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धधक रहा है मणिपुर … बुझाए कौन   – राधा रमण 

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मणिपुर में हिसा की मौजूदा घटना कोई नया नहीं है। पिछले डेढ़ साल (566 दिन) से यह प्रदेश हिंसा की लपटों में धधक रहा है और केंद्र तथा राज्य की सरकार मौन ओढ़े हुए हैं। सरकारी आँकड़ों पर भरोसा करें तो छोटे से उस राज्य में हिंसा की घटनाओं में अबतक 220 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि हजारों लोग बेघर हो चुके हैं। कई महिलाओं की आबरू लूटी गई और हजारों करोड़ की संपत्ति आग के हवाले कर दी गई। बता देना जरूरी है कि मणिपुर में भाजपा की चुनी हुई सरकार है लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सरकार असहाय दिखाई देती है। आमलोगों की कौन कहे मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के सरकारी आवास और पैतृक घर पर दो बार हमला और आगजनी की घटनाएँ हो चुकी हैं। आबादी के लिहाज से देखें तो मणिपुर में मैतेई, कुकी और नगा का वर्चस्व है। राज्य में सर्वाधिक आबादी मैतेई समुदाय की है। उनकी संख्या लगभग 65 फीसदी है, जबकि कुकी और नगा मिलाकर कुल आबादी का 35 फीसदी हैं। समुदायों के बीच टकराव मणिपुर के लिए नया नहीं है। 90 के दशक में मणिपुर में कुकी और नगा समुदाय के बीच संघर्ष हुआ था। तब सैकड़ों लोगों की जान गई थी। बड़ी मुश्किल से तब हिंसा की आग बुझाई जा सकी थी।
धधक रहा मणिपुर, बुझाएं कौन?
धधक रहा मणिपुर, बुझाएं कौन?
वर्तमान में मैतेई और कुकी के बीच संघर्ष छिड़ा है। इसका कारण मैतेई समुदाय की आरक्षण की माँग है। मैतेई काफी दिनों से इसकी माँग कर रहे हैं। चूंकि मणिपुर की पहाड़ियों पर बसने वाले कुकी और नगा समुदाय के लोग अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल हैं और उन्हें इसका लाभ भी मिलता रहा है लेकिन मैतेई इस लाभ से वंचित हैं। यही वजह है कि मैतेई समुदाय के लोगों ने आरक्षण की माँग को तूल दिया। जबकि कुकी और नगा समुदाय के लोगों का कहना है कि मैतेई समुदाय के लोगों की पहले से विकास योजनाओं में अधिक भागीदारी रही है और उन्हें इसका लाभ मिलता रहा है। इसलिए उनके लिए अलग से आरक्षण की माँग बेमानी है। अगर मैतेई समुदाय को आरक्षण का लाभ मिला तो वे राज्य के संसाधनों के साथ-साथ सरकारी नौकरियों पर भी काबिज हो जाएँगे। ऐसे में कुकी समुदाय के लोगों के समक्ष भुखमरी की स्थिति हो जाएगी। इस विवाद ने तूल उस समय पकड़ लिया जब मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि वह मैतेई समुदाय को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे। इससे पहले कि राज्य सरकार केंद्र को मैतेई समुदाय को आरक्षण के दायरे में लाने का प्रस्ताव भेजती कुकी समुदाय के लोग सड़कों पर उतर गए। मैतेई समुदाय के लोगों ने जब इसका विरोध किया तो सड़कों पर हिंसा का रौरव तांडव शुरू हो गया।
धधक रहा मणिपुर, बुझाएं कौन?
धधक रहा मणिपुर, बुझाएं कौन?
इसके अलावा मणिपुर में हिंसा की दूसरी वजह का वह कानून है जिसमें कहा गया है कि मैतेई समुदाय के वह लोग जो घाटी में बसे हैं वह पहाड़ी इलाकों में न तो घर बना सकते हैं और न ही जमीन खरीद सकते हैं। इसके उलट कुकी और नगा समुदाय के लोग घाटी में जमीन खरीद सकते हैं और घर बनाकर बस भी सकते हैं। मैतेई समुदाय के लोग इसका पहले से विरोध करते रहे हैं। वह एक राज्य एक कानून के तहत पहाड़ियों पर जमीन की खरीद का अधिकार चाहते रहे हैं।
मणिपुर की उस जघन्य घटना से पूरा देश मर्माहत और शर्मसार है जिसे पिछले साल 4 मई को अंजाम दिया गया था। उस घटना में दो महिलाओं को कपड़े उतारकर सड़कों पर घुमाया गया, सरेआम पीटा गया और गैंगरेप किया गया था। हैरत की बात यह कि इंसानियत को शर्मसार करने वाले उस घटना के दरिंदों पर कार्रवाई करने, पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बजाय सरकारी मशीनरी ने उस घटना को ही छुपा लिया। जब दो महीने बाद उस घटना का वीडियो वायरल हुआ तब मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने यह कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया कि समाज में इस तरह की घटनाएँ होती रहती हैं। मामला तूल पकड़ा तो सुप्रीम कोर्ट ने इसका स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को चेतावनी दी कि मणिपुर मामले में ‘कुछ कीजिए, वरना हम करेंगे’।
धधक रहा मणिपुर, बुझाएं कौन?
