पाकिस्तान मोहम्मद अली जिन्ना की ‘टू नेशन थ्योरी’ के आधार पर बना। जिन्ना का यह मानना था कि हिंदू और मुस्लिम एक साथ नहीं रह सकते। दोनों आवश्यक रूप से दो अलग राष्ट्र हैं। इसलिए इन्हें दो देश के तौर पर अलग होना चाहिए, लेकिन उनकी यह मानवता विरोधी थ्योरी 1971 में ही खंड-खंड हो गई, जब पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषी लोगों ने अलग देश का निर्माण क्यों किया? ये बांग्ला भाषा के आधार पर बंगाली हैं, लेकिन पंथ के आधार पर मुस्लिम हैं। मुस्लिम होने के बावजूद उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी और भारत की मदद से पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के रूप में अपने लिए एक नया राष्ट्र बनाया। इस लड़ाई में लगभग 30 लाख लोग मारे गए, लाखों हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के साथ पाकिस्तानी सेना ने दुष्कर्म किया। इसे 20वीं शताब्दी के एक बड़े नरसंहार के रूप में जाना जाता है।
पाकिस्तान में करीब 98 प्रतिशत मुस्लिम हैं, लेकिन अधिकांश पंजाबी मुस्लिमों के प्रभुत्व और दमन के शिकार रहते हैं और पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं, जैसे बलूच, पख्तून और सिंधी। पाकिस्तानी पंजाब के सुन्नी मुस्लिम पूरे देश पर अपना शासन परोक्ष रूप से कायम किए हुए हैं, चाहे वह सेना हो, राजनीति हो, ब्यूरोक्रेसी हो या व्यापार और मीडिया, हर क्षेत्र में पंजाब के लोगों का प्रभुत्व है। देश के दूसरे मुस्लिमों को वे दोयम दर्जे का अथवा कमतर पाकिस्तानी समझते हैं।
बलूचों की लड़ाई हम सबको पता है। वे भी मुस्लिम हैं, लेकिन वे एक अलग देश की मांग कर रहे हैं। बलूचों का दमन आजादी के बाद से ही पाकिस्तानी सेना करती रही है। 2006 से अभी तक लगभग 15,000 बलूचों की हत्या पाकिस्तान सेना कर चुकी है। किसी भी बलूच युवा को विद्रोही मानकर सेना उसके हाथ-पैर तोड़कर गटर में डाल देती है और बाद में उसे गुमशुदा घोषित कर देती है। मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान बनने से पहले बलूचों के वकील थे।
वह अलग बलूचिस्तान की वकालत भी करते थे, पर पाकिस्तान बनने के बाद उन्होंने कहा कि अब बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा होगा और उन्होंने सेना भेजकर इस इलाके पर कब्जा कर लिया। बलूचों ने इसे कभी दिल से स्वीकार नहीं किया। वे अलग देश की अपनी मांग पर आज भी अड़े हैं। बलूचिस्तान का भौगोलिक महत्व बहुत ही ज्यादा है। उसकी लगभग 700 किमी सीमा अरब सागर से लगती है। अफगानिस्तान और ईरान से भी उसकी सीमा सटी हुई है। अगर बलूचिस्तान अलग हो जाए तो पाकिस्तान और ईरान की सीमा समाप्त हो जाएगी।
बलूचिस्तान पूरे पाकिस्तान के क्षेत्रफल का लगभग 40-42 प्रतिशत है, लेकिन उसकी आबादी पाकिस्तान की महज पांच प्रतिशत है। पूरे पाकिस्तान के 80 प्रतिशत प्राकृतिक संसाधन बलूचिस्तान में है। पेट्रोल, सोना, तांबा आदि इसमें शामिल हैं, लेकिन बलूचिस्तानियों के साथ कितना भेदभाव पाकिस्तानी पंजाबी हुक्मरान करते हैं, इसका प्रमाण यह है कि बलूचिस्तान पूरे पाकिस्तान को गैस सप्लाई करता है, पर वहां आज भी हर घर में रसोई गैस उपलब्ध नहीं है।
पश्तून या पख्तून भी मुसलमान हैं, लेकिन वे भी लंबे समय से पाकिस्तान से अलग होकर पश्तूनिस्तान की मांग कर रहे हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी मूलतः पश्तूनों का संगठन है। तालिबान भी मूलतः पश्तूनों का संगठन है। इसीलिए दोनों एक-दूसरे के प्रति हमदर्दी रखते हैं। शिया समुदाय भी भेदभाव का शिकार है। वे पाकिस्तान में लगभग 20 प्रतिशत हैं। वे पढ़े-लिखे, समृद्ध और राजनीति में भी ठीक-ठाक हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख शिया हैं। इसके बावजूद शिया मुसलमानों का दमन पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के समय से जारी है।
आज तक 50,000 से ज्यादा शिया मुसलमानों की हत्या हो चुकी है। पंजाब के सुन्नी मुसलमानों के तमाम संगठन शियाओं को मुस्लिम नहीं मानते। वे उन्हें काफिर कहते हैं और गैर-मुस्लिम घोषित करने की मांग करते रहते हैं। अहमदिया मुसलमानों को 1974 में ही गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया था। 1947 के पहले वे अलग पाकिस्तान की बढ़-चढ़कर वकालत करते थे। पाकिस्तान में एक और छोटा मुस्लिम समुदाय सरायकी है। यह दक्षिण पंजाब में रहता है। वे सरायकी बोलते हैं। जैसलमेर के सामने जो पाकिस्तान है, वह सरायकी लैंड है। सरायकी अपने लिए सरायकीस्तान की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि पाकिस्तानी पंजाबियों ने उनका शोषण किया है।
पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी करीब 38 लाख ही बची है। 30-40 लाख ईसाई हैं और थोड़े से सिख। इन जैसे अल्पसंख्यकों को तो वहां गुजारा करना कठिन हो रहा है। उन्हें तमाम तरह की प्रताड़ना झेलनी पड़ती हैं। अल्पसंख्यक महिलाओं के खिलाफ प्रताड़ना का स्तर बहुत ही ज्यादा है। इसी कारण मानवाधिकारों के लिहाज से पाकिस्तान का रिकार्ड बहुत खराब है। वह अपने ही लोगों के मानवाधिकारों का बड़े स्तर पर हनन करता है। वह अपने ही देश के तमाम नागरिकों को उनके वैध अधिकार नहीं दे रहा है।





















