पुष्पांजलियाँ, लदीं विशेषण श्रृद्धांजलियाँ
मौन शोक प्रस्ताव पास करने को लोग हजारों होंगे
पर प्रस्ताव सजल नयनों से लिखने वाला एक न होगा
कितने बड़े दिखावे में पल रही आज मनु की यह पीढ़ी
कहने को तो चढ़ आई है वह विकास की ऊँची सीढ़ी
आज मुखौटी संस्कृति का युग, आज अश्रु, कल विस्मृति का युग
मेरे स्मारक के उद्घाटन पर तो लोग हजारों होंगे
फ़िर दीपक तक वहाँ जलाने वाला कोई एक न होगा
आगरा ने बच्चों के गाँधी की विरासत को सहेज कर दिया प्रत्युत्तर
विरासत को सहेजने का जो संदेश आदरणीय माहेश्वरी जी ने दिया, उसे उनसे बेहद प्यार करने वाले आगरावासियों ने आत्मसात किया। आलोक नगर स्थित उनके निवास क्षेत्र में जयपुर हाउस से प्रताप नगर तक के मार्ग को उनके नाम पर आगरा नगर निगम द्वारा डॉ. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी मार्ग घोषित कर मार्ग पर नाम पट्टिका लगाई गई, वहीं सुभाष पार्क तिराहे पर उनकी आदमकद प्रतिमा भी लगाई गई, जिसका अनावरण तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री द्वारा किया गया। आज भी मार्ग से गुजरते हुए जब उनकी नाम पट्टिका या प्रतिमा पर किसी की नज़र पड़ती है तो आगरा वासियों का मस्तक श्रद्धा और सम्मान से झुक जाता है।
जिनकी कविता सुबह की प्रार्थना बन गई
आओ! उन्हें नमन करें जिनकी कविताएँ रातों में लोरियाँ बन गईं। जब सुबह हुई तो प्रार्थनाएँ बन गईं। जिनके शब्दों ने बच्चों में जोश भर दिया। जिनके गीतों ने दुनिया में उजाला कर दिया।
जलाते चलो ये दिए स्नेह भर-भर
कभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा