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गुवाहाटी। समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित करने वाली श्रीमती संजू पारीक का सोमवार को दिसपुर हॉस्पिटल, गुवाहाटी में हृदय गति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया। उनके निधन की खबर से विद्या भारती परिवार, शिक्षाजगत और सामाजिक संगठनों में शोक की लहर दौड़ गई। उनका पार्थिव शरीर विमान द्वारा राजस्थान ले जाया गया, जहां उनकी ससुराल अजीतपुरा (राजस्थान) में पूर्ण विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार संपन्न हुआ।
संजू पारीक का जीवन सेवा, समर्पण और सामाजिक उत्थान का एक उत्कृष्ट उदाहरण रहा है। विवाहोपरांत उन्होंने अपने पति श्री राहुल पारीक (विद्या भारती के पूर्णकालिक कार्यकर्ता) के साथ मिलकर पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि दुर्गम ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में भी जाकर शिक्षा और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विगत कई वर्षों से वे डिमा हसाओ जिले के उमरांगसो स्थित सरस्वती विद्या मंदिर के वीर शम्भूधन फुंगलो छात्रावास में अधीक्षक के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही थीं। यहाँ रहकर वे जनजातीय छात्र-छात्राओं को आत्मनिर्भर और शिक्षित बनाने के लिए सतत प्रयासरत थीं। वे बच्चों के लिए एक शिक्षिका, अभिभावक और मार्गदर्शिका के रूप में कार्य कर रही थीं।
जनजातीय समाज के प्रति विशेष लगाव :
पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय समाज से उनका विशेष जुड़ाव था। उन्होंने ग्रामीण और वंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा हेतु सतत प्रयास किए। वे न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि समाज सुधार, महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक जागरूकता के क्षेत्र में भी सक्रिय थीं। उनकी सहजता और मृदुभाषी स्वभाव के कारण स्थानीय समाज में उन्हें विशेष आदर प्राप्त था।
संजू पारीक जी ने अपने तीन बेटियों की परवरिश के साथ-साथ संगठन और समाज के कार्यों में भी निरंतर योगदान दिया। उनके लिए समाज सेवा सिर्फ एक कार्य नहीं, बल्कि एक साधना थी। उन्होंने अपने परिवार और सामाजिक कार्यों के बीच अद्भुत संतुलन स्थापित किया।
उनके असामयिक निधन से न केवल उनका परिवार, बल्कि पूरा विद्या भारती परिवार, पूर्वोत्तर भारत का शिक्षाजगत और सामाजिक संगठन शोकाकुल है। उनका योगदान और सेवाभाविता सदैव याद रखी जाएगी।