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अप्रैल का महीना था। वसंत ऋतु में उस दिन साहिल की नींद कोयल की मीठी कूक से खुल गई थी। आंखों को मलते हुए साहिल खिड़की के पास पहुंचा तो उसने देखा कि घर के बाहर खड़े आम के पेड़ के पत्तों के झुरमुट में छिपकर कोयल अपने सुमधुर स्वर में अब भी कुहू-कुहू गा रही थी। साहिल ने जैसे मन ही मन मुस्कुराते हुए उससे सुप्रभात किया और फिर बाथरूम में घुस गया। जब वह बाथरूम से बाहर आया तो उसने देखा कि उसकी मम्मी कादंबरी ने ब्रेकफास्ट तैयार कर दिया था और साहिल के पापा ईशान और उसकी बहन एमिलिया डायनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। साहिल के डायनिंग टेबल पर पहुंचते ही उसकी मम्मी कादंबरी भी चाय लेकर नाश्ते के लिए वहां पहुंच गई थी और सभी मिलकर नाश्ता करने लगे। तभी अचानक साहिल को कुछ याद आया और साहिल अपने पापा ईशान से कहने लगा-‘ पापा ! परसों संडे को आपकी और मम्मी की ‘मैरिज एनिवर्सरी’ है। बहुत ही खुशी का दिन है। हम होटल पैराडाइज में डिनर करने चल रहे हैं न ! पापा याद कीजिए आपने हमसे होटल में डिनर का वादा किया था। रोज़-ऱोज घर का खाना खा- खाकर मैं और एमिलिया दोनों बोर हो चुके हैं। स्कूल में भी हमारे टिफिन में और बच्चों के टिफिन की तरह नूडल्स, स्प्रिंग रोल्स, पीनट बटर, चिकन और सैंडविच, ओपन फेस्ड पिज्जा बर्गर आदि नहीं होते। रोज-रोज आलू -प्याज के पराठों, ब्रेड-बटर और मैगी- पोहा से अब हमारा जी भर आया है पापा।’ प्रतिउत्तर में ईशान ने साहिल से कहा- जरूर बेटा ! क्यों नहीं। परसों बहुत ही खुशी का दिन है, तुम्हारी मम्मी और मेरी शादी की सिल्वर जुबली है। बेटा ! हम सभी उस दिन खूब एंजॉय करेंगे और डिनर के बाद हम सभी मल्टीप्लेक्स में मूवी देखने भी जाएंगे। मैंने और तेरी मम्मी ने तुम दोनों से होटल पैराडाइज में डिनर करने और मूवी दिखाने का वादा जो किया है, हम उसे जरूर पूरा करेंगे बेटा।’ तभी कादंबरी नाश्ता करते-करते अचानक बाप-बेटे के बीच हो रहे संवाद में कूद पड़ी और कहने लगी -‘ चलो अभी जल्दी-जल्दी तुम दोनों नाश्ता करो, तुम्हें अभी स्कूल भी जाना है। संडे को हम होटल पैराडाइज जाएंगे और जरूर जाएंगे। मूवी भी एंजॉय करेंगे बेटा।’ मम्मी-पापा की बातें सुनकर साहिल और एमिलिया दोनों के चेहरों पर मुस्कुराहट दौड़ गई और नाश्ता करके वे दोनों स्कूल के लिए निकल गये। दो दिन बाद संडे का दिन आ गया था और शाम का वक्त हो चला था। ईशान अभी दफ्तर से वापस नहीं लौटा था। कादंबरी, एमिलिया और साहिल ईशान के दफ्तर से लौटने का इंतजार कर रहे थे। तभी अचानक दरवाजे पर किसी ने ‘डोर बैल’ बजाई। यह ईशान ही था। कादंबरी ने ईशान को मुंह-हाथ धोकर फ्रेश होने के बाद गर्मागर्म कॉफ़ी सर्व की और कॉफ़ी पीने के बाद थोड़ा रिलेक्स होकर ईशान अपने परिवार के साथ होटल पैराडाइज के लिए निकल पड़ा। लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद सभी होटल पैराडाइज में थे। जब ईशान और कादंबरी अपने बच्चों के साथ होटल पैराडाइज में पहुंचे तो वहां होटल में लगभग टेबलें खाली ही थीं। एक नया कपल जरूर एक बीयर की बोतल और कुछेक स्नेक्स के साथ वहां बैठा हुआ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि नया कपल बहुत ही कंजूस था और खाने-पीने के लिए उस कपल ने बहुत सीमित खाना ही उन्होंने अपने लिए मंगवा रखा था। ईशान ने होटल के एक अन्य कोने की तरफ अपनी नजरें दौड़ाई। होटल के उस कोने में एक टेबल पर ज्यादा चहल-पहल नहीं थी, वहां भरा-पूरा एक परिवार जिसमें बच्चों समेत आठ-दस सदस्य रहें होंगे, तथा जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक थी, डिनर एंजोय कर रहे थे। वेटर बारी-बारी से सभी को उनकी प्लेट्स में जितना वे चाह रहे थे उतनी मात्रा में डिनर परोस रहा था और बच्चों समेत परिवार का हरेक सदस्य अपनी प्लेट्स में परोसे गए भोजन का एक-एक कण/दाना खत्म कर रहे थे। ईशान ने देखा कि भोजन करने के बाद उन सभी की प्लेट्स पूरी तरह से खाली थी। अन्न का एक भी कण/दाना उनकी प्लेट्स में नजर नहीं आ रहा था। ईशान के साथ कादंबरी,उनके दोनों बच्चों ने भी यह सब देखा। हालांकि परिवार में महिलाओं की संख्या ज्यादा थी लेकिन उस परिवार के एक पुरूष सदस्य ने डिनर खत्म करने के बाद, छोटे बच्चों