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नार्थ ईस्ट संस्था, दिल्ली ने मनाया लाचित दिवस  

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नई पीढ़ी को महावीर लाचित की कालजयी विरासत से परिचित होना चाहिए: शंकर दास कलिता
नई दिल्ली, 24 नवंबर: देशभक्ति और वीरता की अमर गाथा को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से, नार्थ ईस्ट संस्था, दिल्ली ने आज हरियाणा भवन में लाचित दिवस का आयोजन किया। यह कार्यक्रम महावीर लाचित बोरफुकन की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया, जिसमें सभी से उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने का आह्वान किया गया।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) असम क्षेत्र के बौद्धिक प्रमुख शंकर दास कलिता, भटिंडा केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर किरण हजारिका, आरएसएस असम क्षेत्र के प्रचार प्रमुख डॉ. सुनील महंती सहित दिल्ली में रहने वाले पूर्वोत्तर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और लाचित के चित्र पर माल्यार्पण से हुई, जिसके बाद लाचित की वीरता को जन-जन तक पहुंचाने के महत्व पर भाषण दिए गए।
मुख्य वक्ता शंकर दास कलिता ने लाचित की वीरता और साहस को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्हें केवल असम तक सीमित रखना अनुचित है। उन्होंने कहा,”आज शिवाजी के बारे में हर कोई जानता है, लेकिन लाचित बोरफुकन के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इसका मुख्य कारण कुछ इतिहासकारों की जानबूझकर उपेक्षा और कुछ लोगों की लाचित की विरासत को केवल असम तक सीमित रखने की प्रवृत्ति है। इसे बदलने का समय आ गया है, और इस दिशा में काफी प्रगति हुई है। भविष्य की पीढ़ियों को लाचित की अद्वितीय क्षमताओं को जानना अत्यंत आवश्यक है।”
कलिता ने असम सरकार द्वारा पिछले वर्ष दिल्ली में लाचित दिवस मनाने का जिक्र करते हुए इसे एक सराहनीय पहल बताया, लेकिन इस प्रयास की व्यापक आलोचना का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि पाठ्यक्रम से मुगलों के कुछ अध्याय हटाए जाने के बाद कुछ समूहों ने लाचित के अस्तित्व पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। उन्होंने कहा कि “मुगल नहीं होते तो लाचित भी नहीं होते” जैसी टिप्पणियां लाचित जैसे महान योद्धा की स्वर्णिम गाथा को सीमाओं में बांधने का प्रयास करती हैं। इस बाधा को दूर करने के लिए सही जानकारी का प्रचार और सोच के दायरे को विस्तारित करना आवश्यक है।
कलिता ने यह भी कहा कि लाचित बोरफुकन एक दिन में महान योद्धा नहीं बने। उन्होंने जोर देकर कहा कि नई पीढ़ी को लाचित के अनुशासन और दृढ़ संकल्प का अध्ययन और अनुकरण करना चाहिए। उन्होंने लाचित की यात्रा का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने एक छोटे सैन्य कमांडर से बोरफुकन (सेना प्रमुख) का पद कैसे हासिल किया, और इसके लिए जिन कठोर परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना पड़ा, उनमें उनके अनुशासन और उत्कृष्टता की गहराई छिपी है।
लाचित की अडिग बहादुरी और अद्वितीय युद्ध कौशल के कारण न केवल मुगलों को हराया गया, बल्कि पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया की रक्षा भी सुनिश्चित हुई।

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