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महाराज दशरथ के तीन रानियां होने के बावजूद कोई संतान नहीं थी। पुत्रेष्टि यज्ञ द्वारा चार पुत्र वृद्ध अवस्था मे हुए लेकिन विधि विधान द्वारा सभी कार्यक्रम आयोजित किया गया लेकिन पुर्व निर्धारित अनुष्ठान के अनुसार सारा परिवार बिखर गया। पुत्र वियोग मे दशरथ भी परलोक गमन कर गए। अस्त व्यस्त परिवार के बावजूद भी जो त्याग भाईयों एवं उनकी माताओं तथा बहूओं मे देखा गया।
कितना प्रेम सिद्धांत नैतिकता इमानदारी एक दूसरे के प्रति सदभाव देखना चाहिए। अयोध्या के घोषित राजा होने के विपरीत भरत ने बङे भाई के लिए राजा की गद्दी खाली रखते हुए सन्यासी का जीवन व्यतीत किया।
लक्ष्मण के त्याग तथा उनकी पत्नी उर्मिला का त्याग वंदनीय रहा। लंका विजय के बाद राम ने लंका हथियाने की जगह विभिषण को राज्य सौंप दिया। राम का अभिषेक किया। चारों भाईयों ने बहू विवाह नहीं किया। इस प्रकार के रामायण आधारित परिवार आज टूट रहे हैं इसलिए ना तो शांति है ना ही संपन्नता। भाईयों की संपत्ति अधिकार लूट कर अपने ही भाई सङक पर लाकर तमाशा करते हैं लेकिन कितने दिन कितने वर्ष आखिरी तो पछताना ही पङता है। उनकी संतान साथ छोड़ देती है।
राम ने सिलसिलेवार पिशाचरों को खत्म किया जो साधुसन्तो को बेवजह आशुरी शक्तियों के बहकावे मे आकर तंग करते थे। उनका विनाश किया गया।
मर्यादा संयम आदि अनेक चिजों को हम जानते हुए भी तिलांजलि देकर अनैतिकता के सहारे वो हासिल करने मे लगे हैं जो क्षणिक है। ईश्वर मंगल करें
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653





