को छोड़कर सभी के लिए कॉफ़ी का आर्डर दिया और अब वे कॉफ़ी पीने इंतजार कर रहे थे। होटल का वेटर अभी तक कॉफ़ी नहीं आया था, इसलिए वे सभी डायनिंग टेबल पर जमे थे। इसी बीच ईशान ने वेटर को बुलाकर बहुत सारे डिनर आइटम्स का आर्डर दिया। थोड़ी देर बाद बहुत-सा खाना अब उनकी टेबल पर था। उन्होंने पूरे आनंद से खाने का लुत्फ उठाया और होटल का बिल चुकाकर मूवी देखने के लिए निकलने लगे। लेकिन इसी बीच जब ईशान व उसका परिवार होटल से निकलने ही वाला था, होटल के उस कोने में ईशान और उसके परिवार के पास ही की टेबल पर बैठा परिवार, जिसमें महिलाओं की संख्या ज्यादा थी, ईशान और उसके परिवार को डिनर लेते देख रहा था, बुजुर्ग महिलाओं ने देखा कि ईशान के परिवार के डिनर लेने के बाद भी लगभग एक तिहाई खाना उनकी प्लेट्स में अब भी व्यर्थ पड़ा हुआ था। उस परिवार की महिलाओं को यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, शायद वो ईशान फैमिली द्वारा प्लेट्स में छोड़े गए बहुत से खाने से काफी नाराज़ थी। उस परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला ने ईशान से कहा-‘जब आप इतना अधिक खाना कंज्यूम ही नहीं सकते थे, तो आपको इतना खाना यूं ही अपनी प्लेट्स में छोड़ने का कोई अधिकार नहीं है। यह अन्न की सरासर बर्बादी और बेइज्जती है।’ ईशान और कादंबरी उस बुजुर्ग महिला की ऐसी बातें सुनकर एकबारगी तो सकपका से गये लेकिन कुछ पल सोचने के बाद
ईशान ने उस बुजुर्ग महिला को इस संदर्भ में जबाब दिया -‘ आपको इससे कोई मतलब ? हम खाना खाएं या खाने को प्लेट्स में छोड़ें । हमने खाने का पूरा बिल होटल मालिक को चुका दिया है और इतना ही नहीं मैंने वेटर को भी अच्छी खासी टिप दी है।’ बुजुर्ग महिला ईशान की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी और उसने बहुत ही गुस्से से ईशान और उसके परिवार की ओर देखा और कुछ देर सोच-विचार के बाद उसने अपने पर्स से अपना एंड्रॉयड फोन निकाला और किसी को फोन किया। कुछ देर बाद सामाजिक सुरक्षा संगठन का एक अधिकारी और उसके साथ उसके कुछ सहकर्मी यूनिफॉर्म में वहां पहुंचे और पूरा मामला अच्छी तरह से समझने के बाद अधिकारी ने ईशान और उसके परिवार पर प्लेट्स में खाना छोड़ने की एवज में पांच हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया।
ईशान व कादंबरी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वे एकदम चुप थे। सामाजिक सुरक्षा संगठन का वह अधिकारी ईशान और कादंबरी से गुस्से में तेज आवाज में बात कर रहा था और उसने ईशान को कहा -‘ कृपया उतना ही खाने का आर्डर करें,जितने की आपको जरूरत है। पैसा आपका है, लेकिन संसाधनों पर हक पूरे समाज का है। दुनिया में आज बहुत से लोग हैं, जो संसाधनों की कमी का लगातार सामना कर रहे हैं। आपके पास संसाधनों को इस तरह से बर्बाद करने के पीछे कोई भी कारण नहीं है। क्या आप इस बात से वाकिफ हैं कि किसान की सालभर जी-तोड़ मेहनत के बाद कितनी मुश्किल से अन्न का दाना हम सबकी प्लेट्स में पहुंचता है ? अन्न का अपमान करके आप देश के किसान, भोजन को परोसने वाले का अपमान तो कर ही रहें हैं, आपको संसाधनों की सीमितता का भी जऱा-सा भी भान नहीं है। क्या आप जानते हैं कि दुनिया में भुखमरी की स्थिति कितनी गंभीर है ? ऐसे भी लोग इस दुनिया में हैं, जिन्हें दो जून की रोटी तक भी नसीब नहीं होती है और ऐसे लोग आप जैसे लोगों की वजह से ऱोज अपने पेट के गांठ बांधकर सोते हैं। अन्न की बर्बादी से हमारे पर्यावरण पर भी बहुत असर पड़ता है। आपको थोड़ी-बहुत शर्म आनी चाहिए। आप अन्न को बर्बाद कर रहे हैं।’ ईशान और उसका परिवार अधिकारी की बात सुनकर बहुत ही लज्जित और शर्मिंदा था। ईशान को आज अधिकारी की बातों से एक नई सीख मिली थी और उन्होंने यह निर्णय लिया कि भविष्य में वे अन्न का कण-कण बचायेंगे और किसी भी हाल और सूरत में अन्न को बर्बाद नहीं होने देंगे। ईशान ने फाइन चुकाया और बिना मूवी देखें ही अपने परिवार समेत अपने घर की ओर प्रस्थान कर दिया। ईशान व उसके परिवार की आंखों में अब भी शर्म और लज्जा साफ झलक रही थी और शायद ईशान मन ही मन यह विचार कर रहा था कि ‘अन्न ब्रह्म है।’
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
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