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दर्बी चाय बागान में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जो बोम्बिंग हुवा था, उसमे अनेको जान-माल पालतू पशुओं का क्षति हुवा था। कई बम आज भी दर्बी चाय बागान के तालाब, और दल दल जमीन के अंदर निष्क्रिय अवस्था में है। हवाई जाहाज, उस बॉम्बिंग में हिस्सा लिया था। घूम घूम कर उस चाय बागान फैक्ट्री के हर तरफ बॉम्बिंग किया था। उन दिनों दर्बी सहित आस पास के गांवों में एक गाना अक्सर लोगो के मुख में सुनाई देता था, “धुकुर- पुकुर धुकुर- पुकुर करता मोरा जान, भूल चुक से मार दिया दर्बी बगान”।
अब सोचने की बात है, शब्द(भूल चुक,) गाने की उन दो शब्दो में कौन सा राज छिपा था, जिस का आज तक कोई लिखित प्रमाण मिला नहीं। राज को छिपाने के लिए दर्बी चाय बागान के बाहर जाने नहीं दिया गया, एक चाय बागान के अंदर इतना बड़ा बम कांड को क्यु छिपाने का कोशिश किया गया?
उस समय भारत में ब्रिटिश शासन था । सन १९४२ — १९४३ बीच के समय में , अचानक भारत के पूर्ब – उत्तर क्षेत्र में ब्रिटिश गोरे सिपाहियों का गतिविधि बढ़ने लगा। उसी समय शिलचर के बीच, NIT के पास फकीर टीला, असम विश्वविद्यालय के सामने के क्षेत्र, डाक बंगलो, बोड़जालंङा बर्तमान ब्लाक ऑफिस इलाकों में ब्रिटिश गोरे फौज हजारों के संख्या में जमा होने लगे। उन सिपाहियों में घोड़-सवार फौज जो बोड़जालंङा (वर्तमान ब्लॉक ऑफिस) में रहते थे, वहाँ घुड़दौड़ मैदान भी था। उनदिनों जब भारत में रह रहे ब्रिटिश सरकार को खूपिया बिभाग से पता चला “आजाद हिंद फौज” नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में पूरे मजबूती के साथ ब्रिटिश सरकार को खदेरकर स्वाधीन भारत के निर्माण के लिए बर्मा के ओर से भारत के मणिपुर राज्य में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। आजाद हिंद फौज” से मुकाबला इन इलाकों में ब्रिटिश फौजों का जमावड़ा पुर्बो-उत्तर में ब्रिटिश फौजी गतिबिधि का ही हिस्सा था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बड़े सैनिक मदद के लिए जर्मन चांसलर हिटलर और जापान के प्रधान मंत्री के पास गये थे।
जापानी एयर फोर्स दर्बी फैक्ट्री को ब्रिटिश सिनिको का अस्त्र भंडार, तेल डिपो(गोदाम) समझ कर बॉम्बिंग किए थे। वह बॉम्बिंग जापान सरकार द्वारा, ब्रिटिश फौजों को क्षति पहुंचा कर “आजाद हिंद फौज” को मदद करने का हिस्सा था। पर जापानी वायु-सेना का अनुमान गलत साबित हुवा, वह स्थान दर्बी चाय फैक्ट्री के अलावा और कुछ भी नहीं था। दर्बी चाय बागान में बॉम्बिंग से आस पास के लोग पालतू पशु भी आ गये, जिसका सही अनुमान लगाना कठिन है। श्रीमान लक्ष्मी प्रजापति का घर चाय फैक्ट्री के बगल में था जो वही आज् भी है, बम गिरने से उनका गाय जख्मी हुवा था, उन लोगो के पूजा घर में शिव लिंग का क्षति हुवा था। आज भी उसी शिवलिंग की पूजा करते है। उस बॉम्काण्ड के घायलों को स्वतंत्र भारत के सरकार ने आजीवन पेंशन दिया था। उनमे एक व्यक्ति का नाम था दुबा मुड़ा।
*** नरेश बारेठा, दुर्गा कोना, काछाड़