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धम्मपद्द यमकवग्गो~पंचम सूत्र -पंचम अंक—– आनंद शास्त्री

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सम्माननीय मित्रों ! नित्यसत्यचित्त बुद्धमुक्त पदऽस्थित तथागत महात्मा बुद्ध द्वारा उपदेशित-“धम्मपद्द” के भावानुवाद अंतर्गत स्वकृत बाल प्रबोधिनी में यमकवग्गो के पंचम पद्द का पुष्पानुवाद भगवान श्रीतथागत के श्री चरणों में निवेदित कर रहा हूँ—
“नहि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन चसम्मन्ति एस धम्मो सनातनो।।५।।”
और इसे संस्कृत में कहते हैं कि–
नहि वैरेण वैराणि शाम्यन्तीह कदाचन।
अवैरेण च शाम्यन्ति धर्म एष सनातन:।।5।।
भगवान अजातशत्रु जी कहते हैं कि–
“नहि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं”
कदाचित् जो भी प्राणी मुझे अपना शत्रु मानते हैं !
जो निरंतर मुझसे किसी न किसी कारणवशात् प्रतिशोध लेने हेतु व्यग्र रहते हैं !
और मैं भी उनके किये अपकार की ही चिंता में व्यग्र रहता हूँ !
आग लगने पर उसे बुझाने हेतु घृत नहीं डाला करते !
उससे तो आग और भी भड़कती है !
अभी कल की बात मैं आपको बताता हूँ!!
इन्होंने दाल छौंकने हेतु कलछुल में घी रख कर गैस पर चढा दी !
और कलछुली के घी में आग लग-गयी ! ये घबड़ा गयीं !
तभी अचानक”मैं”आ गया ! और मैने तत्काल कलछुली के ऊपर एक छोटी सी प्लेट रख दी ! और आग शांत हो गयी ! ये आश्चर्य चकित होगयीं ! मेराआशय है कि-जब कभी भी मुझको अपने किसी अपकारी के अपकार की स्मृति हो जाती हो ! और तब मैं यह सोच पाता कि मेरे द्वारा कभी किन्ही जन्मों में ! कभी किसी पल में अवस्य ही उनका कुछ न कुछ “अपराध”किया होगा ! और उसने जो उसका”प्रत्यूत्तर”मुझे दिया ! मैं उसी के योग्य था ! यह मेरे अपकार का ही प्रतिशोध है।
अब चलो ! मैं आग लगी हुयी अपघात कारी वृत्तिओं पर सद्विचार रूपी ढक्कन डाल देता हूँ ! और अपने विचारों को शाँत करने का प्रयास करता हूँ ! मैं यह कहना चाहता हूँ कि-और तदंन्तर मैं इसके बदले उनका कुछ भी मेरे से”मनसा-वाचा-कर्मणा” जो भी “अपकार”के बदले में”उपकार”कर सकूँ !
मेरे द्वारा उनपर किये गये प्रहारों से हुवे घावों पर शीतल लेप लगा सकूँ ! मैं मानता हूँ कि मैंने उन्हे पहले घाव दिये होंगे !
और हो सकता है कि उन्होंने भी मुझे चोट पहुँचायी होगी ! चलो अब मैं ही पहेल करता हूँ ! उनके अशांत चित्त के कारण उनके अंतःकरण से प्रस्फुटित् श्रापों को ! घावों को ! एक मधुर-“स्मित्” के द्वारा चुपचाप सुन लेता हूँ।
अहो ! अद्भुत ! परमानंद की प्राप्ति हो जायेगी ! यह जन्मों-जन्म से चली आ रही वैमनस्ता की ज्वाला भी शाँत हो जायेगी ! हो सकता है,यह भी संभव है कि पुनः मुझे उसके बदले अपकार की ही प्राप्ति हो ! किंतु यदि आप गीतादि सच्छास्त्रों के पुनर्जन्मादि कर्मों के सिद्धांत को मानते हो ! तो यह भी तो है कि मैंने जितनी बार उसका अपकार किया होगा ! वह उतनी ही बार मुझसे प्रति शोध लेंगे !
और मैं प्रत्यूत्तर में जितनी बार उनका उपकार करूँगा ! मेरे कर्म-बंधन निःसन्देह क्षिण होते जायेंगे ! यही”अकृतिम् सत्य सनातन धर्म है” हाँ प्रिय मित्रों ! यही सनातन धर्म है ! बौद्ध तथा सनातन संस्कृति ये दोनों ही अनादि काल से विभिन्न नामों से प्रचलित एक ही संकृति के दो पक्ष हैं ! एक दूसरे के शत्रु नहीं पूरक हैं !
हिन्दू शब्द का अपभ्रंश-“हिब्रू”है ये पूरी दुनिया स्वीकार करती है ! आज मुझे धम्मपद्द के इसी पद्द से हमारे अपने पूर्वज एवं डा•भीमराव अम्बेडकर जी की कुछेक बातें शूल की तरह चुभती हैं कि-“सनातन धर्म अर्थात हिन्दू वैदिकीय धर्म-“असहिष्णु एवं भेदवादी” है ! उन्हें हिन्दु धर्म में अपना जन्म होने पर क्षोभ है ! वे
हिन्दू धर्म में रहते हुवे मरना नहीं चाहते थे ! अतः उन्होंने कहा कि  मैं बौद्ध धर्म स्वीकार कर रहा हूँ “और यहाँ स्वयं महात्मा बुद्ध कहते हैं कि-“एष धर्मो सनातनः” अर्थात अम्बेडकर जी स्वयं ही दिग्भ्रमित थे। अर्थात जो स्वयं दिग्भ्रमित हो उसके सहयोग से निर्मित संविधान के प्रति वे पूर्णतया सहमत थे भी अथवा नहीं ?
मित्रों ! तमिलनाडु के द्रविड़ मुनेत्र कडगम के प्रसिद्ध नेता- “करुणानिधि” जी के पुत्र एम•के•स्तालिन •जो कि वहाँ के वर्तमान  मुख्यमंत्री हैं ! उन्होंने एवं उनके  पुत्र उदय निधि स्तालिन ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा ! बार-बार कहा कि वे सनातन धर्म को मिटा देना चाहते हैं ! अर्थात जिस संविधान की सौगन्ध लेकर वे और उनके पिता मुख्यमंत्री बने उस संविधान का वो क्या करेंगे ? क्या उसे भी जला देंगे ? मैंने देखा है कि आज भी दक्षिण एवं पूर्वी भारत में,यहाँ के उन निवासियों में हिन्दी हिन्दू और हिन्दुस्थान के प्रति गहरी घृणा व्याप्त है जो निःसंदेह मुस्लिम और मिशनरियों द्वारा भरी गयी।
ये आश्चर्यजनक है कि जिस -“मगध” अर्थात मगधी संस्कृति जिसका बौद्ध संस्कृति से आविर्भाव हुवा ! उसी मगधी अर्थात बांग्ला संस्कृति के लोगों में भी उसी बौद्ध धर्म के प्रति किंकर्तव्यविमूढ़ सी भावना है जिसने उनकी कभी रक्षा की थी ! ये सनातनी परम्परा के वे टूटे छूटे टुकड़े हैं जिनमें भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था तो है किन्तु विश्वास कितना है इसका उन्हें आत्मविश्लेषण करने की आवश्यकता है..-“आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्क सूत्रांक 6901375971”

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