विकास के साथ विनाश भी जुङा हुआ इसलिए जितना हम दोहन करेंगे उतना ही विनाश अवश्यंभावी है.प्रकृति के साथ हमने खिलवाड़ किया तो उसका परिणाम हमें भूगतना पङा.विकास की रूपरेखा बनाते समय हमें ध्यान रखना होगा कि इसके बाद क्या क्या हो सकता है. लेकिन जीवन की आपाधापी एवं लकीर के फकीर बन कर हम इतने एडवांस बनना चाहते हैं कि अपने अस्तित्व को भी दाव पर लगा देते हैं. आजकल एक ही बच्चा होता है अधिकतम दो.उनके लालन पालन शिक्षा दीक्षा में हम अपना जीवन कारोबार संपत्ति जमाधन सब कुछ दांव पर लगा देते हैं लेकिन संतान का सुख नहीं पा सकते.सच कहा जाए तो बच्चों को भी मांबाप परिवार का सुख नहीं मिलता.नंबर वन बनाने के चक्कर में दो साल के बच्चे को ही स्कूल में भर्ती करवा देते हैं. मंहगे होस्टल में भर्ती करवाने से सिर्फ साल में ही अनुबंधित अभिभावक मिल सकते हैं. धीरे धीरे दूरियाँ बढती जाती है तथा विदेश भेजने के बाद तो अव्वल अधिकारी को मांबाप परिवार तो क्या भारत आना भी अच्छा नहीं लगता.
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- Admin
- April 20, 2021
- 9:28 am
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निज भाषा संस्कृति से युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए धार्मिक अनुष्ठान अति आवश्यक
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