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भारत-बांग्लादेश सीमा पर मवेशियों की तस्करी दशकों से चल रही है। सीमावर्ती राज्यों में से एक होने के नाते असम, इस अवैध तस्करी रैकेट का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। ध्यान फाउंडेशन (डी एफ) और बी एस एफ, पश्चिम बंगाल के संयुक्त प्रयासों से बंगाल में पशु माफियाओं के संचालन को बंद करने के कारण, पिछले दो वर्षों में इस राज्य में पशु तस्करी की गतिविधियाँ बढ़ गई है।
असम में भी बंगाल जैसा ही परिणाम प्राप्त करने के उद्देश्य से, एन जी ओ ने असम- बी एस एफ द्वारा बचाए गए मवेशियों के पुनर्वास के लिए,‘ध्यान फाउंडेशन गोलपारा गौशाला’ की स्थापना की। संस्था ने बिना किसी बाहरी सहयोग के, व्यक्तिगत फंड से सारा खर्च वहन करते हुए गौशाला की आवश्यक व्यवस्था स्थापित करने में, मवेशियों को बॉर्डर से गौशाला तक पहुँचाने तथा उनके पालन पोषण में कई करोड़ खर्च किए हैं।वास्तव में तो, बचाए गए मवेशियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, डी एफ द्वारा राज्य में तीन और गौशालाओं की स्थापना की गयी। इस कार्यवाही से असम में करोड़ों का काला धन अर्जित करने वाले पशु माफिया के अवैध व्यापार को गहरा झटका लगा है। जिसने उसकी कमर तोड़ कर रख दी है। इस काले धन का उपयोग आतंकवाद को फंड करने के लिए होता है। वास्तव में, असम सरकार अब राज्य में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की ओर भी अग्रसर है।
स्पष्ट है, कि माफिया नाराज़ है और इस नेक कार्य को रोकने की पूरी कोशिश कर रहा है। डी एफ के स्वयंसेवकों को इस माफिया से अनगिनत धमकियां मिली हैं और अक्सर हमला भी किया जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ कुछ भ्रष्ट कार्यालयों के माध्यम से उन पर दबाव बनाने का प्रयास भी किया गया है। किन्तु जब कहीं कोई बात नहीं बनी, तो माफिया के टुकड़ों पर पलने वाले कुछ भ्रष्ट पत्रकारों के माध्यम से माफिया ने संस्था की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए और मवेशियों को बचाने में लगे हुए स्वयंसेवकों के अथक प्रयासों को विफल करने के लिए बदनाम करना शुरू कर दिया।
गुवाहाटी से प्रकाशित एक असमिया दैनिक में 4 जून को लिखे गए एक लेख के …’ के संदर्भ में, यहाँ कुछ बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है –
1. *भ्रष्टाचार* – हम यह बताना चाहेंगे कि यह हमारा पैसा है,जिसे हम बचाई गई गायों और बैलों के कल्याण पर खर्च कर रहे हैं। इतने करोड़ खर्च हो चुके हैं। गायों को मीट माफिया से बचाने के इस आचरण में ऐसा क्या ‘भ्रष्ट’ है?
2. *वन भूमि में दफनाना* – हमने मासिक किराया देकर जमीन लीज पर ली है, यहीं पर हम मरे हुए मवेशियों को दफनाते हैं।
3. *4000 मौतें* – 4000 तो कुल गोवंश की संख्या है जो अब तक हमें असम बी एस एफ द्वारा दिए गए हैं, जो सभी बीमार, दुर्बल, बूढ़े, प्लास्टिक से भरे हुए और अत्यधिक अस्वस्थ थे।इस समय हमारी गोशालाओं में अभी भी 2500 से अधिक गौवंश हैं। यह तो तब है जब पिछले साल राज्य में भयंकर तूफ़ान आया था, जिसमें बहुत से लोगों की जान भी चली गई थी। हमारी गौशालाओं में भी पानी भर गया था और उस समय मवेशियों की मृत्यु दर भी बहुत अधिक थी।ऐसे समय में तथाकथित भ्रष्ट पत्रकार, माफिया की गतिविधियों को उजागर करने की बजाय हमारी गौशाला में अवैध रूप से घुसकर वीडियो बनाने में व्यस्त था। एजेंडा बहुत साफ है। ये वे तस्वीरें हैं, जिनका इस्तेमाल हमें बदनाम करने के लिए किया जा रहा है।
4. *खाद्य घपला* – हम दोहराना चाहेंगे, यह हमारा अपना धन है और हमारा अपना चारा है। इन गौवंश को खिलाने के लिए हमने करीब 5 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और इस मुश्किल समय में भी दूर पंजाब से सिलेज मंगवाया है। हमारे रिकॉर्ड की जांच की जा सकती है।
5. एक अन्य भ्रष्ट चैनल ने कुछ झूठे गवाहों को खड़ा किया और हम पर उपरोक्त झूठे आरोप लगाए और साथ में यह भी जोड़ दिया – कि हमें बीमा राशि मिल रही है, इसलिए गायों को मार रहे हैं। इन पढ़े-लिखे पत्रकारों को इतनी भी जानकारी नहीं है कि कोई भी बीमा कंपनी, गायों का बीमा नहीं करती है। हमें बदनाम करने की हड़बड़ी में उन्होंने अपने नापाक इरादों और माफिया से अपनी मिलीभगत का स्वयं ही पर्दाफाश कर दिया है।
हमारे भी कुछ प्रश्न हैं जिनका हम उत्तर चाहते हैं –
1. इन वीडियो और तस्वीरों को देखें (लिंक्स)। जब हम इन बूचड़खानों को बंद कर रहे थे, तब मिस्टर लेखक क्या कर रहे थे? उन्हें अपने ही राज्य में गायों – बैलों के खुले वध के बारे में कोई जानकारी नहीं है।क्या वह इतने अयोग्य या अक्षम हैं कि उन्हें पता ही नहीं है? यह भ्रष्टाचार और घपला है।
2. 50,000 से भी अधिक मवेशी, मवेशी पाउंड को दिए गए हैं, जो मूल रूप से माफिया गोडाउन थे, और जहाँ से आवश्यकतानुसार वध के लिए मवेशियों को उठाया जाता था ।आज उन बाड़ों में एक भी मवेशी नहीं बचा है। मिस्टर लेखक ने इसे कभी कवर क्यों नहीं किया?
3. क्या कारण है कि जब भी भारी बरसात और बाढ़ की स्थिति होती है, तो यह लोग कैमरा लेकर हमारी गौशालाओं में पहुँच जाते हैं ?
आइए हम आपको तेजपुर के देवीसिंह घाट का एक वीडियो देते हैं जहां खुलेआम मवेशियों का खून ब्रह्मपुत्र नदी में बह रहा है। लेकिन श्रीमान लेखक उसके प्रति बहरे, गूंगे और अंधे लगते हैं।
*असम मीडिया के सभी पत्रकारों से *हमारी अपील* है कि भ्रष्ट ‘ब्लैक शीप’ को बेनकाब कर बाहर फेंके जो असम के पत्रकारों का नाम बदनाम कर रहे हैं और साथ ही ऋषि मारीचि की इस भूमि से गौ माफिया को जड़ से ख़त्म करने में हमारी मदद करें एवं यहाँ की संस्कृति को पुनर्जीवित करें।
ध्यान फाउंडेशन की प्रवक्ता करीमा खान ने उपरोक्त जानकारी एक प्रेस विज्ञप्ति में प्रदान की।