पांच गांवों के लोगों की ओर से नदी के कटाव की वजह से अपनी जमीनों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए सरकार से बार-बार गुहार लगाई गई। सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया तो ग्रामीणों ने खुद ही कमर कस ली। उन्होंने नदी के पानी को अपनी जमीनों पर आने से रोकने के लिए खुद ही पत्थरों से पुश्ता (छोटा बांध) बना डाला। बता दें कि असम के बक्सा जिले के तमुलपुर रेवेन्यू सर्किल के तहत आने वाले गुआबाड़ी क्षेत्र के पांच गांव के लोगों को पिछले कई वर्षों से बोरनोदी नदी के कटाव से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ये क्षेत्र बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) में आता है और भारत-भूटान सीमा के नजदीक है।
क्षेत्र में 2,000 से ज्यादा लोगों को नदी के कटाव से अपनी फसल वाली सैकड़ों बीघा जमीन को खोना पड़ा है। भूटान से आने वाली बोरनोदी नदी के कटाव से हर साल कृषि भूमि का नुकसान होता है। इसी वजह से क्षेत्र से कई परिवार रोजगार की तलाश में दूसरे स्थानों को पलायन कर गए। ग्रामीणों ने इस गंभीर मुद्दे की ओर राज्य सरकार और बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल का कई बार ध्यान खींचने की कोशिश की। लेकिन अधिकारियों की ओर से उनकी कोई सुनवाई नहीं की गई।
सरकार की ओर से निराश होने के बाद ग्रामीणों ने खुद ही अपने पैसे और मेहनत से नदी पर पुश्ता खड़ा करने का फैसला किया। गुआबाड़ी क्षेत्र के एक ग्रामीण ने बताया कि नदी के कटाव की समस्या को वर्ष 2001 से स्थानीय लोग झेल रहे हैं। इस दौरान नदी ने हर साल कई बीघा जमीन को कटाव से लील लिया। ग्रामीण ने कहा कि असम के जल संसाधन मंत्री को खुद मौके पर आकर मुआयना करना चाहिए। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस समस्या की वजह से कई लोग बेघर हो गए क्योंकि नदी ने उनकी जमीन को उनसे छीन लिया।
असम सरकार के मुताबिक राज्य के कई जिलों में नदियों की ओर से भूमि कटाव की दिक्कत है। इस वजह से हर साल करीब 8,000 हेक्टेयर जमीन को खोना पड़ता है। अकेले ब्रह्मपुत्र नदी ही करीब 4,000 वर्ग किलोमीटर जमीन को साफ कर चुकी है। जितनी जमीन का नुकसान हुआ है, वो क्षेत्रफल में गोवा राज्य से भी ज्यादा है। ये असम के पूरे क्षेत्र का करीब 7.5 फीसदी बैठता है।