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प‌इसा अ‌इसन नाच नचवलस।  घर दुआर सब कुछ छोड़वलस।। 

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प‌इसा अ‌इसन नाच नचवलस।
घर दुआर सब कुछ छोड़वलस।।
नौकरी के जब से चिंता भ‌इल।
गाँव के पुश्तैनी घर पीछे छूट ग‌इल।।
पीछे छुटल पुश्तैनी वास।
शहर में भ‌इल नया निवास।।
माटी, ईंटा, खपड़ा नरिया से।
लरही, धरन, बांस कोरो से।
पुरखा लोग घर बनवले रहे।
आफत वात ओ जाड़ा गरमी।
खुशी खुशी सब लोग ओही में सहे।।
प‌इसा खातिर से घर छुट ग‌इल।
खेती भी क‌इल अब दुलम भ‌इल।।
आपन लोग ओ गाँव छुट ग‌इल।
प‌इसा खातिर जिला जवार छुट ग‌इल।।
घर घर के जवनकन के,
अ‌इसन बुरा हाल भ‌इल।
औरत बुढ़ा के देखेवाला,
घर में केहू ना रह ग‌इल।।
दोष ना एह में केकरो बाटे,
अइसन हवा बह ग‌इल।
प‌इसा बिना काम ना चली,
अइसन जुग के रीति भ‌इल।।
मान घटल बाकी सब कुछ के,
खाली प‌इसा के मान बढ़ ग‌इल।
हाय प‌इसा, हाय प‌इसा करे में,
सब रिश्ता नाता छुट ग‌इल।।
जवना प‌इसा खातिर सब कुछ छुटल,
उ प‌इसा भी एक दिन छुट जाई।
जहिया उपर जाए के परी,
ओह दिन प‌इसा नीचे ही रह जाई।।
जवना दिन शहर आ प‌इसा के,
भरम मन से टूट जाई।
बबुआ हो ओह दिन तोहरा,
 गाँवें परी फिर से दिखाई।।
सब कर गाँव ओकरा के,
सब घरी दिल से पुकारत बा।
बाकिर अब कम सपूत लोग बा,
जे गाँव का तरफ नजर मारत बा।।
– जय प्रकाश कुवंर

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