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पराली जलाने वाले किसानों की पैरवी न करना मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसियेशन का निर्णय असवैंधानिक- भारतीय किसान संघ

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देश को आंदोलन में झोंक अस्थिर करने का कदम
प्रेरणा प्रतिवेदन नई दिल्ली, 20 नवंबर: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसियेशन के द्वारा लिया गया यह निर्णय कि मध्यप्रदेश में पराली जलाने वाले किसानों पर दर्ज मुकदमों की पैरवी मध्यप्रदेश के कोई भी वकील नहीं करेगें। इस निर्णय कि जानकारी मीडिया से प्राप्त होने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुये देश के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने कहा कि  मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसियेशन का यह निर्णय अत्यंत दुखद, एक पक्षीय व निंदनीय है। भारतीय किसान संघ हाईकोर्ट बार ऐसोसियेसन के इस एक तरफा निर्णय की निंदा करता है। श्री मिश्र ने कहा कि भारत की सवैंधानिक न्याय व्यवस्था में देश के खिलाफ अनैतिक गतिविधियों में लिप्त आतंकवादियों को भी न्याय पाने का अधिकार है, साथ ही आतंकवादियों के मुकदमों को लड़ने के लिये भी वकील उपलब्ध कराये जाने की संवैधानिक व्यवस्था है। लेकिन देश का अन्नदाता जिसका कोई दोष नहीं है फिर भी उसे दोषी ठहराकर न्यायिक व्यवस्था से न्याय पाने के अधिकार से वंचित किया जाना किसान के मौलिक अधिकारों का हनन है। श्री मिश्र ने कहा कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसियेशन की कार्यकारिणी का निर्णय असंवेदनशील मानवीयता का रवैया प्रदर्षित करता है। यदि देश के किसानों से इतना ही विरोध है कि उसे न्याय भी न मिले तो उसका पैदा किया अनाज खाना छोड़ दीजिये। श्री मिश्र ने कहा कि कहीं न कहीं यह निर्णय देश के किसानों को प्रताड़ित करने व विवादग्रत स्थिति पैदा कर देश के किसानों को आंदोलन की ओर झौंककर अन्न उत्पादन को प्रभावित कर देश को अस्थिर करने की दिशा में उठाया कदम है।
थर्मल पावर प्लांट से हो रहा सबसे ज्यादा प्रदूषण
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख राघवेंद्र सिंह पटैल ने बताया कि देश में औद्योगिक प्रदूषण 51 प्रतिशत, ब्हीकल से 27 प्रतिशत व फसल अवशेष से 17 प्रतिशत और अन्य स्रोत से 5 प्रतिशत है। इसके साथ ही सेंटर फार रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की रिपोर्ट के अनुसार थर्मलपावर प्लांट पराली जलाने के मुकाबले 16 गुना अधिक प्रदूषण फैलाते है। CREA की स्टडी के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में थर्मल पावर प्लांट 89 लाख टन पराली जलाने से निकलने वाले 17.8 किलोटन प्रदूषण के मुकाबले 16 गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। स्टडी में कहा गया है कि जून 2022 और मई 2023 के बीच एनसीआर में कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांटों ने 281 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ा। बता दें कि भारत फिलहाल में दुनिया का सबसे बड़ा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जक है। यह वैश्विक मानवजनित सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के 20 प्रतिशत से ज्यादा के लिए जिम्मेदार है। ऐसा मुख्य रूप से इसके कोयला-निर्भर ऊर्जा क्षेत्र के कारण है।
पराली जलाने पर जुर्माना, लेकिन थर्मल प्लांट पर पाबंदी नहीं
 CREA की स्टडी में आगे कहा गया है कि पराली जलाने से मौसमी उछाल आता है, थर्मल पावर प्लांट साल भर प्रदूषण का एक बड़ा स्थायी स्रोत हैं। यह थर्मल पावर प्लांट उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण की जरूरत पर जोर देता है। लेकिन थर्मल पावर प्लांटों को अक्सर नियमों से ढील मिलती है। जबकि पराली जलाने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है।
पराली के निस्तारण की व्यवस्था, सलाह व साधन देना सरकार का काम
भारतीय किसान संघ का कहना कि पिछले 50 वर्षों से फसल अवशेष जलाने के लिये कृषि विष्वविद्यालय व कृषि विभागों ने प्रचार प्रसार करते हुये बताया था कि फसल अवशेष को जलाना जरूरी है, क्योंकि फसल अवशेष में कीट व खरपतवार के बीज छिपे होते हैं और अगली फसलों को नुकसान करते हैं। इसीलिये धूप में खेती करना, गहरी जुताई करना, फसल अवशेष जलाना जरूरी है। यदि इन कार्योे में कोई भी परिवर्तन होता है तो किसानों को प्रषिक्षित करना, संसाधन व उसके निस्तारण के लिये यंत्रों की व्यवस्था करना देश के कृषि विष्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और देश की सरकारों की जिम्मेदारी थी। इसके लिये किसान को दोषी ठहराना पूर्णतः गलत है।
राघवेन्द्र सिंह पटेल
अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, भारतीय किसान संघ
9425357127

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