धधक रहा मणिपुर, बुझाएं कौन?
तब से लेकर आजतक मणिपुर लगातार सुलगता रहा है। बीच-बीच में हिंसक झड़पों की रिपोर्ट आती रहती है। राज्य सरकार मूक दर्शक बनी हुई है। बल्कि यह कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि मणिपुर के हालात पर पर्दा डाला जाता रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने संसद के भीतर और बाहर कई दफा प्रधानमंत्री से मणिपुर मामले में हस्तक्षेप करने और वक्तव्य देने की माँग की। राहुल मणिपुर के शरणार्थी कैंप भी गए और उसमें रह रहे लोगों से बातचीत की लेकिन दुखद बात यह कि विपक्ष की लगातार माँग के बावजूद प्रधानमंत्री ने मणिपुर जाने की बात तो दूर, इस मामले पर अबतक मुँह नहीं खोला है।
मणिपुर में हिंसा की ताजा वारदात 11 नवंबर को सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में 10 बंदूकधारी उग्रवादियों के मारे जाने के बाद हुई। कुकी समुदाय ने मारे गए लोगों को विलेज गार्ड बताया और मुठभेड़ के जिम्मेदार सुरक्षाबलों पर कार्रवाई की माँग की। इसे संयोग कहें या प्रयोग कि उसी दिन जिरीबाम से दो महिलाओं समेत 6 लोगों का अपहरण कर लिया गया। अपहरण का आरोप कुकी उग्रवादियों पर लगाया गया। इसमें एक महिला जो तीन बच्चों की माँ थी, सामूहिक दरिंदगी कर उसके शरीर में कीलें ठोंक दी गई और उसके शरीर को आग के हवाले कर दिया गया। इंसानियत को शर्मसार कर देनेवाले इस घटना से डॉक्टर भी हैरान हैं। पोस्टमार्टम करनेवाले डॉक्टरों ने इसे वीभत्स और दिल दहलाने वाला कृत्य बताया। रिपोर्ट लिखे जाने तक सभी अपहृत लोगों के शव बरामद कर लिये गए हैं। स्थिति तनावपूर्ण है। केंद्र सरकार ने मणिपुर के पाँच जिलों इंफाल पूर्व और पश्चिम, थोबल, विष्णुपुर और काकचिंग में अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया है और सात जिलों में इंटरनेट सेवाएँ अस्थाई रूप से स्थगित कर दिया है।
मणिपुर में हिंसा से हरकत में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह महाराष्ट्र का अपना चुनावी दौरा छोड़कर दिल्ली पहुँचे। केंद्र सरकार ने छह थाना क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) लागूकर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए तथा शांति बहाली के लिए सुरक्षाबलों को पूरी छूट दे दिया है। साथ ही मामले की जाँच के लिए एनआईए को सौंप दिया है। साथ ही सुरक्षाबलों की 50 अतिरिक्त कंपनियां भेजी है। इस बीच दोनों समुदाय के लोग सड़कों पर उतर गए हैं। कुकी समुदाय के लोगों ने जहाँ मारे गए कथित उग्रवादियों का शव सौंपने के लिए पोस्टमार्टम हाउस पर जोरदार प्रदर्शन किया जबकि मैतेई समुदाय के लोग राज्य के छह विधायकों और तीन मंत्रियों के घरों में तोड़फोड़ की तथा आग लगाने का प्रयास किया जिसे सुरक्षाबलों ने लाठीचार्ज कर और आँसू गैस के गोले छोड़कर नाकाम किया। फिर भी मुख्यमंत्री के दामाद और भाजपा विधायक का घर फूंक दिया गया।
इस बीच, भाजपा के 19 विधायकों ने प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्री को पत्र भेजकर राज्य की एन बीरेन सिंह सरकार को बदलने की माँग की है। माँग करनेवालों में मणिपुर विधानसभा के अध्यक्ष सत्यव्रत भी शामिल हैं। उधर, सरकार में शामिल रहे नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने एन बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। विधानसभा में एनपीपी के 7 विधायक हैं। हालाँकि विधानसभा में भाजपा को अकेले दम पर बहुमत हासिल है। इसके अलावा उसे छह और विधायकों का समर्थन हासिल है। इसलिए फिलहाल सरकार पर अस्थिरता का संकट नहीं है।
उधर, मणिपुर सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भेजकर राज्य से अफस्पा हटाने की माँग की है। देखना जरूरी होगा कि मणिपुर पर केंद्र सरकार आगे क्या कदम उठाती है। फिलहाल तो मणिपुर धधक रहा है और प्रधानमंत्री नाइजीरिया का सर्वोच्च पुरस्कार ग्रहण कर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

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