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पाठकों के पत्र, सरकार की दोहरी नीति 

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1. प्लास्टिक के थैले पर प्रतिबंध: कितनी बार बैन हुआ है, मुझे भी याद नहीं। हर बार नया नियम, पर कोई ठोस बदलाव नहीं।
2. दारू के विज्ञापन: दारू सेहत के लिए हानिकारक है, ये कह कर करोड़ों का विज्ञापन घोटाला होता है। क्या ये सच में रोकने के लिए है या सिर्फ पैसे बनाने के लिए?
3. गुटखे पर प्रतिबंध: गुटखा कितनी बार बैन हुआ, इसका कोई हिसाब नहीं। पर हर बार वो फिर से बाजार में वापस आ जाता है।
4. हेलमेट और चालान: बिना हेलमेट के चलने पर ₹1000 का चालान काट दिया जाएगा, लेकिन सरकार ₹800 का हेलमेट उपलब्ध नहीं कराती। क्या चालान कटने के बाद एक्सीडेंट का खतरा कम हो जाता है?
5. प्रदूषण नियंत्रण: प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपये सरकार को दिए जाते हैं, लेकिन उस पैसे से प्रदूषण कैसे नियंत्रित होता है, इसका कोई ठोस जवाब आज तक नहीं मिला।
6. धार्मिक विवाद: चाहे हिंदू हो या मुसलमान, जो लोग कामकाज में लगे हुए हैं और समझदार हैं, वे किसी झगड़े में नहीं पड़ना चाहते। फिर भी झगड़े होते हैं। यह नेताओं की चालाकी और शातिर दिमाग का खेल है। आखिर क्यों अन्य धर्मों में इस तरह के झगड़े देखने को नहीं मिलते?
7. दवा कंपनियों की मनमानी: दवा कंपनियां मनमाने तरीके से दवाओं के मूल्य प्रिंट करती हैं, जिसे आम जनता की जेब पर सीधा बोझ पड़ता है। आवश्यक दवाओं की कीमतें नियंत्रण में नहीं रहतीं, और मुनाफाखोरी जारी रहती है।
और भी कई मुद्दे हैं, जो सरकार की दोहरी नीति को उजागर करते हैं।
इस तरह भारत विश्वगुरु बनने के राह पर है । ये सवाल उठाना विपक्ष का काम है पर मैं पक्ष में रहकर एक आम नागरिक के हिसाब से सवाल उठता रहता हूँ। पता नहीं कितने लोग हमसे सहमत होंगे ? कोई चमचा कहेगा, कोई देशद्रोही कहेगा और पता नहीं क्या क्या ??
✍️ सत्यजीत सिंह
दुर्लभछोड़ा, करीमगंज, असम ।

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