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गावों की संस्कृति से रुबरु कराते हुए मुझे दूर बैठे अपने ग्राम के दर्शन करने एवं स्वयं की उपस्थिति समझकर साहित्य की लकीर से हटकर ऐसे शब्दों का प्रयोग भी आप सबके लिए इसलिए कर रहा हूँ कि आप सभी को आनंद मिले भले ही संकोची पाठक प्रतिक्रिया ना दे।
जब हम बङे बङे कवि सम्मेलन करते थे तो मुझे ही संचालन सौंपा जाता था बाहर से आये विद्वान अक्सर पुछते इसका आसय क्या है तो मुझे मजा आता कि…खैर।
जब पंचायत में फैसला करने के लिए पंचों एवं दोनों पक्षों को आमंत्रित किया तो काफी भीड़ थी क्योंकि मामला एक विधवा बेटी गाँव की बहिन को थप्पड़ मारने का था। पतलू आकर धरती पर, सीर पर हाथ रखकर पश्चाताप कर रहा था तथा इंतजार कर रहा था कि क्या दंड मिलेगा वैसे वो घर में कह कर आया था कि समान बांधकर रखो शायद गाँव छोङने का फैसला आ जाए। सीर पर पल्लू लिए हरिया जब पंचायत में आयी तो सरपंच मालाराम ने हाथ जोड़कर बोला कि बिटिया तुम पर थप्पड़ मारकर पतलू ने गाँव एवं पंचायत के मूंह पर तमाचा मारा है जो तुम कहोगी वो ही सजा हम इसको देंगे। तरह के दंड देने के प्रस्ताव रखे गए लेकिन हरिया मिट्टी में लकीर खेंचकर कहती मुझे मंजुर नहीं। सब हैरान एवं परेशान थे कि ऐसे में क्या किया जाए तो अचानक पतलू खङा होकर सीधा हरिया के पास जाकर बोला हरिया बाई यह ले मेरी जुती मार मुझे लेकिन हरिया फिर बोली मंजुर नहीं तो पतलू बोला हरिया बाई ( बहिन) एक बात बता जब जीजाजी मरे तो तू कैसे मान गयी??
सब कांप गए पंचायत में सन्नाटा छा गया किसी अप्रिय घटना की आशंका से दोनों तरफ लाठियां हाथों में संभालने लगे तो हरिया बाई ( बहिन) खङी होकर कहा कि हालांकि पतलू ने बहुत बङा अपराध किया है लेकिन इससे भंयकर तो मेरे भाग्य में हुआ तब मैं कुछ भी नहीं कर सकी ना ही आप सब। पतलू मेरा भाई है अनपढ़ हैं लेकिन मेरी आँख खोल दी। रो रो कर पतलू के चिपट कर कहा कि मेरी पढीलिखी जीद्द के आगे तेरी तकरीर मुझे हरा दिया। दोनों बहन भाई रो रहे थे कि मालाराम ने ताली बजाकर पंचायत समाप्ति की घोषणा की।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653