नेताजी सुभाष चंद्र बोस: आज़ादी के लिए संघर्ष का प्रतीक
– दिलीप कुमार
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें हम सभी प्यार से ‘नेताजी’ कहते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। बचपन से ही उनकी बुद्धिमत्ता और देशभक्ति के किस्से प्रसिद्ध थे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी शिक्षा कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन अंग्रेजों के लिए काम करना उन्हें स्वीकार नहीं था। उन्होंने नौकरी छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निर्णय लिया।
कांग्रेस से अलग राह
सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और गांधीजी के नेतृत्व में काम किया। लेकिन उनके क्रांतिकारी विचार और तेज़ी से स्वतंत्रता प्राप्त करने की चाह उन्हें गांधीजी की अहिंसा नीति से अलग कर देती थी। 1939 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीता, लेकिन गांधीजी के समर्थन के बिना, उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी।
आज़ाद हिंद फौज और योगदान
सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिए सशस्त्र क्रांति आवश्यक है। उन्होंने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया और ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। उनका उद्देश्य भारतीयों को प्रेरित करना और ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था। उनकी फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ कई अभियानों में भाग लिया और भारतीयों में स्वतंत्रता का नया उत्साह जगाया।
“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा”
नेताजी का यह नारा हर भारतीय के दिल में जोश भर देता था। उनका नेतृत्व और आत्मविश्वास आज भी प्रेरणा का स्रोत है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता भीख में नहीं मिलती, उसे छीनना पड़ता है।
रहस्यमयी मृत्यु
18 अगस्त 1945 को नेताजी का विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। लेकिन उनकी मृत्यु को लेकर आज भी कई रहस्य बने हुए हैं। कई लोग मानते हैं कि वे विमान दुर्घटना में नहीं मरे, बल्कि गुप्त रूप से जीवित रहे।
नेताजी की विरासत
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि अपने देश के लिए समर्पण और दृढ़ संकल्प से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
नेताजी का बलिदान और योगदान भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनके विचार और कर्म सदैव हमें प्रेरित करते रहेंगे। भारत माता के इस वीर सपूत को हम शत,-शत नमन करते हैं।
जय हिंद!